Monday, June 27, 2011

नलिन का जादू

          कल रात और आज दोपहर मैंने नलिन कुमार पंड्या (Pan Nalin) की क्रमशः 'समसारा' और 'वैली ऑव फ्लोवर्स'  देखीं | दोनों फिल्में नलिन कुमार पंड्या (Pan Nalin) की बनायीं हुई हैं, कहानी भी उनकी ही लिखी हुई हैं | सबसे पहली बात जो मैं कह देना चाहता हूँ वो ये : इतनी हसीन, इतनी शांत, इतनी सुन्दर, इतनी खूबसूरत कल्पनाएँ, इतना सुन्दर छायांकन | ये पंड्या का जादू था या लद्दाख की वादियों का, ठीक से कह नहीं सकता | अगर इन फिल्मों में प्रेम अंश या कशिश की बात करें तो उसमें भी टाईटेनिक या यश चोपड़ा आदि नलिन के आगे पानी भरते नज़र आते हैं | मेरी नज़र में बॉलीवुड में अगर कोई कमर्शियल फिल्म जो इन दोनों फिल्मों के आस-पास कहीं नज़र आती है तो वो सिर्फ अनुरानन है | संयोग की बात ये की 'अनुरानन' भी हिमालय की वादियों में ही घुमती रहती है | तो ये तो मानना पड़ेगा कि हिमालय में पक्का ऐसा कुछ है जो आपको खींचता है और जाने नहीं देता | पंड्या के बारे में कहा गया है कि उन्होंने खुद पूरे भारत और हिमालय की गहरी यात्रायें की हैं |

          'समसारा' में ताशी (Shawn Ku) नामक एक नौजवान भिक्षु है जो तीन साल के कड़े तप से अभी-अभी बाहर आया है | जो अपने नवयौवन की स्वाभाविक प्रतिक्रियाओं पर दिखावटी संयम की चादर नहीं ओढना चाहता | वह मठ से निकलकर संसार में चला जाता है और पेम (Christy Chung) नामक युवती के साथ गृहस्थ बसाता है | बाद में उसमें फिर से वैराग्य जागता है | वह दुबारा मठ की और लौटने की कोशिश करता ही है कि इस बार रास्ते में वर्तमान की 'यशोधरा' ('पेम' उसकी पत्नी) आ खड़ी होती है जो अपने तर्कों से ताशी के संसार और अध्यात्म के बीच डोलते चितभ्रम को खण्ड-खण्ड करती दिखाई पड़ती है | ये फिल्म मूल रूप से लद्दाखी और तिब्बती भाषा में बनी है पर मैंने इसे हिंदी में देखा | काश मैं तिब्बती समझ पाता !! इसकी पटकथा विश्वामित्र और मेनका की कहानी से भी एक हद तक जुडी हुई है | 'समसारा' एक संस्कृत शब्द है और जिसका मतलब जन्म-जन्मांतर का योनी चक्र बताया है | बार-बार जन्म लेना और मरना | एक चक्र जिससे पार पाना ही लक्षित है, मोक्ष है | भारतीय मनीषा के अनुसार ब्रह्माण्ड की सारी गतियाँ एक चक्र में चलती हैं ना की सीधी | हर चक्र के अंदर कई चक्रों का समूह भी है, मतलब 'यत्पिंडे तत् ब्रह्माण्डे' | दुःख मुझे ये भी है कि समसारा 2001 में रिलीज हुई और मैंने इसे 10 साल बाद देखा |
          'वैली ऑव फ्लोवर्स' (फूलों की घाटी) की कहानी अट्ठारवी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में शुरू होती है | जहाँ एक तिब्बती दस्यु जलन (मिलिंद सोमण) और उसका दल है जो व्यापारियों के कारवां लूट कर अपनी खुद की अलग स्वतन्त्र जिंदगी जीने में विश्वास रखते हैं | पर एक दिन एक अनजान रहस्यमयी सुंदरी उष्ना (उष्ण) (Mylène Jampanoï) उनके दल में आती है | जो जलन को अपने आगोश में लेती ही जाती है और धीरे-धीरे उसको दल से दूर करती जाती है | वो एक रहस्यमयी femme fatale है जिसके पेट पर नाभि नहीं है | उष्ना अपनी उष्णता में जलाती है और जलन जलता है | वो जलन को अमरत्व की गहराईओं में ले जाती है | एक दिन ऐसा अता है जब उष्ना जलन को धोखा देकर खुद मृत्यु को प्राप्त कर लेती है पर जलन को अनंत काल तक अश्वथामा की तरह अमरत्व को एक शाप की तरह भोगने के लिए छोड़ जाती है जलन को दिए इस संताप के कर्म का हिसाब उसे वर्तमान युग में जापान में कहीं जाकर चुकता करना पड़ता है जब जलन उसे दुबारा मिलता है | पर इस बार जलन मरता है और उष्ना फिर से अमरत्व का बोझ ढोने को मजबूर होती है |

          हमेशा की तरह नसीर साहब और कश्यप साहब, दोनों इस जगह भी आ धमके हैं ;-) जहाँ नसीरुद्दीन शाह 'वैली ऑव फ्लोवर्स' में यति नामक एक अघोरी के किरदार में हैं वहीँ अनुराग कश्यप ने इसके हिंदी संवाद लिखे हैं | समसारा नलिन की पहली कमर्शियल फिल्म थी जिसके लिए उन्हें काफी क्रिटिकल अक्लैम और अवार्ड भी मिले हैं | नलिन इन दिनों अपनी नयी फिल्म 'Buddha: The Inner Warrior' पर काम कर रहे हैं | देखें और अधिक विकिपीडिया पर नलिन के बारे में |

          'समसारा' और 'वैली ऑव फ्लोवर्स' दोनों यूट्यूब पर उपलब्ध हैं | 'वैली ऑव फ्लोवर' तो हिंदी में है पर 'समसारा' तिब्बती भाषा में अंग्रेजी के सबटाईटल्स के साथ उपलब्ध है, मैं जल्द ही आज-कल में 'समसारा' का हिंदी वर्जन यूट्यूब पर अपलोड करूँगा और मित्रों से शेयर करूँगा |

'वैली ऑव फ्लोवार्स' का एक दृश्य :


'समसारा' के लिए यहाँ देखें, (चूँकि अपलोड करता द्वारा embed unable है)
http://www.youtube.com/watch?v=k0Q7BPFQs0g

Monday, June 6, 2011

कौन हैं सुनील कुमार !

          तारीख 6 जून, 2011. आज जब ढलती दोपहर को मैं देश के तेजी से बदलते घटनाक्रम पर पल-पल जानकारी लेते हुए न्यूज़ पर पकड़ बनाये हुए था तो उस समय जनमर्दन द्विवेदी की प्रेस कांफ्रेंस का टेलीकास्ट किया जा रहा  था | अचानक एक शख्स अपना जूता लेते हुए द्विवेदी पर चढ़ाई करता हुआ दिखाई पड़ा बाद में जो हुआ सब जानते ही हैं कि उसे पार्टी गुर्गों के द्वारा साईड में ले जाकर धुन दिया गया | देखते ही मुझे चेहरा जाना पहचाना लगा मैंने तुरंत अपने तत्कालीन विद्यालय मित्रों से संपर्क साधा और पूछने पर पता चल उन्हें भी ऐसा ही लग रहा है | कुछ ही क्षण में स्क्रीन पर नाम फ्लेश हुआ सुनील कुमार और अब मेरे लिए शक की कोई गुंजाईश नहीं बची थी खासकर उनके व्यक्तित्व को देखते हुए |

