Monday, June 27, 2011

नलिन का जादू

          कल रात और आज दोपहर मैंने नलिन कुमार पंड्या (Pan Nalin) की क्रमशः 'समसारा' और 'वैली ऑव फ्लोवर्स'  देखीं | दोनों फिल्में नलिन कुमार पंड्या (Pan Nalin) की बनायीं हुई हैं, कहानी भी उनकी ही लिखी हुई हैं | सबसे पहली बात जो मैं कह देना चाहता हूँ वो ये : इतनी हसीन, इतनी शांत, इतनी सुन्दर, इतनी खूबसूरत कल्पनाएँ, इतना सुन्दर छायांकन | ये पंड्या का जादू था या लद्दाख की वादियों का, ठीक से कह नहीं सकता | अगर इन फिल्मों में प्रेम अंश या कशिश की बात करें तो उसमें भी टाईटेनिक या यश चोपड़ा आदि नलिन के आगे पानी भरते नज़र आते हैं | मेरी नज़र में बॉलीवुड में अगर कोई कमर्शियल फिल्म जो इन दोनों फिल्मों के आस-पास कहीं नज़र आती है तो वो सिर्फ अनुरानन है | संयोग की बात ये की 'अनुरानन' भी हिमालय की वादियों में ही घुमती रहती है | तो ये तो मानना पड़ेगा कि हिमालय में पक्का ऐसा कुछ है जो आपको खींचता है और जाने नहीं देता | पंड्या के बारे में कहा गया है कि उन्होंने खुद पूरे भारत और हिमालय की गहरी यात्रायें की हैं |

          'समसारा' में ताशी (Shawn Ku) नामक एक नौजवान भिक्षु है जो तीन साल के कड़े तप से अभी-अभी बाहर आया है | जो अपने नवयौवन की स्वाभाविक प्रतिक्रियाओं पर दिखावटी संयम की चादर नहीं ओढना चाहता | वह मठ से निकलकर संसार में चला जाता है और पेम (Christy Chung) नामक युवती के साथ गृहस्थ बसाता है | बाद में उसमें फिर से वैराग्य जागता है | वह दुबारा मठ की और लौटने की कोशिश करता ही है कि इस बार रास्ते में वर्तमान की 'यशोधरा' ('पेम' उसकी पत्नी) आ खड़ी होती है जो अपने तर्कों से ताशी के संसार और अध्यात्म के बीच डोलते चितभ्रम को खण्ड-खण्ड करती दिखाई पड़ती है | ये फिल्म मूल रूप से लद्दाखी और तिब्बती भाषा में बनी है पर मैंने इसे हिंदी में देखा | काश मैं तिब्बती समझ पाता !! इसकी पटकथा विश्वामित्र और मेनका की कहानी से भी एक हद तक जुडी हुई है | 'समसारा' एक संस्कृत शब्द है और जिसका मतलब जन्म-जन्मांतर का योनी चक्र बताया है | बार-बार जन्म लेना और मरना | एक चक्र जिससे पार पाना ही लक्षित है, मोक्ष है | भारतीय मनीषा के अनुसार ब्रह्माण्ड की सारी गतियाँ एक चक्र में चलती हैं ना की सीधी | हर चक्र के अंदर कई चक्रों का समूह भी है, मतलब 'यत्पिंडे तत् ब्रह्माण्डे' | दुःख मुझे ये भी है कि समसारा 2001 में रिलीज हुई और मैंने इसे 10 साल बाद देखा |
          'वैली ऑव फ्लोवर्स' (फूलों की घाटी) की कहानी अट्ठारवी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में शुरू होती है | जहाँ एक तिब्बती दस्यु जलन (मिलिंद सोमण) और उसका दल है जो व्यापारियों के कारवां लूट कर अपनी खुद की अलग स्वतन्त्र जिंदगी जीने में विश्वास रखते हैं | पर एक दिन एक अनजान रहस्यमयी सुंदरी उष्ना (उष्ण) (Mylène Jampanoï) उनके दल में आती है | जो जलन को अपने आगोश में लेती ही जाती है और धीरे-धीरे उसको दल से दूर करती जाती है | वो एक रहस्यमयी femme fatale है जिसके पेट पर नाभि नहीं है | उष्ना अपनी उष्णता में जलाती है और जलन जलता है | वो जलन को अमरत्व की गहराईओं में ले जाती है | एक दिन ऐसा अता है जब उष्ना जलन को धोखा देकर खुद मृत्यु को प्राप्त कर लेती है पर जलन को अनंत काल तक अश्वथामा की तरह अमरत्व को एक शाप की तरह भोगने के लिए छोड़ जाती है जलन को दिए इस संताप के कर्म का हिसाब उसे वर्तमान युग में जापान में कहीं जाकर चुकता करना पड़ता है जब जलन उसे दुबारा मिलता है | पर इस बार जलन मरता है और उष्ना फिर से अमरत्व का बोझ ढोने को मजबूर होती है |

