Tuesday, October 6, 2009

ज्योतिष अर्थात अध्यात्म_3

पिछली पोस्ट से जारी...

ज्योतिष कहता है कि जो भी चारों तरफ मौजूद है, दि होल यूनिवर्स, वह सभी का सभी उस एक्सपोजर के क्षण में, उस चित्त के खुलने के क्षण में भीतर प्रवेश कर जाता है और जीवन भर की सिम्पैथीज और एंटीपैथीज निर्मित हो जाती हैं। उस क्षण जो नक्षत्र पृथ्वी को चारों तरफ से घेरे हुए हैं--नक्षत्र घेरे हुए हैं, उसका कुल मतलब इतना कि उस क्षण पृथ्वी के ऊपर जिन नक्षत्रों की रेडियो एक्टिविटी का प्रभाव पड़ रहा है। अब वैज्ञानिक मानते हैं कि प्रत्येक ग्रह की रेडियो एक्टिविटी अलग है। जैसे वीनस; उससे जो रेडियो सक्रिय तत्व हमारी तरफ आते हैं वे चांद के रेडियो सक्रिय तत्वों से भिन्न हैं। या जैसे ज्युपिटर; उससे जो रेडियो तत्व हम तक आते हैं वे सूर्य के रेडियो तत्वों से भिन्न हैं। क्योंकि इन प्रत्येक ग्रहों के पास अलग तरह की गैसों और अलग तरह के तत्वों का वातावरण है। उन सबसे अलग-अलग प्रभाव पृथ्वी की तरफ आते हैं। और जब एक बच्चा पैदा हो रहा है तो पृथ्वी के चारों तरफ क्षितिज को घेर कर खड़े हुए जो भी नक्षत्र हैं--ग्रह हैं, उपग्रह हैं, दूर आकाश में महातारे हैं--वे सब के सब उस एक्सपोजर के क्षण में बच्चे के चित्त पर गहराइयों तक प्रवेश कर जाते हैं। फिर उसकी कमजोरियां, उसकी ताकतें, उसका सामर्थ्य, सब सदा के लिए प्रभावित हो जाता है। अब जैसे हिरोशिमा में एटम बम के गिरने के बाद पता चला, उसके पहले पता नहीं था। हिरोशिमा में एटम जब तक नहीं गिरा था तब तक इतना खयाल था कि एटम गिरेगा तो लाखों लोग मरेंगे; लेकिन यह पता नहीं था कि पीढ़ियों तक आने वाले बच्चे प्रभावित हो जाएंगे। हिरोशिमा और नागासाकी में जो लोग मर गए, मर गए! वह तो एक क्षण की बात थी, समाप्त हो गए। लेकिन हिरोशिमा में जो वृक्ष बच गए, जो जानवर बच गए, जो पक्षी बच गए, जो मछलियां बच गईं, जो आदमी बच गए, वे सदा के लिए प्रभावित हो गए। अब वैज्ञानिक कहते हैं कि दस पीढ़ियों में हमें पूरा अंदाज लग पाएगा कि क्या-क्या परिणाम हुए। क्योंकि इनका सब कुछ रेडियो एक्टिविटी से प्रभावित हो गया। अब जो स्त्री बच गई है उसके शरीर में जो अंडे हैं वे प्रभावित हो गए। अब वे अंडे, कल उनमें से एक अंडा बच्चा बनेगा, वह बच्चा वैसा ही बच्चा नहीं होगा जैसा साधारणतः होता है। क्योंकि एक विशेष तरह की रेडियो सक्रियता उस अंडे में प्रवेश कर गई है। वह लंगड़ा हो सकता है, लूला हो सकता है, अंधा हो सकता है। उसकी चार आंखें भी हो सकती हैं, आठ हाथ भी हो सकते हैं। कुछ भी हो सकता है! अभी हम कुछ भी नहीं कह सकते कि वह कैसा होगा। उसका मस्तिष्क बिलकुल रुग्ण भी हो सकता है, प्रतिभाशाली भी हो सकता है। वह जीनियस भी पैदा हो सकता है, जैसा जीनियस कभी पैदा न हुआ हो। अभी हमें कुछ भी पता नहीं कि वह क्या होगा। इतना पक्का पता है कि जैसा होना चाहिए था साधारणतः आदमी, वैसा वह नहीं होगा। अगर एटम...