          इस दो-तीन मिनट के घटनाक्रम ने इस सुनील कुमार नामक व्यक्ति को पल भर में पूरे देश में हाईलाईट कर दिया | बाद में तरह-तरह की सियासी बयानबाजियां जो न्यूज़ पर चली उन्हें देखकर मैं हैरान था की लोग बिना जाने सोचे समझे जल्दबाजी में कैसी-कैसी उलटी सीधी बकवास शुरू कर कर देते हैं |

          सुनील कुमार शर्मा काफी समय तक अंग्रेजी के अध्यापक रह चुके हैं | इनका राजस्थान के सीकर और झुंझुनू जिले के विद्यालयों में अच्छा नाम रह चुका है और जो विद्यार्थी इनसे पढ़े हैं वे सब इनके खासे फेन हैं | मैं ऐसे ही एक विद्यालय का विद्यार्थी रह चुका हूँ जिसमें वे पढाया करते थे | हालांकि वे मेरे सेक्शन में नहीं थे पर स्कूल में आने के पहले दिन ही उन्होंने सभी का ध्यान अपनी और आकर्षित कर लिया था | पहले दिन ही प्रेयर असेम्बली में उन्होंने जो फर्राटेदार अंग्रेजी में शानदार जुमलों के साथ अपना परिचय दिया और जो अलंकृत वचन सुनाये तो सभी की उनींदी तन्द्रा टूटी जो अमूमन प्रेयर असेम्बली में प्रार्थना करते-करते सबको पकड़ जाती है |  मैं जहाँ पढ़ा था वो विद्यालय था "झुंझुनू अकेडमी" | यहाँ से पहले सुनील शर्मा जी सीकर जिले के नामी विद्यालय "विद्या भारती" में पढ़ाकर आये थे जिसके मालिक श्रीमान बलवंत सिंह चिराना जी हैं | झुंझुनू एकेडमी से जाने के बाद वे झुंझुनू के ही एक दुसरे बड़े विद्यालय "टैगोर पब्लिक स्कूल" में गए  जिसकी मालिक और पूर्व में इसकी प्रिंसिपल रह चुकीं श्रीमती संतोष अहलावत हमारे यहाँ से विधायक और सांसद के चुनाव भी लड़ चुकी हैं |  इनके अलावा उन्होंने "राजस्थान पब्लिक" स्कूल और शायद एक दो स्कूलों में और पढ़ाया था | ये झुंझुनू के आस-पास कई बड़े स्कूलों में अध्यापन कर चुके हैं क्योंकि इनकी प्रतिभा को लेकर किसी को शक-शुबहा नहीं था |  पर ऊपर बताये गए स्कूलों में से एक भी स्कूल का संघ जैसी संस्था से दूर-दूर तक कोई नाता होगा मैं सपने में भी नहीं सोच सकता उलट इसके ये कह सकते हैं ये सब स्कूलें खासे पूंजीपतियों की रही हैं | "झुंझुनू अकेडमी" स्कूल शुरू से लेकर आज तक उन सीढियों पर तेजी से चढ़ता चला गया है जिसे वर्तमान में सफलता के नाम से जाना जाता है | "झुंझुनू एकेडमी" भी उन्हीं दुसरे और आपके शहरों के बड़े नामी विद्यालयों की तरह ही है जो अपने शहर के पांच सितारा सुविधाओं वाले स्कूलों की श्रेणी में आते हैं | इनकी टेग लाईन है "मेरिट वाला विद्यालय" | पचासों मेरिट देने वाला ये स्कूल आपको अपनी इस दक्षता से आश्चर्यचकित कर सकता पर मुझे तो बिलकुल नहीं | क्योंकि इसके पीछे पूंजीवाद नियंत्रित भ्रष्ट तंत्र का बेजोड़ कर्मठ प्रयास है |

          झुंझुनू अकेडमी के डायरेक्टर श्रीमान दिलीप मोदी आज न्यूज़ चैनल को फ़ोन पर कुछ ये बताते सुने गए कि सुनील शर्मा फर्राटेदार अंग्रेजी से लोगों पर झूठा प्रभाव ज़माने वाले और मानसिक रूप से थोडा डिस्टर्ब इंसान है और इसलिए उन्हें निकाल दिया गया और अन्य जगहों पर भी उनके साथ ऐसा ही हुआ | पर मैं श्रीमान मोदी जी से इतर विचार रखता हूँ | एक शब्द में अगर बयां करना हो तो कह सकते हैं कि ज़माना जिसे ज़मीर वाला इंसान कहता है सुनील कुमार वही शख्सियत है | बेबाक और अपने जज्बातों को पूरी तरह से अभिव्यक्त कर देने वाला आदमी कभी-कभी समाज में बीमार की संज्ञा पाता है और उसका बयां सच लोगों को हज़म नहीं होता इसमें कोई दो राय नहीं |

          जिस साल सुनील सर मोदी जी के स्कूल से गए, असलियत में उस समय उन्हें निकाला नहीं गया बल्कि उन्होंने खुद स्कूल छोड़ा था | मैंने उससे एक साल पहले ही अपनी 12 वीं कक्षा उतीर्ण कर ली थी | पर जो सुनने में आया वो ये था कि श्रीमान मोदी जी ने उनकी तनख्वाह रोक कर रखी थी और अन्य अध्यापकों के साथ भी ऐसा ही होता है | ये लोग तनख्वाह को देने की फ्रीक्वेंसी कुछ महीने पीछे करके रखते हैं | घोर पूंजीवादी संस्थानों में किस तरह की गुलामी कर्मियों से करवाई जाती है उसे मित्र अच्छी तरह जानते हैं | पर सुनील कुमार शर्मा के लिए ये बर्दाश्त से बहार था | तनख्वाह की मांग सुनील कुमार कई दिनों से कर रहे थे | मोदी और उनके बीच की अंतरकलह एक दिन पूरे स्टाफ के सामने फूट पड़ी | बाद में जब दबे-छिपे स्वरों में खबर निकल कर आई वो ये थी सुनील कुमार ने हमारे महापूंजीपति मोदी जी का कॉलर पकड़ कर थपड मारते हुए जोरदार जुमलों के साथ जो लानत-मलानत पूरे स्टाफ के सामने की वो देखने लायक थी | मलानत करके उनके महंगे शीशों से सुसज्जित दरवाजे को लात मारते हुए सुनील जी अपना बजाज स्कूटर स्टार्ट कर बिना पैसे लिए अनजाने भविष्य की और निकल गए | उनके जीवन में ऐसे कई वाकये आये हैं जिन सबकी जानकारी तो शायद यहाँ देना संभव नहीं होगा पर जो यहाँ दी गयी है आशा है उससे आप वस्तु स्थिति को समझ जायेंगे |