          हमेशा की तरह नसीर साहब और कश्यप साहब, दोनों इस जगह भी आ धमके हैं ;-) जहाँ नसीरुद्दीन शाह 'वैली ऑव फ्लोवर्स' में यति नामक एक अघोरी के किरदार में हैं वहीँ अनुराग कश्यप ने इसके हिंदी संवाद लिखे हैं | समसारा नलिन की पहली कमर्शियल फिल्म थी जिसके लिए उन्हें काफी क्रिटिकल अक्लैम और अवार्ड भी मिले हैं | नलिन इन दिनों अपनी नयी फिल्म 'Buddha: The Inner Warrior' पर काम कर रहे हैं | देखें और अधिक विकिपीडिया पर नलिन के बारे में |

          'समसारा' और 'वैली ऑव फ्लोवर्स' दोनों यूट्यूब पर उपलब्ध हैं | 'वैली ऑव फ्लोवर' तो हिंदी में है पर 'समसारा' तिब्बती भाषा में अंग्रेजी के सबटाईटल्स के साथ उपलब्ध है, मैं जल्द ही आज-कल में 'समसारा' का हिंदी वर्जन यूट्यूब पर अपलोड करूँगा और मित्रों से शेयर करूँगा |

'वैली ऑव फ्लोवार्स' का एक दृश्य :


'समसारा' के लिए यहाँ देखें, (चूँकि अपलोड करता द्वारा embed unable है)
http://www.youtube.com/watch?v=k0Q7BPFQs0g

Monday, June 6, 2011

कौन हैं सुनील कुमार !

          तारीख 6 जून, 2011. आज जब ढलती दोपहर को मैं देश के तेजी से बदलते घटनाक्रम पर पल-पल जानकारी लेते हुए न्यूज़ पर पकड़ बनाये हुए था तो उस समय जनमर्दन द्विवेदी की प्रेस कांफ्रेंस का टेलीकास्ट किया जा रहा  था | अचानक एक शख्स अपना जूता लेते हुए द्विवेदी पर चढ़ाई करता हुआ दिखाई पड़ा बाद में जो हुआ सब जानते ही हैं कि उसे पार्टी गुर्गों के द्वारा साईड में ले जाकर धुन दिया गया | देखते ही मुझे चेहरा जाना पहचाना लगा मैंने तुरंत अपने तत्कालीन विद्यालय मित्रों से संपर्क साधा और पूछने पर पता चल उन्हें भी ऐसा ही लग रहा है | कुछ ही क्षण में स्क्रीन पर नाम फ्लेश हुआ सुनील कुमार और अब मेरे लिए शक की कोई गुंजाईश नहीं बची थी खासकर उनके व्यक्तित्व को देखते हुए |

          इस दो-तीन मिनट के घटनाक्रम ने इस सुनील कुमार नामक व्यक्ति को पल भर में पूरे देश में हाईलाईट कर दिया | बाद में तरह-तरह की सियासी बयानबाजियां जो न्यूज़ पर चली उन्हें देखकर मैं हैरान था की लोग बिना जाने सोचे समझे जल्दबाजी में कैसी-कैसी उलटी सीधी बकवास शुरू कर कर देते हैं |

          सुनील कुमार शर्मा काफी समय तक अंग्रेजी के अध्यापक रह चुके हैं | इनका राजस्थान के सीकर और झुंझुनू जिले के विद्यालयों में अच्छा नाम रह चुका है और जो विद्यार्थी इनसे पढ़े हैं वे सब इनके खासे फेन हैं | मैं ऐसे ही एक विद्यालय का विद्यार्थी रह चुका हूँ जिसमें वे पढाया करते थे | हालांकि वे मेरे सेक्शन में नहीं थे पर स्कूल में आने के पहले दिन ही उन्होंने सभी का ध्यान अपनी और आकर्षित कर लिया था | पहले दिन ही प्रेयर असेम्बली में उन्होंने जो फर्राटेदार अंग्रेजी में शानदार जुमलों के साथ अपना परिचय दिया और जो अलंकृत वचन सुनाये तो सभी की उनींदी तन्द्रा टूटी जो अमूमन प्रेयर असेम्बली में प्रार्थना करते-करते सबको पकड़ जाती है |  मैं जहाँ पढ़ा था वो विद्यालय था "झुंझुनू अकेडमी" | यहाँ से पहले सुनील शर्मा जी सीकर जिले के नामी विद्यालय "विद्या भारती" में पढ़ाकर आये थे जिसके मालिक श्रीमान बलवंत सिंह चिराना जी हैं | झुंझुनू एकेडमी से जाने के बाद वे झुंझुनू के ही एक दुसरे बड़े विद्यालय "टैगोर पब्लिक स्कूल" में गए  जिसकी मालिक और पूर्व में इसकी प्रिंसिपल रह चुकीं श्रीमती संतोष अहलावत हमारे यहाँ से विधायक और सांसद के चुनाव भी लड़ चुकी हैं |  इनके अलावा उन्होंने "राजस्थान पब्लिक" स्कूल और शायद एक दो स्कूलों में और पढ़ाया था | ये झुंझुनू के आस-पास कई बड़े स्कूलों में अध्यापन कर चुके हैं क्योंकि इनकी प्रतिभा को लेकर किसी को शक-शुबहा नहीं था |  पर ऊपर बताये गए स्कूलों में से एक भी स्कूल का संघ जैसी संस्था से दूर-दूर तक कोई नाता होगा मैं सपने में भी नहीं सोच सकता उलट इसके ये कह सकते हैं ये सब स्कूलें खासे पूंजीपतियों की रही हैं | "झुंझुनू अकेडमी" स्कूल शुरू से लेकर आज तक उन सीढियों पर तेजी से चढ़ता चला गया है जिसे वर्तमान में सफलता के नाम से जाना जाता है | "झुंझुनू एकेडमी" भी उन्हीं दुसरे और आपके शहरों के बड़े नामी विद्यालयों की तरह ही है जो अपने शहर के पांच सितारा सुविधाओं वाले स्कूलों की श्रेणी में आते हैं | इनकी टेग लाईन है "मेरिट वाला विद्यालय" | पचासों मेरिट देने वाला ये स्कूल आपको अपनी इस दक्षता से आश्चर्यचकित कर सकता पर मुझे तो बिलकुल नहीं | क्योंकि इसके पीछे पूंजीवाद नियंत्रित भ्रष्ट तंत्र का बेजोड़ कर्मठ प्रयास है |

          झुंझुनू अकेडमी के डायरेक्टर श्रीमान दिलीप मोदी आज न्यूज़ चैनल को फ़ोन पर कुछ ये बताते सुने गए कि सुनील शर्मा फर्राटेदार अंग्रेजी से लोगों पर झूठा प्रभाव ज़माने वाले और मानसिक रूप से थोडा डिस्टर्ब इंसान है और इसलिए उन्हें निकाल दिया गया और अन्य जगहों पर भी उनके साथ ऐसा ही हुआ | पर मैं श्रीमान मोदी जी से इतर विचार रखता हूँ | एक शब्द में अगर बयां करना हो तो कह सकते हैं कि ज़माना जिसे ज़मीर वाला इंसान कहता है सुनील कुमार वही शख्सियत है | बेबाक और अपने जज्बातों को पूरी तरह से अभिव्यक्त कर देने वाला आदमी कभी-कभी समाज में बीमार की संज्ञा पाता है और उसका बयां सच लोगों को हज़म नहीं होता इसमें कोई दो राय नहीं |

          जिस साल सुनील सर मोदी जी के स्कूल से गए, असलियत में उस समय उन्हें निकाला नहीं गया बल्कि उन्होंने खुद स्कूल छोड़ा था | मैंने उससे एक साल पहले ही अपनी 12 वीं कक्षा उतीर्ण कर ली थी | पर जो सुनने में आया वो ये था कि श्रीमान मोदी जी ने उनकी तनख्वाह रोक कर रखी थी और अन्य अध्यापकों के साथ भी ऐसा ही होता है | ये लोग तनख्वाह को देने की फ्रीक्वेंसी कुछ महीने पीछे करके रखते हैं | घोर पूंजीवादी संस्थानों में किस तरह की गुलामी कर्मियों से करवाई जाती है उसे मित्र अच्छी तरह जानते हैं | पर सुनील कुमार शर्मा के लिए ये बर्दाश्त से बहार था | तनख्वाह की मांग सुनील कुमार कई दिनों से कर रहे थे | मोदी और उनके बीच की अंतरकलह एक दिन पूरे स्टाफ के सामने फूट पड़ी | बाद में जब दबे-छिपे स्वरों में खबर निकल कर आई वो ये थी सुनील कुमार ने हमारे महापूंजीपति मोदी जी का कॉलर पकड़ कर थपड मारते हुए जोरदार जुमलों के साथ जो लानत-मलानत पूरे स्टाफ के सामने की वो देखने लायक थी | मलानत करके उनके महंगे शीशों से सुसज्जित दरवाजे को लात मारते हुए सुनील जी अपना बजाज स्कूटर स्टार्ट कर बिना पैसे लिए अनजाने भविष्य की और निकल गए | उनके जीवन में ऐसे कई वाकये आये हैं जिन सबकी जानकारी तो शायद यहाँ देना संभव नहीं होगा पर जो यहाँ दी गयी है आशा है उससे आप वस्तु स्थिति को समझ जायेंगे |

सुनील शर्मा का व्यक्तित्व
          सुनील कुमार एक बहुमुखी प्रतिभा वाला व्यक्ति हैं | अंग्रेजी के अध्यापक होने के नाते अंग्रेजी भाषा पर उनका जबरदस्त अधिकार तो है ही इसके अलावा उनमें अन्य कई गुण भी हैं |
          उनके आसपास के सर्कल में किसी कॉलेज या विद्यालय के मेगा इवेंट से लेकर मिनी-इवेंट तक में उनके शानदार सञ्चालन को देखते हुए एक एंकर के रूप में सबकी पहली पसंद वही होते |
          इसके अलावा जिन लोगों ने उनको गाते हुए सुना है वो अच्छी तरह जानते हैं कि उनका गायकी में भी खासा दखल था, खासकर रफ़ी उनकी पहली पसंद थे | जब हमारे बैच के विदाई समारोह पर उन्होंने मोहम्मद रफ़ी का "ओ दुनिया के रखवारे सुन दर्द भरे मेरे नाले...." खत्म किया तो पूरा हॉल तालियों के गडगडाहट से काफी देर तक गूंजता रहा जिसमें ताली बजाने वाले श्रीमान मोदी जी भी थे जो आज इनकी भर्त्सना कर रहे हैं |
          इस बात को मैं जरूर स्वीकार करूँगा की वे एक हद तक एन्ग्जाईटी मानसिक रोग से ग्रस्त थे | पर उन्होंने कभी गलत व्यवहार प्रदर्शित नहीं किया | उन्हें देखकर मुझे ये एहसास जरूर था कि वे कहीं न कही समाज के दिखावटीपन से दिली तौर पर आहत हैं | पर उन्होंने हमेशा बहार से ऐसा प्रफुल्लित और जिन्दादिली वाला व्यवहार प्रदर्शित किया जैसा "अनुरानन" फिल्म में राहुल बोस ने किया |  वे अपनी बातों को बहुत ही ज्यादा सीधे अंदाज़ में लोगों के सामने अभिव्यक्त कर देते थे जो लोगों के लिए कई बार परेशानी का सबब बन जाता था, उन्हें अगर किसी की बुराई करनी होती तो उस शख्स की उसके सामने ही सच्चाई व्यक्त कर देते थे, पोल खोल देते थे | उनके दोस्ताना और खुले व्यवहार के कारण छात्रों को तो वे अत्यधिक प्रिय थे |
          उनके बेबाक व्यवहार के कारण वे साल भर से ज्यादा कहीं टिकते नहीं थे | उनको किसी की गुलामी पसंद नहीं थी, काम के प्रति पूरे तरह समर्पित, एक सच्चे और स्वाभिमानी आदमी हैं वो | क्योंकि हम भी बड़े शरारती थे तो एक बार हमारी इनसे डायरेक्ट भिडंत भी हुयी पर इनके मजाकिया स्वभाव से घटना में कोई गंभीर मोड़ नहीं आया और पूरी कक्षा को बड़ा आनंद आया पर मैं वो घटना यहाँ नहीं बताऊंगा क्योंकि इन सर ने मेरी ओवर स्मार्टनेस की धज्जियाँ उड़ा कर रख दी थीं |

          आज जो कुछ हुआ उसे लेकर मेरे पास कुछ पत्रकार मित्रों से खबरें आई की वर्तमान समय में वे "दैनिक नवजागरण" जैसे नाम की किसी पत्रिका के लिए पत्रकार बने हैं | जिसका अभी पहला प्रकाशन भी शुरू नहीं हुआ है ये पत्रिका "मुकेश मूंड" नामक एक व्यक्ति शुरू करने जा रहा है जो झुंझुनू में पहले से ही अच्छा-खासा कोचिंग सेंटर चला रहा है | आज का घटनाक्रम सामने आने पर जब बड़े न्यूज़ चैनल वालों ने मूंड जी से  संपर्क साधा तो उन्होंने पूरी तरह से खुद को मामले से अलग करते हुए फिरकापरस्ती दिखाते हुए साफ़ इनकार किया की उनकी पत्रिका से सुनील कुमार का कोई सम्बन्ध है | और इस तरह हर तरफ न्यूज़ चैनल वालों ने यही दिखाया-कहा की वो कोई पत्रकार नहीं हैं | बेशक वो एक अध्यापक रहे हैं पर जहाँ तक मुझे जानकारी मिली है वो "मुकेश मूंड" की पत्रिका के पत्रकार की हैसियत से दिल्ली पहुंचे थे | पर शायद अपने गुस्से पर काबू न पा सके और गद्दारों के ऊपर जूता उठा लिया |

          शाम को मेरे शहर की पत्रकार जमात में जो बीमारी फैली वो ये है कि ख़ास पूंजीवादियों के दबाव के चलते उनके कई जानकारों और पत्रकारों ने मोबाईल स्विच ऑफ कर लिए हैं और अगर कोई कुछ बोल रहा है तो उनके खिलाफ की बयानबाजी करता ही नज़र आ रहा है | पाठक समझ सकते हैं कि ये बदले की आग में भड़कता हुआ पूंजीवादी कौन है |

          अगर सामाजिक ठेकेदारों के अलावा उन विद्यार्थियों से पूछा जाये जो उनसे पढ़ चुके हैं तो असलियत पता चलते देर न लगेगी | अब तो मेरे दिल मैं उनके प्रति सम्मान कई गुना बढ़ चुका है | ये आदमी ज़मीर से सच्चाई का पक्षधर है और मुखोटे में जीने वाले लोगों की आँख का किरकिरा | बिना किसी तथ्य के जाने आज जो पक्ष और प्रतिपक्ष पार्टियों ने आरोप लगाये उन्हें सुनकर हतप्रभ ही नहीं लोटपोट भी हुआ और आहत भी | पहली बार गहरे तक महसूस भी किया कि सामान्य से मुद्दों को भी राजनेता किस हद तक गिरते हुए क्या का क्या बनाकर रख देते हैं |

पुनश्च : 
देखें नीचे इस विडियो को भी जिसमें अपने आप को देश का अनुभवी बुजुर्ग नेता मानने वाला दिग्विजय कैसे कुत्तों की तरह भीड़ में अकेले पड़ गए सुनील कुमार पर पीछे से लातें चला रहा है | ये आदमी दूसरों पर एक भी घटिया आरोप लगाने से बाज़ नहीं आता और खुद ऐसे गिरे हुए काम करता है |

