Friday, October 16, 2009

खुदा के लिए

मेट्रो शहर में कौन है ? केपिटललिस्ट, धर्म निरपेक्ष आदमी, कम्युनिस्ट, राजनीतिज्ञ, सर्वहारा, शोषक, शोषित, बेरोजगार क्रन्तिकारी, धार्मिक आदमी, आध्यात्मिक आदमी, नस्लवादी, क्षेत्रवादी, रंगभेद, डर, बहादुरी, कलाकार, मखली गोशाल के नियतिवादी, 'ब' से बुद्धिजीवी / 'ब' से ब्लॉग्गिंग करने वाले ब्लोगर्स, दलित, सवर्ण, प्रदुषण, ग्रीन हाउस गैसें, गंदे नालों की नदियाँ, भोग-विलास, डिस्कोथेक, बीअर-बार, पढ़ा लिखा आत्मविश्वासी युवा, युवक-युवती-सेक्स, बारिश की दो बूँद पड़ते ही नरकलोक की तरह हर तरफ बदबू मारती सड़कें और गलियां, प्रोपर्टी डीलर, सभी सवालों के जवाब में लगातार गूंजने वाला एक नारा "ये रेस है, और रेस जितने के लिए होती है" | सेल्फ-इन्स्पैरेसन की बुक से निकली पोजिटिव सोच | तो कौन है यहाँ ?

और गाँव व छोटे शहरों में ? आदिवासी, नक्सलवादी, मजबूर किसान जो आत्महत्या करते हैं, साफ़ हवा, शुद्ध पानी, बारिश की दो बूँद पड़ते ही मन को सौंधी सुंगध से भरने वाली जमीन, हरियाली, जिन पर अब भू-माफियाओं के बुलडोज़र चलने में ज्यादा दिन नहीं बचे हैं, स्काईस्क्रेपर की जगह दूर-दूर तक खुला आसमान, खम्भे और उन पर लटके करंटहीन तार, स्कूल में सिर्फ खेलते बच्चे, छिपकली मिला सुस्वादु पोषक आहार लेते बच्चे, ओक्सिटोसिन इंजेक्शन के बिना तैयार हुई लोकी और दूध, और वो भी बिना पानी वाला, बोरवेल में गिरने वाले बच्चे, नुक्कड़ की बहस के अंत में निकलने वाला सार, "भाई साहब इस देश का कुछ नहीं हो सकता" | ये छोटे शहर के लोगों की सोच सदा निगेटिव ही रहेगी | तो कौन है यहाँ ?

हैं.....क्या ?.....गाँव ? हाँऽऽऽ.ऽऽऽ सही याद दिलाया, ये बीच में गाँव कहाँ से आ गया | ठीक है चलिए छोडिये ये गंवार गाँव और छोटे शहर आर्टिकल में जगह पाने लायक भी नहीं होते, सही है, इन पर लिखकर हम इनकी महता क्यों सिद्ध करें, बुद्धिजीवी मेट्रो के फेशन डिजाईनर को कहते हैं जो मॉडर्न आर्ट को समझने की पारखी नजर और योग्यता रखते हैं, तो मैं क्यों गाँव की सी बातें करके गंवार बनूँ, और तो और कितनी शर्म की बात है की इन गंवारू लोगों को तो अंग्रेजी भी नहीं आती अब क्या तो इन Vulgar लोगों से बात कर लें | But I got class, So Just Chill ! ! इन गाँव वालों को तो इन्टरनेट का ही कुछ पता नहीं, ब्लॉग किस चिडिया का नाम है उसकी तो बात ही क्या करें इनके सामने, अब गाँव में बिजली नहीं आती तो मेरी गलती थोडी है इनको जागरूक होना चाहिए | शहर में कैसे आ जाती है, ये जागरूकता का ही तो परिणाम है ;-)| इसलिए जब ये मेरा ब्लॉग ही नहीं पढने वाले हैं तो फिर मैं क्यों इन गंवारों में टाइम वेस्ट करूँ | हाँ तो हम मेट्रो के रंगीन संसार की ही बात करेंगे क्योंकि मेरा ये आर्टिकल तो मेट्रो के वेल कल्चर्ल्ड, इन्टरनेट यूज़ करने वाले बुद्धिजीवी ही पढेंगे ना |

नहीं समझ में आया क्या बुद्धिजीवियों ? अरे यार इन्सल्ट मत कराओ कोई गाँव वाला देख लेगा | अरे ये अभी तो "Prologue" ही चल रहा था ऊपर | इस बार ये पोस्ट शायद पूरब और पश्चिम वाली पोस्ट से भी लम्बी जाने वाली है, लेकिन टुकडों में | और हाँ फिल्म को चलाने के लिए थोडा मसाला तो डालना ही पड़ता है, लॉजिक वाली पिच्चरें धरी रह जाती हैं | इसलिए इस बार मूवी मसाला है, मेट्रो पर बात हो और बॉलीवुड छुट जाये, असंभव है | सच कहूँ तो इस बार मूवी पर ही बातें चलने वाली हैं |