सुनील शर्मा का व्यक्तित्व
          सुनील कुमार एक बहुमुखी प्रतिभा वाला व्यक्ति हैं | अंग्रेजी के अध्यापक होने के नाते अंग्रेजी भाषा पर उनका जबरदस्त अधिकार तो है ही इसके अलावा उनमें अन्य कई गुण भी हैं |
          उनके आसपास के सर्कल में किसी कॉलेज या विद्यालय के मेगा इवेंट से लेकर मिनी-इवेंट तक में उनके शानदार सञ्चालन को देखते हुए एक एंकर के रूप में सबकी पहली पसंद वही होते |
          इसके अलावा जिन लोगों ने उनको गाते हुए सुना है वो अच्छी तरह जानते हैं कि उनका गायकी में भी खासा दखल था, खासकर रफ़ी उनकी पहली पसंद थे | जब हमारे बैच के विदाई समारोह पर उन्होंने मोहम्मद रफ़ी का "ओ दुनिया के रखवारे सुन दर्द भरे मेरे नाले...." खत्म किया तो पूरा हॉल तालियों के गडगडाहट से काफी देर तक गूंजता रहा जिसमें ताली बजाने वाले श्रीमान मोदी जी भी थे जो आज इनकी भर्त्सना कर रहे हैं |
          इस बात को मैं जरूर स्वीकार करूँगा की वे एक हद तक एन्ग्जाईटी मानसिक रोग से ग्रस्त थे | पर उन्होंने कभी गलत व्यवहार प्रदर्शित नहीं किया | उन्हें देखकर मुझे ये एहसास जरूर था कि वे कहीं न कही समाज के दिखावटीपन से दिली तौर पर आहत हैं | पर उन्होंने हमेशा बहार से ऐसा प्रफुल्लित और जिन्दादिली वाला व्यवहार प्रदर्शित किया जैसा "अनुरानन" फिल्म में राहुल बोस ने किया |  वे अपनी बातों को बहुत ही ज्यादा सीधे अंदाज़ में लोगों के सामने अभिव्यक्त कर देते थे जो लोगों के लिए कई बार परेशानी का सबब बन जाता था, उन्हें अगर किसी की बुराई करनी होती तो उस शख्स की उसके सामने ही सच्चाई व्यक्त कर देते थे, पोल खोल देते थे | उनके दोस्ताना और खुले व्यवहार के कारण छात्रों को तो वे अत्यधिक प्रिय थे |
          उनके बेबाक व्यवहार के कारण वे साल भर से ज्यादा कहीं टिकते नहीं थे | उनको किसी की गुलामी पसंद नहीं थी, काम के प्रति पूरे तरह समर्पित, एक सच्चे और स्वाभिमानी आदमी हैं वो | क्योंकि हम भी बड़े शरारती थे तो एक बार हमारी इनसे डायरेक्ट भिडंत भी हुयी पर इनके मजाकिया स्वभाव से घटना में कोई गंभीर मोड़ नहीं आया और पूरी कक्षा को बड़ा आनंद आया पर मैं वो घटना यहाँ नहीं बताऊंगा क्योंकि इन सर ने मेरी ओवर स्मार्टनेस की धज्जियाँ उड़ा कर रख दी थीं |

          आज जो कुछ हुआ उसे लेकर मेरे पास कुछ पत्रकार मित्रों से खबरें आई की वर्तमान समय में वे "दैनिक नवजागरण" जैसे नाम की किसी पत्रिका के लिए पत्रकार बने हैं | जिसका अभी पहला प्रकाशन भी शुरू नहीं हुआ है ये पत्रिका "मुकेश मूंड" नामक एक व्यक्ति शुरू करने जा रहा है जो झुंझुनू में पहले से ही अच्छा-खासा कोचिंग सेंटर चला रहा है | आज का घटनाक्रम सामने आने पर जब बड़े न्यूज़ चैनल वालों ने मूंड जी से  संपर्क साधा तो उन्होंने पूरी तरह से खुद को मामले से अलग करते हुए फिरकापरस्ती दिखाते हुए साफ़ इनकार किया की उनकी पत्रिका से सुनील कुमार का कोई सम्बन्ध है | और इस तरह हर तरफ न्यूज़ चैनल वालों ने यही दिखाया-कहा की वो कोई पत्रकार नहीं हैं | बेशक वो एक अध्यापक रहे हैं पर जहाँ तक मुझे जानकारी मिली है वो "मुकेश मूंड" की पत्रिका के पत्रकार की हैसियत से दिल्ली पहुंचे थे | पर शायद अपने गुस्से पर काबू न पा सके और गद्दारों के ऊपर जूता उठा लिया |

          शाम को मेरे शहर की पत्रकार जमात में जो बीमारी फैली वो ये है कि ख़ास पूंजीवादियों के दबाव के चलते उनके कई जानकारों और पत्रकारों ने मोबाईल स्विच ऑफ कर लिए हैं और अगर कोई कुछ बोल रहा है तो उनके खिलाफ की बयानबाजी करता ही नज़र आ रहा है | पाठक समझ सकते हैं कि ये बदले की आग में भड़कता हुआ पूंजीवादी कौन है |

          अगर सामाजिक ठेकेदारों के अलावा उन विद्यार्थियों से पूछा जाये जो उनसे पढ़ चुके हैं तो असलियत पता चलते देर न लगेगी | अब तो मेरे दिल मैं उनके प्रति सम्मान कई गुना बढ़ चुका है | ये आदमी ज़मीर से सच्चाई का पक्षधर है और मुखोटे में जीने वाले लोगों की आँख का किरकिरा | बिना किसी तथ्य के जाने आज जो पक्ष और प्रतिपक्ष पार्टियों ने आरोप लगाये उन्हें सुनकर हतप्रभ ही नहीं लोटपोट भी हुआ और आहत भी | पहली बार गहरे तक महसूस भी किया कि सामान्य से मुद्दों को भी राजनेता किस हद तक गिरते हुए क्या का क्या बनाकर रख देते हैं |

पुनश्च : 
देखें नीचे इस विडियो को भी जिसमें अपने आप को देश का अनुभवी बुजुर्ग नेता मानने वाला दिग्विजय कैसे कुत्तों की तरह भीड़ में अकेले पड़ गए सुनील कुमार पर पीछे से लातें चला रहा है | ये आदमी दूसरों पर एक भी घटिया आरोप लगाने से बाज़ नहीं आता और खुद ऐसे गिरे हुए काम करता है |

Wednesday, June 1, 2011

संपर्क सूत्र और बाजार का डर

          आज जब मैं अभय जी के ब्लॉग पर चरने गया गया तो अचानक साईड में पड़े उनके प्रोफाईल वाले ब्लॉगर गैजिट पर नज़र पड़ गयी और मेरे किसी न्यूरोन का विद्युत् प्रवाह बढ़ गया | एक छोटी सी समस्या नज़र आई जो मैं पहले भी देख चुका हूँ और अन्य कई ब्लॉगर बंधुओं के ब्लॉग पर देखा है | इंगित डर के मारे कभी इसलिए नहीं किया बहुत पहले ये सीख लिया था कि बिल्ला बात ज्ञान दोगे तो झापड़ पड़ेगा खासकर तकनीकी विषय पर बताने पर | भैया हम सब ज्ञानी हैं हमें मत सीखाओ | दूसरा कारण ये भी था कि मुझे कभी ये जिक्र करने लायक जैसा विषय लगा भी नहीं | लेकिन अब कई जगह पर देखने के बाद मुझमे ये आत्मविश्वास आया कि चलो इसके ऊपर एक छोटी पोस्ट कर ही देनी चाहिए और २ साल से सुस्त बड़े ब्लॉग पर एक पोस्ट बढाई जाए और जिन मित्रों को जानकारी न हो वो इस २ मिनट के ताम-झाम को समझकर अमल में ला सकें | तकनीकी जानकार तो इसे जानते ही हैं पर भैया जो नहीं जानते ये पोस्ट उनके लिए है | ;-)

          तो अब समस्या बता ही दूँ, समस्या ईमेल सूत्र की है | बहुत से मित्रों को स्पैम मेल के कूड़े साफ़ करते-२ ये तो पता चल गया की इन्टरनेट पर सर्च इंजन की तरह ईमेल क्रॉलर प्रोग्राम चलते हैं जो मेल पतों का शिकार करते हैं सो उन्होंने अपने ईमेल पतों को नयी तर्ज़ पर परिवर्तन करते हुए लिखना शुरू कर दिया |

