ब्राउन एक दूसरे शास्त्र का अन्वेषक है। और उस शास्त्र को अभी ठीक-ठीक नाम मिलना शुरू हो रहा है। लेकिन अभी उसे कहते हैं प्लेनेटरी हेरिडिटी, उपग्रही वंशानुक्रम। अंग्रेजी में शब्द है, होरोस्कोप। वह यूनानी होरोस्कोपस का रूप है। होरोस्कोपस, यूनानी शब्द का अर्थ होता है: मैं देखता हूं जन्मते हुए ग्रह को। शब्द का अर्थ होता है। असल में जब एक बच्चा पैदा होता है तब उसी समय पृथ्वी के चारों ओर क्षितिज पर अनेक नक्षत्र जन्म लेते हैं, उठते हैं। जैसे सूरज उठता है सुबह। जैसे सुबह सूरज उगता है, सांझ डूबता है, ऐसे ही चौबीस घंटे अंतरिक्ष में नक्षत्र उगते हैं और डूबते हैं। जब एक बच्चा पैदा हो रहा है--समझें सुबह छह बजे बच्चा पैदा हो रहा है--वही वक्त सूरज भी पैदा हो रहा है। उसी वक्त और कुछ नक्षत्र पैदा हो रहे हैं, कुछ नक्षत्र डूब रहे हैं। कुछ नक्षत्र ऊपर हैं, कुछ नक्षत्र उतार पर चले गए, कुछ नक्षत्र चढ़ाव पर हैं। यह बच्चा जब पैदा हो रहा है तब अंतरिक्ष की, अंतरिक्ष में नक्षत्रों की एक स्थिति है। अब तक ऐसा समझा जाता था, और अभी भी अधिक लोग जो बहुत गहराई से परिचित नहीं हैं वे ऐसा ही सोचते हैं, कि चांदत्तारों से आदमी के जन्म का क्या लेना-देना! चांदत्तारे कहीं भी हों, इससे एक गांव में बच्चा पैदा हो रहा है, इससे क्या फर्क पड़ेगा! फिर वे यह भी कहते हैं कि एक ही बच्चा पैदा नहीं होता, एक तिथि में, एक नक्षत्र की स्थिति में लाखों बच्चे पैदा होते हैं। उनमें से एक प्रेसिडेंट बन जाता है किसी मुल्क का, बाकी तो नहीं बन पाते। एक उनमें से सौ वर्ष का होकर मरता है, दूसरा दो दिन का ही मर जाता है। एक उनमें से बहुत बुद्धिमान होता है और एक निर्बुद्धि रह जाता है। तो साधारण देखने पर पता चलता है कि इन ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति का किसी के बच्चे के पैदा होने से, होरोस्कोप से क्या संबंध हो सकता है? यह तर्क इतना सीधा और साफ मालूम होता है कि ये चांदत्तारे एक बच्चे के जन्म की चिंता भी नहीं करते हैं। और फिर एक बच्चा ही पैदा नहीं होता, एक स्थिति में लाखों बच्चे पैदा होते हैं, पर लाखों बच्चे एक से नहीं होते। इन तर्कों से ऐसा लगने लगा था--तीन सौ वर्षों से ये तर्क दिए जा रहे हैं--कि कोई संबंध नक्षत्रों से व्यक्ति के जन्म का नहीं है। लेकिन ब्राउन, पिकॉडी, और इन सारे लोगों की, तोमातो, इन सबकी खोज का एक अदभुत परिणाम हुआ है। और वह यह कि ये वैज्ञानिक कहते हैं, अभी हम यह तो नहीं कह सकते कि व्यक्तिगत रूप से कोई बच्चा प्रभावित होता होगा, लेकिन अब हम यह पक्के रूप से कह सकते हैं कि जीवन प्रभावित होता है। एक बात, व्यक्तिगत रूप से बच्चा प्रभावित होता होगा, हम अभी नहीं कह सकते हैं, लेकिन जीवन निश्चित रूप से प्रभावित होता है। और अगर जीवन प्रभावित होता है तो हमारी खोज जैसे-जैसे