एटम बहुत छोटी ताकत है। हमारे लिए बहुत बड़ी ताकत है। एक एटम एक लाख बीस हजार आदमियों को मार पाया हिरोशिमा और नागासाकी में। वह बहुत छोटी ताकत है। सूर्य के ऊपर जो ताकत है उसका हम इससे कोई हिसाब नहीं लगा सकते। जैसे अरबों एटम बम एक साथ फूट रहे हों! उतनी रेडियो एक्टिविटी सूरज के ऊपर है। और असाधारण है यह! क्योंकि सूरज चार अरब वर्षों से तो पृथ्वी को ही गर्मी दे रहा है, और उससे पहले से है। और अभी भी वैज्ञानिक कहते हैं कि कम से कम चार हजार वर्ष तक तो ठंडे होने की कोई संभावना नहीं है। प्रतिदिन इतनी गर्मी! और सूरज दस करोड़ मील दूर है पृथ्वी से। हिरोशिमा में जो घटना घटी उसका प्रभाव दस मील से ज्यादा दूर नहीं पड़ सका। दस करोड़ मील दूर सूरज है, चार अरब वर्षों से तो वह हमें सारी गर्मी दे रहा है, फिर भी अभी रिक्त नहीं हुआ है। पर यह सूरज कुछ भी नहीं है, इससे महासूर्य हैं, ये सब तारे हैं जो आकाश के। और इन प्रत्येक तारों से अपनी व्यक्तिगत और निजी क्षमता की सक्रियता हम तक प्रवाहित होती है। एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक, जो अंतरिक्ष में फैलती ऊर्जाओं के संबंध में अध्ययन कर रहा है, गाकलिन, उसका कहना है कि जितनी ऊर्जाएं हमें अनुभव में आ रही हैं उनमें से हम एक प्रतिशत के संबंध में भी पूरा नहीं जानते। जब से हमने कृत्रिम उपग्रह छोड? हैं पृथ्वी के बाहर, तब से उन्होंने हमें इतनी खबरें दी हैं कि हमारे पास न शब्द हैं उन खबरों को समझने के लिए, न हमारे पास विज्ञान है। और इतनी ऊर्जाएं, इतनी एनर्जीज चारों तरफ बह रही होंगी, इसकी हमें कल्पना ही नहीं थी। इस संबंध में एक बात और खयाल में ले लेनी जरूरी है। इस जगत में, जैसा मैंने कल कहा, लोग सोचते हैं कि ज्योतिष कोई विकसित होता हुआ विज्ञान है। मैंने आपसे कहा, हालत उलटी है। ताजमहल अगर आपने देखा हो तो यमुना के उस पार कुछ दीवारें आपको उठी हुई दिखाई पड़ी होंगी। कहानी यह है कि शाहजहां ने मुमताज के लिए तो ताजमहल बनवाया और अपने लिए, जैसा संगमरमर का ताजमहल है, ऐसा ही अपनी कब्र के लिए संगमूसा का, काले पत्थर का महल वह यमुना के उस पार बना रहा था। लेकिन वह पूरा नहीं हो पाया। ऐसी कथा सदा से प्रचलित थी। लेकिन अभी इतिहासज्ञों ने खोज की है तो पता चला कि वह जो उस तरफ दीवारें उठी खड़ी हैं वे किसी बनने वाले महल की दीवारें नहीं हैं, वे किसी बहुत बड़े महल की, जो गिर चुका, खंडहर हैं! पर उठती दीवारें और खंडहर एक से मालूम पड़ सकते हैं। एक नये मकान की दीवार उठ रही है, अधूरी है अभी, मकान बना नहीं। हजारों साल बाद तय करना मुश्किल हो जाएगा कि यह नये मकान की बनती हुई दीवार है या किसी बने-बनाए मकान की, जो गिर चुका, उसकी बची-खुची अवशेष है, खंडहर है। पिछले तीन-चार सौ, पांच सौ सालों से यही समझा जाता था कि वह जो दूसरी तरफ महल खड़ा हुआ है, वह शाहजहां बनवा रहा था, वह पूरा नहीं हो पाया। लेकिन अभी जो खोजबीन हुई है उससे पता चलता है कि वह महल पूरा था। और न केवल यह पता चलता है कि वह महल पूरा था, बल्कि यह भी पता चलता है कि ताजमहल शाहजहां ने खुद कभी नहीं बनवाया। वह भी हिंदुओं का बहुत पुराना महल है, जिसको सिर्फ कनवर्ट किया, जिसको सिर्फ थोड़ा सा फर्क किया। क्योंकि...