मसलन,
          मैं आपको बता दूँ अगर आप स्वचालित प्रोग्राम सर्च से बचने के लिए ऐसा लिख रहे हैं तो आपका ये प्रयोग अब नाकाफी है | क्योंकि आजकल के प्रोग्राम इतना दिमाग रखते हैं कि at को @ कैसे पढ़ा जाए और dot को . (period) कैसे पढ़ा जाए | या आप कितने ही तरीकों से इसे घुमा फिरा कर लिख दें ये जब तक टेक्स्चुअल फॉर्म में है तब तक कृत्रिम प्रोग्रामों के शिकार से बच नहीं सकता | फिलहाल तक के लिए इसका सीधा और सरल उपाय यही है कि आप ईमेल को या अन्य कोई भी पाठ्य जिसे सर्च से बचाना चाहते हैं उसे इमेज रूप में बनाकर अपने पोर्टल पर रखें |

जैसे, ऊपर वाले दोनों मेल पतों को इस प्रकार इमेज बनाकर रखा जा सकता है |


          जहाँ तक मानव द्वारा पढ़े जाने का डर है तो सीधी सी बात है मेल पता दिया ही ना जाए पर अगर देना ही है तो पहले वाली पद्धति की अपेक्षा इमेज पद्धति अपनाना बेहतर है |

- इसका साफ़ फायदा ये तो है ही कि स्पैम से काफी हद तक मुक्ति | फिलवक्त तो ऐसे प्रोग्राम नहीं हैं जो इन्हें रीड कर सकें | वेब पोर्टल्स पर फॉर्म रजिस्ट्रेशन के अंत में भरवाए जाने वाले कपाचा या इमेज वेरिफिकेशन कोड तो आपने कई बार भरे होंगे वो इमेज रूप में इसीलिए होते है ताकि स्वचालित प्रोग्राम से रजिस्ट्रेशन की सम्भावना को ख़त्म किया जा सके |


- दूसरा फायदा ये हैं की ईमेल पता भी एकदम उसी रूप में लिखा जा सकता है जैसा आपका है, बजाय @ को at लिखने के या अन्य वर्णों को अन्य तरीकों से लिखने के, इससे गलत इन्टरप्रेट किये जाने की सम्भावना भी समाप्त हो जाती है |


- तीसरा आप इमेज में मनचाहे रंग और फॉण्ट का प्रयोग भी कर सकते हैं, मनचाहे साईज में सेट कर सकते हैं   और ख़ास तरीके से कोंट्राष्ट किये जाने योग्य बना सकते हैं |

          तो अपना मेल इमेज बना कर डालें ज्यादा फायदा मिलेगा | मालिकाना वेब पोर्टल पर तो खैर इमेज कहीं भी डाली जा सकती है | ब्लॉगर में इसे डालने के लिए आप Add Gadget में Basic गैजिट श्रृखला के Picture गैजिट का प्रयोग कर सकते हैं | इसके अलवा आप फेसबुक बैज नामक गैजिट का प्रयोग भी कर सकते हैं, जो मेरे ब्लॉग में आप सबसे ऊपर दायें कोने में  देख सकते हैं, फेसबुक बैज भी इमेज रूप में ही प्रदर्शित होता है, कारण इसका ऊपर बता ही चुका हूँ |

          क्रिया की प्रतिक्रिया हुयी तो (मतलब दिमाग की नस ने फिर फाड़फाड़ना शुरू किया तो) कोशिश करूँगा आगे भी तकनीकी समस्याओं से जुड़े पोस्ट डाल सकूँ और मित्रों से कुछ साझा कर सकूँ |

Tuesday, May 24, 2011

रेजगी को कवि-सम्मेलन

एक दफा एक रोकड़ियै नैं
कवि सम्मेलन सुणबां खातर गयो बुलायो
बो कुछ हांस्यो, कुछ मुळकायो
संयोजक, बिन कवियां कै क्यांको कवि सम्मेलन करर्'या है
सारा कवि तो मेरी रोकड़ की पेटी में बन्द पड़्या है
रीतिकाल कै चाँदी कै रिपियै सैं लेकै
छायावाद रहस्यवाद की धेली अर पावली ही नहीं
प्रगतिवाद को आनूं टकड़ो पीसो धेलो
अर प्रयोगवादी दस पीसा, पांच पीसड़ी
और अकविता युग ताणीं की तीन पीसड़ी, एक पीसियो
सारै का सारा युग युग का ये प्रतिनिधि कवि और कवित्री
मेरी रोकड़ की पेटी में हीं कवि सम्मेलन करर्'या है
और कवी सै झूठा है, ये कवि सांचा है
क्यूँ ? मैं तो नित्त हमेशा
सब कवियां नैं आंकै ही लैर्'यां फिरतो देखूं हँ
सुणणूं चावो तो थानैं आं भांत भांत कै-
कवियां की कविता सुणवाद्'यूँ

देखो चांदी को रिपियो आं सब कवियां को सभापति है
नई पुराणीं पीढी का सै कवि कानीं कानीं बैठ्या है
कान लगाकै सुणों, सभापति के कहर्'या है-
"स्यांत स्यांत श्रोतावों, बेटी और बेटियों!
आज आप जो मनैं सभापति कर्'यो आपकी बड़ी किरपा है
पण, थारी निजरां में मैं एकदम बूडो होगो
पण सांची बात बताद्'यूँ क बूडो नीं हूँ
जोध जुवानां नैं भी परै बठाद्'यूँ हूँ मैं
चालूँ हूँ जद इब भी मैं
पैल्यां सैं पाँच गुणूँ तेजी सैं चाल सकूँ हूँ
मैं मेरे छोटे भाई रिपियै कै नोट की जियां नहीं हूँ
जो धरम करम छोडकै रूप भी बदळ लियो बेसरम कठे को
लाडेसर बस पूरी जिन्दगानी में एक बार ही न्हायो
तो कमेच की गोजी में बो भेळो होकै
सूक्योड़ी बिटकणी जियां को होर चिपगो थो
न्हांवणघर में गाबैं पै पैलो मुक्को पड़तां हीं बींका
प्राण पखेरू तो उड़गा था
कूट कूटकै धोयां और निचोयां पाछै तो खाली फूई बंची थी
झूठोई सूर बीर होर्'यो थो
म्हें था तो धोती की अंटी में अटक्या ही
निधड़क होकै चल्या गया था न्हावणघर में
धोतां धोतां म्हारै भी मुक्को मार्'यो थो
पण मारणियैं की ही दो आंगळी टूटगी, तोबा मारी!
बो ही तेल रगड़ाबो कर्'यो आठ दिन तांणीं
आं जीवां को कै बिगड़ै थो
मेरै कहणै को मतलब है
आज जमानूँ जिसो ळिळपळो हुयो
बिसा ही सिक्का होगा
और बिसा ही कवी, बिसी ही कविता होगी

खैर- सबसे पहले आज आपको मेरी पत्नी
धवल अठन्नी बाई, नहीं अठन्नी देवी की कविता सुणवाता
जिससे मेरा जन्म जन्म तक रहा पती-पत्नी का नाता
पढ़ो अठन्नी देवी ?
एक कांगणींदार पाड़ की धोती बांध्यां
मूँ पै घणीं उदासी लियां अठन्नी बाई आगै आई
हाथ जोड़ती सबनैं कविता इयां सुणाई
"मैं रुपये की अर्धांगिनि थी अब हूँ गोली बांदी
कोई दुस्ट निकाल लेग्या मेरी सारी चांदी
बिसम आर्थिक संकट आया आई ऐसी आंधी
सब जग बना रहस्य समय की गति न किसी ने बांधी
प्रियतम के ही साथ आज मैं पड़ी खाट पर मांदी
कोई दुस्ट निकाल ले गया मेरी सारी चांदी