कल-परसों मैं YMI (ये मेरा इंडिया) पिच्चर देख रहा था | वाह क्या फिल्म है | लेकिन जब-जब मालकिन और नौकरानी वाला सीन आता तो दिमाग में कुछ धुंधली सी खुजली होती थी, क्योंकि सूरज अभी उदय हो रहा था, जो की सुबह 6:30 के करीब होता है | लगभग आधी से ज्यादा फिल्म हो चुकी थी, और जब मालकिन के गिरने पर नौकरानी के बचाने वाला सीन आया तब तक सुबह के 10-11 बज चुके होंगे क्योंकि सूरज की गर्मी प्रदुषण के बादलों ख़तम कर रही थी और दिमाग में धुन्धलाहट के बादलों को चीरता हुआ सूरज 'Crash' करता हुआ आया और दिमाग में Crash Crash इको साउंड बजने लगा | हाँ ये कुछ अकेडमी पुरस्कार लेने वाली वही 'Crash' मूवी ही तो है, जिसका अक्स YMI में दीखता है, बॉलीवुड को नक़ल करने का अधिकार है, लेकिन रुकिए बात इतनी सी नहीं है, इस YMI में | जब 2-3 साल पहले मैंने Crash मूवी देखी थी तो उसने मेरे मन पर कोई विशेष छाप नहीं डाली, अलबत्ता बोर ही हुआ | लेकिन YMI ने मुझे बांधे रखा अंत तक | इन दिनों बारह आना, अनवर, हजारों ख्वाहिशें ऐसी, गुरु, 99, यूँ होता तो क्या होता, Dev D, नो स्मोकिंग, ब्लैक फ्रायडे, युवा, कलयुग, गेंगस्टर, Page 3, ट्रैफिक सिग्नल etc. etc., ये मूवीज बताती हैं, की दो Metrosexual Guy (दो हैं जोड़े से तो अंतरंगता ने Gay और Guy के फर्क को भी मिटा दिया होगा ), "ज़हरीला तनाव" और "गहरी सोच" न्यूयार्क से फ्लाईट पकड़ कर मुम्बई पहुँच चुके हैं और सिर्फ सेलानी बनकर नहीं आये हैं, दूतावास खडा करने के लिए ज़मीन भी देख ली है | ज़मीन है चार महानगर, जी हाँ, किसी ज़माने के दूरदर्शन के मौसम समाचार वाले वही चार महानगर दिल्ली, कलकत्ता, बम्बई, मद्रास | इसके अलावा इन दोनों ने मार्केटिंग एजेंट (जो की भारत में किराये पर आसानी से मिल जाते हैं) भी छोड़ दिए हैं, जो हैदराबाद, जयपुर, गुडगाँव, बंगलुरु, अहमदाबाद, वल्परयी, चंडीगढ़ etc. etc. में अपना नेटवर्क बढ़ने में लगे हुए हैं | अब सुना है की इनकी एक बहन Cheer Leader Girl भी पहुँच गयी है और हर सांस्कृतिक उत्सव में शिरकत करती नज़र आती है | तो YMI ने अंत तक मुझे बांधे रखा, क्यों ? मैं समझ गया की ये अपने देसी मुद्दे देखकर ही मैं भाव विह्वल हो रहा हूँ जो मुझे असली एहसास करा रहे हैं, Crash देखकर मुझे लगा था की अमरीका वाले कुछ ज्यादा ही ऊँची समीक्षा दिखाने में लग रहे हैं, अब मुझे लग रहा है की Crash अमरीका में गलत नहीं थी, और कुछ चीज़ों के लिए ओस्कर ले गयी तो ठीक ही रहा होगा, वो वहां के मुद्दों को दिखा रही है जिनका एहसास हम इतनी जल्दी नहीं कर सकते और YMI ने यहाँ के मुद्दे पेश कर दिए बस इतना ही फर्क है बाकी पूरी फिल्म Crash के ताने-बने पर बुनी गयी है |

भई मुंबई इंडिया की रामधानी है तो न्यूयार्क दुनिया की रामधानी | मुंबई में पूरे भारत के तो न्यूयार्क में पूरी दुनिया के लोग रहते हैं, तो तनाव बढ़ना स्वाभाविक ही है | ये तो हम सब की बडाई मारने की आदत है, "Integrity in Diversity" वरना इस मामले में तो न्यूयार्क को ज्यादा बड़ा नाम और इनाम मिलना चाहिए |

बाकी का अगली पोस्ट में |

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पोस्ट के अंत में एक गाना दिल को सुकून देने के लिए |

गाना : अंधे की लाठी....
गायक : कुंदन लाल सहगल
फिल्म : धूप-छाँव

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