और कई दफे इतनी हैरानी होती है कि जिन बातों को हम सुनने के आदी हो जाते हैं, फिर उनसे भिन्न बात को हम सोचते भी नहीं! ताजमहल जैसी एक भी कब्र दुनिया में किसी ने नहीं बनाई है। कब्र ऐसी बनाई ही नहीं जाती। कब्र ऐसी बनाई ही नहीं जाती! ताजमहल के चारों तरफ सिपाहियों के खड़े होने के स्थान हैं, बंदूकें और तोपें लगाने के स्थान हैं। कब्रों की बंदूकें और तोपें लगा कर कोई रक्षा नहीं करनी पड़ती। वह महल है पुराना, उसको सिर्फ कनवर्ट किया गया है कब्र में। वह दूसरी तरफ भी एक पुराना महल है जो गिर गया, जिसके खंडहर शेष रह गए। ज्योतिष भी खंडहर की तरह है। वह बहुत बड़ा महल था, पूरा विज्ञान था, जो ढह गया। कोई नयी चीज नहीं है, कोई नया उठता हुआ मकान नहीं है। लेकिन जो दीवारें रह गई हैं उनसे कुछ पता नहीं चलता कि कितना बड़ा महल उसकी जगह रहा होगा। बहुत बार सत्य मिलते हैं और खो जाते हैं। अरिस्टीकारस नाम के एक यूनानी ने जीसस से दो सौ, तीन सौ वर्ष पूर्व यह सत्य खोज निकाला था कि सूर्य केंद्र है, पृथ्वी केंद्र नहीं है। अरिस्टीकारस का यह सूत्र, हेलियो सेंट्रिक, कि सूरज केंद्र पर है, जीसस से तीन सौ वर्ष पहले खोज निकाला गया था। लेकिन जीसस के सौ वर्ष बाद टोलिमी ने इस सूत्र को उलट दिया और पृथ्वी को फिर केंद्र बना दिया। और फिर दो हजार साल लग गए केपलर और कोपरनिकस को खोजने में वापस कि सूर्य केंद्र है, पृथ्वी केंद्र नहीं है। दो हजार साल तक अरिस्टीकारस का सत्य दबा पड़ा रहा। दो हजार साल बाद जब कोपरनिकस ने फिर से कहा तब अरिस्टीकारस की किताबें खोजी गईं। लोगों ने कहा, यह तो हैरानी की बात है! अमरीका कोलंबस ने खोजा, ऐसा पश्चिम के लोग कहते हैं। एक बहुत प्रसिद्ध मजाक प्रचलित है। आस्कर वाइल्ड अमरीका गया हुआ था। उसकी मान्यता थी कि अमरीका और भी बहुत पहले खोजा जा चुका है। और यह सच है। यह सच्चाई है कि अमरीका बहुत दफे खोजा जा चुका और पुनः-पुनः खो गया। उससे संबंध-सूत्र टूट गए। एक व्यक्ति ने आस्कर वाइल्ड को पूछा कि हम सुनते हैं कि आप कहते हैं, अमरीका पहले भी खोजा जा चुका है। तो क्या आप नहीं मानते कि कोलंबस ने पहली खोज की? और अगर कोलंबस ने पहली खोज नहीं की तो अमरीका बार-बार क्यों खो गया? तो आस्कर वाइल्ड ने मजाक में कहा कि कोलंबस ने पुनः खोज की है, ही रि-डिसकवर्ड अमेरिका। इट वाज़ डिसकवर्ड सो मेनी टाइम्स, बट एवरी टाइम हश्ड-अप। हर बार दबा कर इसको चुप रखना पड़ा, क्योंकि यह उपद्रव, इसको बार-बार हश्ड-अप! महाभारत