सूक्ष्म होगी वैसे-वैसे हम पाएंगे कि व्यक्ति भी प्रभावित होता है। इसमें एक बात और खयाल में ले लेनी जरूरी है। जैसा सोचा जाता रहा है--वह तथ्य नहीं है--ऐसा सोचा जाता रहा है कि ज्योतिष विकसित विज्ञान नहीं है। प्रारंभ उसका हुआ और फिर वह विकसित नहीं हो सका। लेकिन मेरे देखे स्थिति उलटी है। ज्योतिष किसी सभ्यता के द्वारा बहुत बड़ा विकसित विज्ञान है, फिर वह सभ्यता खो गई और हमारे हाथ में ज्योतिष के अधूरे सूत्र रह गए। ज्योतिष कोई नया विज्ञान नहीं है जिसे विकसित होना है, बल्कि कोई विज्ञान है जो पूरी तरह विकसित हुआ था और फिर जिस सभ्यता ने उसे विकसित किया वह खो गई। और सभ्यताएं रोज आती हैं और खो जाती हैं। फिर उनके द्वारा विकसित चीजें भी अपने मौलिक आधार खो देती हैं, सूत्र भूल जाते हैं, उनकी आधारशिलाएं खो जाती हैं। विज्ञान आज इसे स्वीकार करने के निकट पहुंच रहा है कि जीवन प्रभावित होता है। और एक छोटे बच्चे के जन्म के समय उसके चित्त की स्थिति ठीक वैसी होती है जैसे बहुत सेंसिटिव फोटो प्लेट की। इस पर दोत्तीन बातें और खयाल में ले लें, ताकि समझ में आ सके कि जीवन प्रभावित होता है। और अगर जीवन प्रभावित होता है तो ही ज्योतिष की कोई संभावना निर्मित होती है, अन्यथा निर्मित नहीं होती। जुड़वां बच्चों को समझने की थोड़ी कोशिश करें। दो तरह के जुड़वां बच्चे होते हैं। एक तो जुड़वां बच्चे होते हैं जो एक ही अंडे से पैदा होते हैं। और दूसरे जुड़वां बच्चे होते हैं जो होते तो जुड़वां हैं लेकिन दो अंडों से पैदा होते हैं। मां के पेट में दो अंडे होते हैं, दो बच्चे पैदा होते हैं। कभी-कभी एक ही अंडा होता है और एक अंडे के भीतर दो बच्चे होते हैं। एक अंडे से जो दो बच्चे पैदा होते हैं वे बड़े महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि उनके जन्म का क्षण बिलकुल एक होता है। दो अंडों से जो बच्चे पैदा होते हैं उन्हें जुड़वां हम कहते जरूर हैं, लेकिन उनके जन्म का क्षण एक नहीं होता। और एक बात समझ लें कि जन्म दोहरी बात है। जन्म का पहला अर्थ तो है गर्भाधारण। ठीक जन्म तो उस दिन होता है जिस दिन मां के पेट में गर्भ आरोपित होता है--ठीक जन्म! जिसको आप जन्म कहते हैं वह नंबर दो का जन्म है जब बच्चा मां के पेट से बाहर आता है। अगर हमें ज्योतिष की पूरी खोजबीन करनी हो--जैसे कि हिंदुओं ने की थी, अकेले हिंदुओं ने की थी और उसके बड़े उपयोग किए थे--तो असली सवाल यह नहीं है कि बच्चा कब पैदा होता है, असली सवाल यह है कि बच्चा कब गर्भ में प्रारंभ करता है अपनी यात्रा, गर्भ कब निर्मित होता है! क्योंकि ठीक जन्म वही है। इसलिए हिंदुओं ने तो यह भी तय किया था कि ठीक जिस भांति के बच्चे को जन्म देना हो उस भांति के ग्रह-नक्षत्र में यदि संभोग किया जाए और गर्भाधारण हो जाए तो उस तरह का बच्चा पैदा होगा। अब इसमें मैं