वाह वाह अठन्नी देवी!
मेरा सारा घाव हर्'या कर दिया
पण इब भूल ज्याणैं में हीं सार है
हां तो अब पावली बाई की कविता सुणो
सुणतां हीं पावली बाई स्टेज पै आई
कमर कुछ तो झुक्योड़ी थी कुछ और झुकाई
सफेद बुरकि धोती को पल्लो खींचकै बोली- "मैं क्या बोलूँ
आज हृदय की गाठों को मैं कैसे खोलूं ?"
एक चुलबुलो श्रोता बोल्यो-
"अरै बावळी हिरदै की गांठाँ नैं पैल्यां तू इतणीं उळजाई क्यूं थी"

हां- तो मेरी कविता है जग छाया
जग छाया काया छाया मन क्यों भरमाया ?
कहीं धूप है कहीं छांवली, कहीं अठन्नी कहीं पावली
कहीं सयानी कहीं बावली, सब प्रभु की माया
जग छाया काया छाया, मन क्यों भरमाया

वाह क्या बात है पावली बाई
इसी जोर की कविता सुणाई क
आदां'क कै समज में आई, आदां'क कै कोनी आई
अब नई पीढी को दस पीसो आपकी कविता सुणावैगो
कविता कै सागै सागै आपको उपनाम भी बतावैगो
पावली बाई बेठी भी नहीं थी क
दस पीसियो खड़्यो होतो होतो पावली बाई सैं टकरागो
पावली बाई तो आखड़कै भी सम्हळगी
पण दस पीसियै को पजामूँ फाटगो
पाछै भी हिम्मत बटोरकै कविता सुरू करी-
"नाम तो मेरो दस पीसो है
पण कवितां में मेरो उपनाम पोस्टकार्ड है"
जनम सैं प्रयोगवादी होकर भी कर्म सैं प्रगतिवादी हूँ
क्यूँक मेरो नाम पोस्टकार्ड है
मुरारजी देसाई सरीखा मेरा गार्ड है
छोटै कवियां नैं बै घणूँ बढ़ावो देवै
जींसैं हीं मेरी उन्नति होती गई कीमत चडती गई
छै पीसां सै सीदो दस पीसां पै आगो
जद तो इबार पावली बाई सैं हीं टकरागो!
तो बोल मुरारजी भाई की जे, हां तो कविता है-
मैं दस पीसो मैं पोस्टकार्ड
मैं घूम्यायो सब नगर गांव, सब गळी गळी सब ठौर ठांव
मैं फिरतो ही रूं बण्यो लार्ड, मैं पोस्टकार्ड-०.
गाडी देखी देख्यो जहाज मेट्रो लिबर्टी और नाज
बासो देख्यो, देख्यो गेलार्ड, मैं पोस्टकार्ड-०.
बोल मुरारजी भाई की जै।

दस पीसै के बाद पुराणूँ टकड़ो आकै कविता गाई
"अब हम हैं किस काम के ?
वैसे भरी जवानी में भी हम थे चार छदाम के
बिधना से मोटापा पाया, पर वह भी कुछ काम न आया
चलते ही लड़खड़ा गये हम, औंधे गिरे धड़ाम से
अब हम हैं किस काम के!
हलवाई ने हमें टटोला, वर्षों तक हमने घी तोला
नये बाट आकर अब हमको भक्त बना गये राम के
बोल सिया राम सिया राम सिया राम"

इबकै एक हास्यरस कै एक पुराणैं कोचकै हाळै
पीसै को लंबर आयो तो पबलिक हांसी
आतां हीं फल्डाटै सैं बो कविता पडणीं सुरू कर दई
"रै मेरो काळजो काडकै कुण लेगो रे ?
रै मेरै बीच में कोचको कुण करगो रे ?
रै ईं जग में मैं हीं इतणूं फूट्योड़ो तकदीर-
कियां लेकर आयो जो सनीवार की सनीवार
डाकोतां कै तेल सैं भर् योड़ै लोटै में
सै ज्यादातर मन्नैं हीं पटक्यो!
बर बर में तेलिया न्हांण कर उखतागो रे
रै मेरो काळजो काडकै कुण लेगो रे!"

इबकैं घणीं नई पीड़ी की तीन पीसड़ी
गीत सुणावनैं माइक पै आगै आई-
"मैं किसको लिख भेजूँ पाती
प्रियतम एक फूँक मारे तो मैं चौराहे तक उड़ जाती
मैंने क्या पाया जीवन में, भरी हुई कुण्ठाएँ मन में
पांचों बहिनें पर हाथों में जा प्रियतम को पान खिलाती
मैं किसको लिख भेजूँ पाती"
एक मसकरो श्रोता बींकै सुर में हीं सुर मिला
दूर सैं गावण लाग्यो
"क्यूँ कररी तूँ रोटी ठंडी खा क्यूँ ले नां ताती ताती"
"मै किसको लिख भेजूँ पाती!"

चांणचके ही बठै मंच पै भगदड़ सी माची
सब कवियां अर श्रोतावां में फुसफुसाट सी होवण लागी
कवियां कै मंच पै नोट सौ को आगो थो
सभापती जी खुद स्वागत करबानैं भाग्या
आवो आवो अठे पधारो
घणैं दिनां सैं थारा दरसण मेळा होया
इब तो थे भी माइक पै आकरकै कुछ इमरत बरसावो
"हां हां- थे भी कुछ सुणवावो" का ही रोळा होवण लाग्या
आग्रह सुणकै सौ को नोट घणूँ सुसकातो
अर थोड़ी हेकड़ी जतातो
खड़्यो हो’र माइक पकड़्यो तो सब चुपचाप स्यांत होगा था
जाणैं कोई चिड़ियां में भाठो पड़गो हो

"क्षमा कीजियेगा हमको कुछ देर हो गई
वैसे इन सम्मेलनादि में मैं बिलकुल नहिं आता जाता
आप जानते हैं मुझको कितने दतर संभालने पड़ते
छोटे छोटे फंक’शंस में आने की फुरसत ही नहिं मिलती
आज बैंक की और दफ्तरों की छुट्टी थी
सोचा चलो चलै हो आयें
कितनां काम करना पड़ता है
सच पूछो तो वर्षों से तो बाल कटाने की
फुरसत भी नहीं मिली थी
अभी अभी मैं बाल कटाकर ही आया हूँ
देखो पहले से कितना छोटा लगता हूँ
पहले से शायद कुछ सुन्दर भी लगता हूँ
एक सरोता हाथ जोड़तो उठ्यो’र बोल्यो-
"माई बाप, कविराज
आपको कांईं बाळ बढाणूँ, कांईं बाळ कटाणूँ
सांची तो या है क आपतो-
दोन्यूँ रूपां में हीं म्हांनैं घणां प्यारा लागो हो
जांणैं थानैं काळजियै सैं हीं चिपकाल्यां"

ठीक है, ठीक है, हां तो बच्चों!
कविता तो हम आज आपको क्या सुनवायें
वैसे तो हमनें जीवन भर बहुत कहा है
कहने को बाकी अब कुछ भी नहीं रहा है
फिर भी कुछ दो-चार पंक्तियां कह देता हूँ
"भांति भांति के फूल धरा पर खिलते मिटते फिर खिलते हैं
किन्तु अंत में आकर के ये सब मेरे में हीं मिलते हैं!"
यह रहस्यवादी रचना है
वैसे रहस्यवादी बहुत हुए हैं
एक थे नां कवि निराला ?
उससे हमारी खूब चलती थी
मुझे देखकर तो उसकी आंखें जलती थीं
"नहीं माई बाप निराला जी सैं
आपकी कविता घणीं भारी पड़ै
आप तो आप हो, सब कवियां का साक्षात बाप हो!"