अमरीका की चर्चा करता है। अर्जुन की एक पत्नी मेक्सिको की लड़की है। मेक्सिको में जो मंदिर हैं वे हिंदू मंदिर हैं, जिन पर गणेश की मूर्ति तक खुदी हुई है। बहुत बार सत्य खोज लिए जाते हैं, खो जाते हैं। बहुत बार हमें सत्य पकड़ में आ जाता है, फिर खो जाता है। ज्योतिष उन बड़े से बड़े सत्यों में से एक है जो पूरा का पूरा खयाल में आ चुका और खो गया। उसे फिर से खयाल में लाने के लिए बड़ी कठिनाई है। इसलिए मैं बहुत सी दिशाओं से आपसे बात कर रहा हूं। क्योंकि ज्योतिष पर सीधी बात करने का अर्थ होता है कि वह जो सड़क पर ज्योतिषी बैठा है, शायद मैं उसके संबंध में कुछ कह रहा हूं। जिसको आप चार आने देकर और अपना भविष्य-फल निकलवा आते हैं, शायद उसके संबंध में या उसके समर्थन में कुछ कह रहा हूं। नहीं, ज्योतिष के नाम पर सौ में से निन्यानबे धोखाधड़ी है। और वह जो सौवां आदमी है, निन्यानबे को छोड़ कर उसे समझना बहुत मुश्किल है। क्योंकि वह कभी इतना डागमेटिक नहीं हो सकता कि कह दे कि ऐसा होगा ही। क्योंकि वह जानता है कि ज्योतिष बहुत बड़ी घटना है। इतनी बड़ी घटना है कि आदमी बहुत झिझक कर ही वहां पैर रख सकता है। जब मैं ज्योतिष के संबंध में कुछ कह रहा हूं तो मेरा प्रयोजन है कि मैं उस पूरे-पूरे विज्ञान को आपको बहुत तरफ से उसके दर्शन करा दूं उस महल के। तो फिर आप भीतर बहुत आश्वस्त होकर प्रवेश कर सकें। और मैं जब ज्योतिष की बात कर रहा हूं तो ज्योतिषी की बात नहीं कर रहा हूं। उतनी छोटी बात नहीं है। पर आदमी की उत्सुकता उसी में है कि उसे पता चल जाए कि उसकी लड़की की शादी इस साल होगी कि नहीं होगी। इस संबंध में यह भी आपको कह दूं कि ज्योतिष के तीन हिस्से हैं। एक--जिसे हम कहें अनिवार्य, एसेंशियल, जिसमें रत्ती भर फर्क नहीं होता। वही सर्वाधिक कठिन है उसे जानना। फिर उसके बाहर की परिधि है--नॉन एसेंशियल, जिसमें सब परिवर्तन हो सकते हैं। मगर हम उसी को जानने को उत्सुक होते हैं। और उन दोनों के बीच में एक परिधि है--सेमी एसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य, जिसमें जानने से परिवर्तन हो सकते हैं, न जानने से कभी परिवर्तन नहीं होंगे। तीन हिस्से कर लें। एसेंशियल--जो बिलकुल गहरा है, अनिवार्य, जिसमें कोई अंतर नहीं हो सकता। उसे जानने के बाद उसके साथ सहयोग करने के सिवाय कोई उपाय नहीं है। धर्मों ने इस अनिवार्य तथ्य की खोज के लिए ही ज्योतिष की ईजाद की, उस तरफ गए। उसके बाद दूसरा हिस्सा है--सेमी एसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य। अगर जान लेंगे तो बदल सकते हैं, अगर नहीं जानेंगे तो नहीं बदल पाएंगे। अज्ञान रहेगा, तो जो होना है वही होगा। ज्ञान होगा, तो आल्टरनेटिव्स हैं, विकल्प हैं, बदलाहट हो सकती है। और तीसरा सबसे ऊपर का सरफेस, वह है--नॉन एसेंशियल। उसमें कुछ भी जरूरी नहीं है। सब सांयोगिक है। लेकिन हम जिस ज्योतिषी