थोड़ा पीछे आपको कुछ कहूंगा, क्योंकि इस संबंध में भी काफी काम इधर हुआ है और बहुत सी बातें साफ हुई हैं। साधारणतः हम सोचते हैं कि एक बच्चा सुबह छह बजे पैदा होता है, तो छह बजे पैदा होता है इसलिए छह बजे प्रभात में जो नक्षत्रों की स्थिति होती है उससे प्रभावित होता है। लेकिन ज्योतिष को जो गहरा जानते हैं वे कहते हैं कि वह छह बजे पैदा होने की वजह से ग्रह-नक्षत्र उस पर प्रभाव डालते हैं, ऐसा नहीं! वह जिस तरह के प्रभावों के बीच पैदा होना चाहता है उस घड़ी और नक्षत्र को जन्म के लिए चुनता है। यह बिलकुल भिन्न बात है। बच्चा जब पैदा हो रहा है, ज्योतिष की गहन खोज करने वाले लोग कहेंगे कि वह अपने ग्रह-नक्षत्र चुनता है कि कब उसे पैदा होना है। और गहरे जाएंगे तो वह अपना गर्भाधारण भी चुनता है। प्रत्येक आत्मा अपना गर्भाधारण चुनती है कि कब उसे गर्भ स्वीकार करना है, किस क्षण में। क्षण छोटी घटना नहीं है। क्षण का अर्थ है कि पूरा विश्व उस क्षण में कैसा है! और उस क्षण में पूरा विश्व किस तरह की संभावनाओं के द्वार खोलता है! जब एक अंडे में दो बच्चे एक साथ गर्भाधारण लेते हैं तो उनके गर्भाधारण का क्षण एक ही होता है और उनके जन्म का क्षण भी एक होता है। अब यह बहुत मजे की बात है कि एक ही अंडे से पैदा हुए दो बच्चों का जीवन इतना एक जैसा होता है, इतना एक जैसा होता है कि यह कहना मुश्किल है कि जन्म का क्षण प्रभाव नहीं डालता। एक अंडे से पैदा हुए दो बच्चे, उनका आई.क्यू., उनका बुद्धि-माप करीब-करीब बराबर होता है। और जो थोड़ा सा भेद दिखता है, वे जो जानते हैं वे कहते हैं कि वह हमारी मेजरमेंट की गलती के कारण है। अभी तक हम ठीक मापदंड विकसित नहीं कर पाए हैं जिनसे हम बुद्धि का अंक नाप सकें। थोड़ा सा जो भेद कभी पड़ता है वह हमारे तराजू की भूल-चूक है। अगर एक अंडे से पैदा हुए दो बच्चों को बिलकुल अलग-अलग पाला जाए तो भी उनके बुद्धि-अंक में कोई फर्क नहीं पड़ता। एक को हिंदुस्तान में पाला जाए और एक को चीन में पाला जाए और कभी एक-दूसरे को पता भी न चलने दिया जाए! ऐसी कुछ घटनाएं घटी हैं जब दोनों बच्चे अलग-अलग पले, बड़े हुए। लेकिन उनके बुद्धि-अंक में कोई फर्क नहीं पड़ता। बड़ी हैरानी की बात है, बुद्धि-अंक तो ऐसी चीज है कि जन्म की पोटेंशियलिटी से जुड़ी है। लेकिन वह जो चीन में जुड़वां बच्चा है एक ही अंडे का, जब उसको जुकाम होगा, तब जो भारत में बच्चा है उसको भी जुकाम हो जाएगा। आमतौर से एक अंडे से पैदा हुए बच्चे एक ही साल में मरते हैं। ज्यादा से ज्यादा उनकी मृत्यु में फर्क तीन महीने का होता है और कम से कम तीन दिन का, पर वर्ष वही होता है। अब तक ऐसा नहीं हो सका कि एक ही अंडे से पैदा हुए दो बच्चों की मृत्यु के बीच वर्ष का फर्क पड़ा हो। तीन महीने से ज्यादा का फर्क नहीं पड़ता है। अगर एक बच्चा मर गया है तो हम मान सकते हैं कि तीन दिन के बाद और तीन महीने के बीच दूसरा बच्चा मर जाएगा। इनके रुझान, इनके ढंग, इनके भाव समानांतर होते हैं। और करीब-करीब ऐसा मालूम पड़ता है कि ये दोनों एक ही ढंग से जीते हैं। एक-दूसरे की कापी की भांति होते हैं। इनका इतना एक जैसा होना और बहुत सी बातों से सिद्ध होता है। हम सबकी चमड़ियां अलग-अलग हैं, इंडिविजुअल हैं। अगर मेरा हाथ टूट जाए और मेरी चमड़ी बदलनी पड़े तो आपकी चमड़ी मेरे हाथ के काम नहीं आएगी। मेरे ही शरीर की चमड़ी उखाड़ कर लगानी पड़ेगी। इस पूरी जमीन पर कोई आदमी नहीं खोजा जा सकता जिसकी चमड़ी मेरे काम आ जाए। क्या बात है? फिजियोलाजिस्ट से हम पूछें कि दोनों की चमड़ी की बनावट में कोई भेद है? चमड़ी के रसायन में कोई भेद है? चमड?ी में जो तत्व निर्मित करते हैं चमड़ी को, उसमें कोई भेद है? तो कोई भेद नहीं है! मेरी चमड़ी और दूसरे आदमी की चमड़ी को अगर हम रख दें एक वैज्ञानिक को जांच करने के लिए तो वह यह न बता पाएगा कि ये दो आदमियों की चमड़ियां हैं। चमड़ियों में कोई भेद नहीं है, लेकिन फिर भी हैरानी की बात है कि मेरी चमड़ी पर दूसरे की चमड़ी नहीं बिठाई जा सकती। मेरा शरीर उसे इनकार कर देता है। वैज्ञानिक जिसे नहीं पहचान पाते कि कोई भेद है, लेकिन मेरा शरीर पहचानता है। मेरा शरीर इनकार कर देता है कि इसे स्वीकार नहीं करेंगे। हां, एक ही अंडे से पैदा हुए दो बच्चों की चमड़ी ट्रांसप्लांट हो सकती है सिर्फ! एक-दूसरे की चमड़ी को एक-दूसरे पर बिठाया जा सकता है, शरीर इनकार नहीं करेगा। क्या कारण होगा? क्या वजह होगी?
क्रमशः अगली पोस्ट पर...
https://www.letsdiskuss.com/does-elephant-hair-ring-yanai-mudi-ring-have-some-kind-of-power
ReplyDelete"It makes my finger itch."
Yanai mudi ring in history
There are many images of yanai mudi rings in history books and picture scrolls, but they're all different in their design. Some people think it's the oldest type of jewelry in Japan. It is said that the monkey king Shiko gave one to his son, but later he lost it.
https://hi.letsdiskuss.com/how-many-clauses-are-there-in-indian-constitution
ReplyDeleteभारतीय संविधान का निर्माणः
कैबिनेट मिशन योजना में भारतीय संविधान के निर्माण हेतु परोक्ष निर्वाचन के आधार पर एक संविधान सभा के निर्माण का प्रावधान था। इस योजना के अनुसार चुनाव हुए और संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन 9 दिसंबर, 1946 को डॉ. सच्चिदानंद की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। सभा ने जो संविधान बनाया उसे 26 नवंबर, 1940 को अंतिम रूप से स्वीकार कर लिया गया। इसके बाद यह संविधान 26 जनवरी, 1950 को भारत में लागू कर दिया गया।
https://www.letsdiskuss.com/
ReplyDelete