सुणकै सब ताळियां बजाई
सौ को नोट झूमतो-अकड़तो
सभापति जी कै गींडवै पै जाकै बैठ्यो
इब इत्तै बड़ै कवि कै बाद कविता कुण सुणावै
सभापति जी कई जणां नै बुलावै
(पण) कोई भी आगै नीं आवै
सभापती जी खुद भी सिट्टी पिट्टी भूल्या
लाचार होकै कवि-सम्मेलन खतम करणूं पड़'यो-

सम्मेलन खतम होतां हीं
और और कवि तो बापड़ा अळसायोड़ा सा मूं लेकै
आप आपकै रस्तै लाग्या
और घणां सारा श्रोता भेळा होकरकै
सौ कै नोट कवीं नैं च्यारूं कानीं सैं हीं घेर लिया
बै घणीं घणीं तारीफ करै अर न्यूंता देवै
"आपकी बोली में तो सा कांई मिठास है
आप सामैं खड़'या भी कित्ता सोवणां लागो सा
आपनैं काल म्हांरै घरां हीं चाय पीणीं पड़ैगी
मेरी वाइफ तो थारी भौत तारीफ सुणराखी है
पण आज तांणीं थानैं देख्या नीं है
बा थांसूं घणूं प्रेम करै है"

"एक वाइफ ही के आँपै तो सारी दुनिया मरै है"
थारै दरसणाँ नैं सब तरसै है
जीं घर में आप जावो बठे इमरत को में बरसै है
थारी जीत सैं हों ये सारा दीवा परकासै है
थे हाँसो तो सारी दुनियां हाँसे है
सो, हे सौ का नोट कविराज
जिसा थे आज कवि-सम्मेलन नैं टूठ्यो,
बिसा सबनैं टूठियो
कहतै सुणतै नैं अर हुँकारा भरतै नैं
सैं नै टूठियो।



'टसकोळी' (1972)

_________________________________________

(0.) रेजगी = चिल्लर; (1.) मुळकायो = मुस्कुराया; (2.) ताणीं = तक; (3.) लैर्'यां = पीछे; (4.) कानीं कानीं = सब तरफ, इधर-उधर; (5.) कमेच = कमीज़; (6.) गोजी = जेब; (7.) भेळो = सिकुड़ा हुआ; (8.) ळिळपळो = लिजलिज़ा; (9.) आखड़कै = लड़खड़ा कर; (10.) कोचकै = छेद, छिद्र; (11.) हाळै = वाले; (12.) फल्डाटै सै = फुर्ती से; (13.) काडकै = निकाल कर; (14.) ताती = गर्म; (15.) चांणचके = अचानक; (16.) रोळा = हो-हल्ला, शोरगुल; (17.) भाठो = पत्थर; (18.) गींडवै = मसन्द,गद्दी; (19.) अळसायोड़ा = बासी, उदास, लिजलिज़ा; (20.) टूठ्यो = कृपा बरसाई (मुख्य रूप से गणेश देवतादि की कथाओं के अंत में कहा जाने वाला नियमित वाक्य, मसलन "जैसा फलां-फलां पर टूठ्या बीसा म्हारे पर भी टूठियो, हम पर भी वैसी कृपा बरसाना)




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अरै रूसियों! रै बेटी का बापों के अकरम करर् या हो
सुणी है क थे आज चांद पै जाणैं की त्यारी करली है
बींटै पै पेटी धरली है

ल्यूना ९ पूँचके चाँद पै थानैं कुछ फोटू भेजी है
बाँ तसबीरां सैं बिलकुल बेरो पट्टै है (क)
चाँद देस की बीं धरती पै भौत घणाँ खाडा-खाळिया है
ज्वालामुखी पहाड़ रेत की पड़तां अंदर
बड़ा-बड़ा है कई समंदर
ना कोई माणस, ना कोई बंदर
ना कोई मैजत, ना कोई मंदर
ऐंया की सुनसान जगां में
ल्यूना ९, जाकर ऐयां हीं बोल्यो होसी
गोरख आयो जाग मछंदर!

हाँ और बात तो ठीक हो सकै
पण ल्यूना ९, खाडा-खळिया की फोटू कैंयां क्यूँ भेजी
अरै रूसियों कहद्यो
या खाडा-खळियाँ हाळी फोटू बिलकुल झूठी है
क्यूँक जद सैं ये फोटू अखबाराँ में अखबाराँ हाळा छापी
जद सैं सारा छायावादी कवि मूदै माथै पड़गा है
बांकै सौ-सौ सांप काळजै में लड़गा है!
कई लाज सैं झुक धरती कै मां गडगा है! 
पण चोखोजी, बांको भी गिरगिराट मिटणूँ  चाये थो
बै इबताणी स्हैज घाल रखी थी घाई
घर की हो चाये पर की हो
दीखी चाये कोइ सोवणीं सीक लुगाई
बींकै ही मूँडै को बरणन करी चांद सी सुन्दरताई
इब निरखो बा सुन्दरताई!
इब तो माता सैं ही बीज्योड़े मूँडै का खाडा-खाई
मेरै सा ही काळा-कळजाया’र सूगली सी सूरत का
पावैगा सुंदरता में चांद सैं बड़ाई
इब थोथा ही सुपनां ल्यो सोवणीं लुगाइ

हाँ एक बात म्हें नई सुणी है क
फोटू सैं थानैं बिलकुल बेरो पटगो है, क
आदो चांद उजाळै में है
और दूसरी कानी बिलकुल अँधेरो
वारै मोथों! थानैं इब पट्टयो यो बेरो ? रै ना समजों!
यो अंधेरो और च्यांनणूँ सैंकै ही सागै रै है
कोई कै पीछे कोई कै आगै रै है
पण यो अंधेरो और च्यानणूँ तो सैं कै ही सागै रै है
अरै रूसियों! इब आगै तो ध्यांन राखियो
मावस कानी हाळो हिस्सो छोड़ लैरनैं
इब तो पून्यूं हाळै कानीं सैं हीं चढियो!

एक बात फोटू में इ सैं भी बढकर है
कि चांद, देस की बीं धरती पै हवा-तवा ही कोनी दीखै
इब काळै होगो ना डबको!
म्हें तो जद भी बींपर जाणैं की सोचै था
खाली सुद्व हवा ही खाणैं की सोचै था
और चांद पर कुणसी सजनगोठ होरी है ?
कुणसा धोया धोया थाळ परोस दिया.......... गावै है कोई
कुणसी बठे ल्हकोवैगी जूतियाँ, साळियां
जणां हवा ही कोनीं तो के खावांगा जी
धूळ खांणनैं तो दुनियाँ हीं भौत बडी है!
बीं फोटू सैं एक बात थे नई बताई
क, चांद देस में सोनूं मिलणैं की चानस है
या हथियार उठाकै पैलो
इबकाळै मार्यो है थे अमरीका कै नैलै पै दैलो
आछ्यो नयो बतायो गैलो!
पण जे थे मन्नैं थारै ईं  दूतालय सैं
चुपकै सी कुछ रिपिया दिवाद्यो
तो मैं थानैं मेरे देस को भेद बताद्यूँ
सोनै की खबरां पै प्रतिक्रिया भारत की
मैं थानैं सारी समझाद्यूँ
क्यूँ राजी हो नाँ ? तो इब सुणल्यो
जद सैं बठे चांद कै ऊपर
सोनूं मिलणैं की बातां छापां में आई
बस जदसैं ही भारत का मुरारजी भाई
आंख फाड़कै लगा टकटकी सदा चांद कानीं हीं देखै
खाता पीता सोता उठता, मूँडो सदा बठीनैं राखै
सोचलियो थे, खैर नीं है
थारै पैली ये जे बठे पूँच ज्यावैगा
तो जद थे के भलै भरोगा ?
थे ढूँढोगा जद ताणीं तो चौदा कैरट को पावैगो।

अरै रूसियों ! ये सै बातां तो थारी फोटू हाळी है
इब मैं थानैं मेरै मन की बात बता द् यूँ   
चावो तो थानैं समझावूँ
क, ईं धरती पै सैं सैं ज्यादा थानैं ही दुख होर्यो है के ?
थे निचला बैठ्या रो भाया
बेगा बेगा भाग मनां ऊपर नैं जावो
और चांद पै पूँच मनां चांद नैं लजावो
भारत की भोळी ढाळी कांमणियां का थे-
मनां चौथ का बरत छुटावो!
अरै रूसियों!