की बात समझते हैं, वह नॉन एसेंशियल का ही मामला है। एक आदमी कहता है, मेरी नौकरी लग जाएगी या नहीं लग जाएगी? चांदत्तारों के प्रभाव से आपकी नौकरी के लगने, न लगने का कोई भी गहरा संबंध नहीं है। एक आदमी पूछता है, मेरी शादी हो जाएगी या नहीं हो जाएगी? शादी के बिना भी समाज हो सकता है। एक आदमी पूछता है कि मैं गरीब रहूंगा कि अमीर रहूंगा? एक समाज कम्युनिस्ट हो सकता है, कोई गरीब और अमीर नहीं होगा। ये नॉन एसेंशियल हिस्से हैं जो हम पूछते हैं। एक आदमी पूछता है कि अस्सी साल में मैं सड़क पर से गुजर रहा था और एक संतरे के छिलके पर पैर पड़ कर गिर पड़ा, तो मेरे चांदत्तारों का इसमें कोई हाथ है या नहीं है? अब कोई चांदत्तारे से तय नहीं किया जा सकता कि फलां-फलां नाम के संतरे से और फलां-फलां सड़क पर आपका पैर फिसलेगा। यह निपट गंवारी है। लेकिन हमारी उत्सुकता इसमें है कि आज हम निकलेंगे सड़क पर से तो कोई छिलके पर पैर पड़ कर फिसल तो नहीं जाएगा। यह नॉन एसेंशियल है। यह हजारों कारणों पर निर्भर है, लेकिन इसके होने की कोई अनिवार्यता नहीं है। इसका बीइंग से, आत्मा से कोई संबंध नहीं है। यह घटनाओं की सतह है। ज्योतिष से इसका कोई लेना-देना नहीं है। और चूंकि ज्योतिषी इसी तरह की बात-चीत में लगे रहते हैं इसलिए ज्योतिष का भवन गिर गया। ज्योतिष के भवन के गिर जाने का कारण यह हुआ कि ये बातें बेवकूफी की हैं। कोई भी बुद्धिमान आदमी इस बात को मानने को राजी नहीं हो सकता कि मैं जिस दिन पैदा हुआ उस दिन लिखा था कि मरीन ड्राइव पर फलां-फलां दिन एक छिलके पर मेरा पैर पड़ जाएगा और मैं फिसल जाऊंगा। न तो मेरे फिसलने का चांदत्तारों से कोई प्रयोजन है, न उस छिलके का कोई प्रयोजन है। इन बातों से संबंधित होने के कारण ज्योतिष बदनाम हुआ। और हम सबकी उत्सुकता यही है कि ऐसा पता चल जाए। इससे कोई संबंध नहीं है। सेमी एसेंशियल कुछ बातें हैं। जैसे जन्म-मृत्यु सेमी एसेंशियल हैं। अगर आप इसके बाबत पूरा जान लें तो इसमें फर्क हो सकता है; और न जानें तो फर्क नहीं होगा। चिकित्सा की हमारी जानकारी बढ़ जाएगी तो हम आदमी की उम्र को लंबा कर लेंगे--कर रहे हैं। अगर हमारी एटम बम की खोजबीन और बढ़ती चली गई तो हम लाखों लोगों को एक साथ मार डालेंगे--मारा है। यह सेमी एसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य जगत है। जहां कुछ चीजें हो सकती हैं, नहीं भी हो सकती हैं। अगर जान लेंगे तो अच्छा है; क्योंकि विकल्प चुने जा सकते हैं। इसके बाद एसेंशियल का, अनिवार्य का जगत है। वहां कोई बदलाहट नहीं होती। लेकिन हमारी उत्सुकता पहले तो नॉन एसेंशियल में रहती है। कभी शायद किसी की सेमी एसेंशियल तक जाती है। वह जो एसेंशियल है, अनिवार्य है, अपरिहार्य है, जिसमें कोई फर्क होता ही नहीं, उस केंद्र तक हमारी पकड़ नहीं जाती, न हमारी इच्छा जाती है।
क्रमशः अगली पोस्ट पर...

1 comment: