Monday, June 1, 2009

कुत्तों का वर्गवाद (Classism in Dogs)

हमारी गली में कई आवारा कुत्ते घूमते हैं, मोहल्ले के लोग जो बचा-खुचा बाहर डालते हैं उसी से इनका गुजारा होता है. कोई ५-६ के करीब इनका ग्रुप होगा. ये सब मिलजुल कर रहते हैं. लगभग हर गली मोहल्ले में ऐसे कुत्ते दोस्तों का ग्रुप मिल जाता है.

एक दिन हमारे मोहल्ले में दूसरे मोहल्ले का कुत्ता आ गया, हमारी गली के गैंग के कुत्तों के कान खड़े हो गए वैसे तो उनकी नाक तेज़ होती है लेकिन नाक की हरकत को हम साधारण मनुष्य अपने चर्म चक्षुओं से नोटिस नहीं कर पाते हैं. एक कुत्ता उस नए कुत्ते की तरफ भागा और उसकी तरफ दांत निकाल कर लगभग १-२ फीट की दूरी पर खडा होकर गुर्राने लगा. शोर-शराबा सुनकर टीम के दुसरे कुत्ते भी पहुँचने लगे. अब २-४ और होने पर हमारे वाले कुत्ते की हिम्मत बढ़ गयी और वो उस नए कुत्ते के ऊपर झपटने लगे. नए वाले कुत्ते की मार-कुटाई शुरू हो गयी वो दुम दबाये कभी उधर गिरता कभी नाली में पड़ता, ३-4 मिनट के एकतरफा मुकाबले में उसको काफी चोटें आयीं. शरीर पर कई जगहों से खून निकल रहा था. अब तक हमारी गली वाली पूरी टीम एक्शन में आ चुकी थी और वो सब उसको ऐसे धो रहे थे जैसे उसने गली में घुसकर गली का राष्ट्रीय सुरक्षा कानून तोड़ दिया है और वो उसका रिमांड ले रहे हैं.

ऐसा वाकया कई बार देखने को मिलता है, ऐसी परिस्थितियों में ज्यादातर दो ही बातें सामने आती हैं, पहली, या तो नया वाला कुत्ता गली से पलायन कर जाता है, और दूसरी ये की वो कुछ दिन मार खा-खा कर, थोडी दुम दबाकर, थोडी दुम हिलाकर और थोड़े दिन विनम्रतापूर्वक (असल में गुलामी) व्यवहार रखकर उनकी टीम में अपने लिए जगह बनाने में कामयाब हो जाता है. क्योंकि वो नया कुत्ता किसी कारण से ही अपने पहले वाला एरिया छोड़कर आता है इसलिए उसको कहीं न कहीं तो आसरा लेना होता ही है तो ज्यादातर दूसरी वाली घटना ही घटती है.

असल में हम मनुष्यों में भी हमारे आदिकाल वाले पाशविक गुण अभी तक पूरी तरह नहीं गए हैं, समय समय पर वो उभर आते हैं और अपना रंग दिखाते हैं.

कभी ऑस्ट्रेलिया वाले कुत्ते तो कभी इंग्लैंड वाले कुत्ते, कभी गोरे कभी काले कुत्ते, कभी-कभी तो कुछ हलके लेवल वाले, हाँ !!!, ये हलके लेवल वाले कुत्ते जो नेशनल लेवल से भी नीचे गिर चुके होते हैं, राज्य की सीमाओं में भी लड़ते हैं. पिछले दिनों न्यूज़ पढ़ी कि दक्षिण भारत के कुत्तों ने उत्तर भारत के कुत्तों को, जो वहाँ एक मजबूत गुट के रूप में उभर रहे थे, मार-कूट कर ट्रेनों में भरकर वापस उत्तर भारत भेज दिया, क्या कर सकते हैं, क्षेत्रं प्रधानम.

वैसे पश्चिमी देशों के कुत्तों में ये ज्यादा ही देखने को मिलता है, क्योंकि वो ज्यादा developed और civilized society के हैं. वो पूर्व वाले कुत्तों को SC/ST में भी नहीं मानते. लेकिन फिर भी पूर्व वाले कुत्ते किसी न किसी कारण से वहाँ अपने लिए एक बेहतर कल देखते हैं और चले जाते हैं और अपने विनम्र व्यवहार, जो कि असल में गुलामी व कायरता वाला होता है जिसे कि वे अहिंसा, शांतिप्रियता, etc. बताते हैं, से वहाँ settle होने में कामयाब हो जाते हैं.

यार ये हमारा कुत्तापन कब मिटेगा, लडाई वाला हो या गुलामी वाला है तो कुत्तापन ही. हमारे अन्दर आदमीपन कब आएगा.

शायद अभी हम आदमी बने ही न हों, शायद विकास का क्रम अभी चल रहा है. हो सकता है कि शुरुआती दिनों के कुत्ता वैज्ञानिकों ने पता लगा लिया हो और TV पर एनीमेशन के जरिये ये दिखाना शुरू कर दिया हो कि देखो एक दिन हम इस अवस्था में पहुँच जायेंगे जिसे आदमी नाम दिया जायेगा. ये सब देखकर उन दिनों के कुत्ते सुखद कल्पनाओं में खो जाते होंगे और Self Hypnotism में चले गए होंगे, और धीरे-धीरे कालांतर में कुत्ते अपने असली स्वरुप को भूल गए और खुद को आदमी समझने लग गए.

और जैसा कि जुंग ने जिसे Collective Unconscious कहा है, शायद ये कुत्ते वाले गुण वहीं से आ रहे हैं. मेरे ख्याल से अभी हम कुत्ते और आदमी के बीच वाली किसी अवस्था से गुजर रहे हैं.

-योगेन्द्र