'टसकोळी' (राजस्थानी हास्य-व्यंग्य कविताओं अनूठा संग्रह) पुस्तक की पहली कविता,
दिसम्बर १९७९ (1972)
अनुपम प्रिण्टर्स, 
झुंझुणू (राजस्थान)

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विमलेश


विश्वनाथ शर्मा 'विमलेश' राजस्थान के झुंझुनू जिले से हैं | विमलेश ७० के दशक के राजस्थानी भाषा के एक शानदार कवि थे | अपने समय में 'विमलेश' जी ने कई राष्ट्रीय स्तर के कवि सम्मेलनों में शिरकत की | इन्हें "काका हाथरसी" सम्मान से भी नवाज़ा गया | इन्होने राजस्थानी भाषा में कई हास्य-व्यंग्य कविताओं की रचना की है | शेखावाटी अंचल से संबंध होने के कारण इनकी कविताओं में शेखावाटी बोली का प्रभाव अधिक है |


प्रसिद्ध हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा विमलेश को अपना प्रेरणा स्रोत मानते थे | सुरेन्द्र शर्मा की कविताओं में 'विमलेश' का अक्स अत्यधिक देखने को भी मिलता है | विमलेश की कुछ खास रचनाएँ इस प्रकार हैं,



रामकथा (राजस्थानी में राम काव्य)

नो रस में रस हास्य (हास्य कविता संग्रह)

शकुंतला (प्रबंध काव्य)
गीता (राजस्थानी पद्यानुवाद)
सतपकवानी (राजस्थानी कविता संग्रह)
छेड़खानी (राजस्थानी कविता संग्रह)
कुचरणी (राजस्थानी कविता संग्रह)
ठिठोऴी (राजस्थानी कविता संग्रह)
टसकोऴी (राजस्थानी कविता संग्रह)
कुछ हँसना कुछ रोना (गीत संग्रह)
वेदना (कविता संग्रह)
प्राणों की छाया (गीत संग्रह)
विकास गीत (विकास सम्बन्धी रचनाएँ)
अनामिका (लघु काव्य )
मैंने क्या क्या किया (हास्य कथा संग्रह)
एक मिनिस्टर एक छिपकली (राजस्थानी कविता संग्रह)



'विमलेश' सेवा निवृति तक झुंझुनू शहर के सेठ मोतीलाल महाविद्यालय में कला संकाय में विभागाध्यक्ष के पद पर रहे | शराब के प्रति उनके लगाव और अक्खड़ स्वभाव के कारण उनकी बहुत से रचनाएँ अप्रकाशित भी रह गयीं, वे एक जबरदस्त आशुकवि भी थे | उनकी रचनाएँ ज्यादा लोगों तक नहीं पहुँच पाने का एक कारण राजस्थानी भाषा में साहित्यिक विकास के प्रति लोगो में उपेक्षा का भाव होना भी है | उनके राजस्थानी साहित्य के योगदान को देखते हुए यही कहा जा सकता है की उनको राष्ट्रीय कवि होने बावजूद क्षेत्रीय स्तर पर उन्हें उतनी ख्याति नहीं मिल सकी जिसके वे हक़दार थे |



कुछ वर्ष पूर्व तक मेरी लायब्रेरी में उनकी दो रचनाएँ "एक मिनिस्टर एक छिपकली" और "टसकोऴी" शोभायमान थीं | परन्तु उनमे से पहली वाली रहस्यमयी तरीके से गायब हो चुकी है और अत्यधिक पुराने संस्करण होने दूसरी भी क्षण-भंगुर अवस्था में है | परन्तु इसे मैंने कुछ वर्ष पूर्व कम्प्यूटरीकृत कर लिया था | यहाँ मैं "टसकोऴी" की ही कुछ रचनाएँ साझा करूँगा | मित्रों से आग्रह है की यदि उनके पास विमलेश की अन्य रचनाएँ है तो वे मुझसे संपर्क करें, मैं उनका आभारी होऊंगा |



विमलेश के व्यक्तित्व संबंधी जानकारी मेरे पास बहुत कम है लेकिन उनका निधन, जहाँ तक मुझे अंदाजा है, करीब १९९२-९३ के आस-पास हुआ | आगामी कुछ कड़ियों में "टसकोऴी" की कुछ कवितायेँ पोस्ट करूँगा |

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Thursday, May 12, 2011

कहावत किताब

          पिछले दिनों हमारे शहर के राजकीय पुस्तकालय में नेशनल बुक ट्रस्ट की प्रदर्शनी लगी | बहुत ज्यादा बड़े स्तर की तो नहीं थी पर किताब प्रेमी को तो इतनी सुगंध भी ख़ुशी देती है, कागजों में आने वाली इस सुगंध को वे सब लोग अच्छी तरह पहचानते हैं जो पुस्तकालय, किताबों की रैक या पुराने कार्यालयों में पड़ी गठरियों के आस-पास टहलने का अनुभव ले चुके हैं | खैर, मैंने भी अपनी रूचि के हिसाब से कुछ किताबें लीं | दूसरी ख़ुशी ये देखकर हुई कि एनबीटी की सभी किताबें काफी सस्ती दरों पर उपलब्ध हैं | चेक आउट डेस्क पर पहुँचने पर 50/- में सदस्यों को मिलने वाली छूट का पता लगा तो लगे हाथ हम एन.बी.टी. क्लब के सदस्य भी बन लिए, बिल थोडा और हल्का हो गया |

          खरीदी गयी सभी किताबों में जो थोडा हटके लगी वो थी एस. डब्ल्यू. फैलन की हिन्दुस्तानी कहावत-कोश, अनुवादक और संशोधक कृष्णानंद गुप्त | मूलत: यह स्व. एस. डब्ल्यू. फैलन का प्रसिद्ध ग्रन्थ ए डिक्शनरी ऑफ़ हिन्दुस्तानी प्रोवर्ब्स, सेईंग्स, एम्ब्लेप्स, एफेरिज्म्स है | अनुवाद में कहीं कोई कमी नहीं लगती बल्कि पढ़कर बहुत मज़ा आ गया सो मित्रों से शेयर करने को जी किया | इस पुस्तक में बहुत सी देशी कहावतों का मजेदार संग्रह है और हमारा तो कहावतों के सम्बन्ध में भी काफी ज्ञान बढ़ गया इसे पढ़कर | जहाँ एक और हर कहावत का अर्थ तो समझाया ही गया है वहीँ जरुरत पड़ने पर लोकोक्तियों के साथ जुडी घटनाओं का उल्लेख भी किया गया है |





पुस्तक से निकाली कुछ देशी और ग्रामीण चुहलबाजी की लाईनें,

शिकार के वक्त कुतिया हगासी
काम के वक्त बहाना बनाकर ग़ायब हो जाना

शुगल बेहतर है इश्कबाज़ी का, क्या हकीकी और क्या मजाज़ी का
इश्कबाज़ी का धंधा ही अच्छी चीज़ है फिर चाहे वह अध्यात्मिक हो या लौकिक

१. सारी रात मिमियानी और एक ही बच्चा ब्यानी, (स्त्री.)
२. छ: महीने मिमियानी, तो एक बच्चा बियानी, (ग्रा.)
चिल्ल-पों बहुत पर काम कुछ नहीं

चौबे मरें तो बन्दर हों, बन्दर मरें तो चौबे हों
मथुरा के चौबों पर व्यंग्य में क. | वहां चौबे और बन्दर दोनों ही बहुत हैं

चुचियों में हाड़ टटोलना
जो वस्तु जहाँ है ही नहीं, वहां उसे तलाश करना

गधा गिरे पहाड़ से, मुर्गी के टूटे कान
एक असंबद्ध बात

रांड के चरखे की तरह चला ही जाता है
जो काम कभी रुके ही नहीं, अथवा जो आदमी हमेशा चलता-फिरता ही रहे उसे

कुत्ता पाले वह कुत्ता, सास घर जंवाई कुत्ता,
बहन घर भाई कुत्ता, सब कुत्तों का वह सरदार, जो रहवे बेटी के द्वार
स्पष्ट | जंवाई = दामाद |

पहले चुम्मे गाल काटा
किसी आदमी को पहले-पहल कोई काम सौंपा जाये, और वह उसे चौपट कर दे

पहले पीवे जोगी, बीच में पीवे भोगी, पीछे पीवे रोगी
(१) तमाखू पीने के लिए
(२) भोजन के समय पानी पीने के लिए भी कुछ लोग कहते हैं, पर इस सम्बन्ध में यह कहावत का कोई अंतिम वाक्य नहीं है |

राजा का दूजा, बकरी का तीजा दोनों खराब
राजा के दो लड़के हों तो वे राज्य के लिए आपस में लड़ते हैं,
बकरी के तीन बच्चे हों तो वे भरपेट दूध नहीं पी सकते, क्योंकि उसके दो ही थन होते हैं

रानी गईं हाट, लाईं रीझ कर चक्की के पाट
क्योंकि उन्होंने चक्की का पाट कभी नहीं देखा था | बड़े आदमियों की सनक |

रात पड़ी बूँद, नाम रखा महमूद
रात में ही गर्भ रहा, लड़के के होने में नौ महीने की देर, पर उसका नामकरण कर दिया |
काम के होने के पहले ही अपनी इच्छानुसार उसके नतीजे भी निकाल लेना |

राम के भक्त काठ के गुड़िया, दिन भर ठक-ठक, रात के घुसकुरिया, (भोजपुरी)
उन वैष्णव पुजारियों पर व्यंग्य जो दिन में भगवान् के नाम की माला जपते हैं और रात में दुष्कर्म करते हैं

दीवाली के दिए चाटकर जायेंगे
मुफ्तखोरों के लिए क. |

मुसलमानी में आना कानी क्या ?
जो काम करना ही है उनमें हीले-हवाले की जरूरत क्या ?
मुसलमानी = मुसलमानों की वह रस्म जिसमें छोटे बालक की इन्द्रिय पर का कुछ चमड़ा काट डाला जाता है | सुन्नत |

मुल्ला की दाढ़ी तबर्रुक में गई (मु.)
वाहवाही में सब धन लुट गया|
(कथा है कि कोई मुल्ला यादगार के तौर पर चेलों को चीज़ें बाँट रहे थे | यह देखकर एक मसखरे ने कहा कि मुल्ला जी आपकी दाढ़ी हमेशा मुझे आपकी याद दिलाती रहेगी | यह कहकर उनकी दाढ़ी में से उसने एक बाल उखाड़ लिया | यह देखकर सभी चेले आगे बढे और मुल्ला के बहुत मना करने पर भी उन्होंने एक-एक बाल करके उनकी सारी दाढ़ी नोंच डाली |)

मुल्के खुदा तंग नेस्त, पाये मरा लंग नेस्त, (फा.)
इश्वर का मुल्क थोडा नहीं है और मैं भी पैरों से लंगड़ा नहीं हूँ | किसी उद्योगी पुरुष का कहना, जिसे काम से जवाब दे दिया गया है |

गर्मी की दोपहरी में आराम करते हुए इस पुस्तक को पढना मुझे बड़ा आनंद देता है |

Tuesday, April 19, 2011

भारत ने एक बार फिर कड़ा रुख अपनाया है |


* भारत ने एक बार फिर कड़ा रुख अपनाया है |
* भारत ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है की मुंबई 26/11 के हमलावरों को बख्शा नहीं जायेगा |
* अमरीका ने फिर माना भारत एक बड़ी ताकत |
* ओबामा ने माना भारतीय युवाओं का लोहा |
* भारत दुनिया के पांच सबसे शक्तिशाली देशों में |
* भारतीयों ने मनवाया लोहा |
* भारतीय बच्चे अमरीका में अंग्रेजी बोलने में आये फर्स्ट |
हिलेरी ने मारे हिलोरेहिलाने की ताकत विश्व अर्थव्यवस्था को, भारत में |
* भारत ने लिया ठेका विश्व अर्थव्यवस्था को मंदी से उबारने का | यूरोपियन संघ ने किया स्वागत |

- भारतीय युवाओं के **** पर लात पड़ी आस्ट्रेलिया में |
भारतीय छात्र को नस्लभेदियों ने आस्ट्रेलिया में मारकर लाश भेजी इंडिया में | भारतीय अधिकारी दल "इस मामले की बाबत आस्ट्रेलिया से करेगा बात |"
- भारतीय युवा जानवरों की तरह केलिफोर्निया में रेडियो टेग पहने को मजबूर | भारत ने जताया कड़ा विरोध |
- भारतीय बच्चे भारत में हिंदी बोलने में हो गए फेल |
- भारत ने मुद्दा उठाया | भारत ने मुद्दा बिठाया |
- भारत का बातचीत से इनकार | भारत चाहता है शांतिपूर्ण वार्ता |
- मनमोहन ने माना भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या | (जबकि) राहुल ने माना हिन्दू आतंकवाद सबसे बड़ी समस्या |
- मनमोहन ने महंगाई को तीन महीने में जमीन पर लाने का किया वादा |
ब्रिक्स देशों ने डॉलर पर निर्भरता कम करने का जताया विचार, मनमोहन ने कहा अमेरिका हमारा यार | (क्योंकि बिना अमरीकन फार्मूला बोले तो भारत में कोई क्रीम भी नहीं बिकती)
- चीनी सैनिकों ने भारतीय सीमा में बेंगन गिराए | भारत की खुल गयी पोल |
- चीन ने कश्मीरियों को नत्थी वीजा देना रखा जारी | भारत ने जताया कड़ा विरोध |
- भारत 2050 तक होगा विश्व की महाशक्ति | नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी |
- भारत हो जायेगा 2050 तक "अनुराधा" (नॉएडा )* की तरह कंकाल | योगेन्द्र सिंह ने जताया विचार |










(भारत ने एक बार फिर कड़ा रुख अपनाया है |
-विदेश मंत्री एस. एम. कृष्णा ने एक बार फिर भारत का रुख साफ़ कर दिया है |)