Wednesday, June 1, 2011

संपर्क सूत्र और बाजार का डर

          आज जब मैं अभय जी के ब्लॉग पर चरने गया गया तो अचानक साईड में पड़े उनके प्रोफाईल वाले ब्लॉगर गैजिट पर नज़र पड़ गयी और मेरे किसी न्यूरोन का विद्युत् प्रवाह बढ़ गया | एक छोटी सी समस्या नज़र आई जो मैं पहले भी देख चुका हूँ और अन्य कई ब्लॉगर बंधुओं के ब्लॉग पर देखा है | इंगित डर के मारे कभी इसलिए नहीं किया बहुत पहले ये सीख लिया था कि बिल्ला बात ज्ञान दोगे तो झापड़ पड़ेगा खासकर तकनीकी विषय पर बताने पर | भैया हम सब ज्ञानी हैं हमें मत सीखाओ | दूसरा कारण ये भी था कि मुझे कभी ये जिक्र करने लायक जैसा विषय लगा भी नहीं | लेकिन अब कई जगह पर देखने के बाद मुझमे ये आत्मविश्वास आया कि चलो इसके ऊपर एक छोटी पोस्ट कर ही देनी चाहिए और २ साल से सुस्त बड़े ब्लॉग पर एक पोस्ट बढाई जाए और जिन मित्रों को जानकारी न हो वो इस २ मिनट के ताम-झाम को समझकर अमल में ला सकें | तकनीकी जानकार तो इसे जानते ही हैं पर भैया जो नहीं जानते ये पोस्ट उनके लिए है | ;-)

          तो अब समस्या बता ही दूँ, समस्या ईमेल सूत्र की है | बहुत से मित्रों को स्पैम मेल के कूड़े साफ़ करते-२ ये तो पता चल गया की इन्टरनेट पर सर्च इंजन की तरह ईमेल क्रॉलर प्रोग्राम चलते हैं जो मेल पतों का शिकार करते हैं सो उन्होंने अपने ईमेल पतों को नयी तर्ज़ पर परिवर्तन करते हुए लिखना शुरू कर दिया |

मसलन,
          मैं आपको बता दूँ अगर आप स्वचालित प्रोग्राम सर्च से बचने के लिए ऐसा लिख रहे हैं तो आपका ये प्रयोग अब नाकाफी है | क्योंकि आजकल के प्रोग्राम इतना दिमाग रखते हैं कि at को @ कैसे पढ़ा जाए और dot को . (period) कैसे पढ़ा जाए | या आप कितने ही तरीकों से इसे घुमा फिरा कर लिख दें ये जब तक टेक्स्चुअल फॉर्म में है तब तक कृत्रिम प्रोग्रामों के शिकार से बच नहीं सकता | फिलहाल तक के लिए इसका सीधा और सरल उपाय यही है कि आप ईमेल को या अन्य कोई भी पाठ्य जिसे सर्च से बचाना चाहते हैं उसे इमेज रूप में बनाकर अपने पोर्टल पर रखें |

जैसे, ऊपर वाले दोनों मेल पतों को इस प्रकार इमेज बनाकर रखा जा सकता है |


          जहाँ तक मानव द्वारा पढ़े जाने का डर है तो सीधी सी बात है मेल पता दिया ही ना जाए पर अगर देना ही है तो पहले वाली पद्धति की अपेक्षा इमेज पद्धति अपनाना बेहतर है |

- इसका साफ़ फायदा ये तो है ही कि स्पैम से काफी हद तक मुक्ति | फिलवक्त तो ऐसे प्रोग्राम नहीं हैं जो इन्हें रीड कर सकें | वेब पोर्टल्स पर फॉर्म रजिस्ट्रेशन के अंत में भरवाए जाने वाले कपाचा या इमेज वेरिफिकेशन कोड तो आपने कई बार भरे होंगे वो इमेज रूप में इसीलिए होते है ताकि स्वचालित प्रोग्राम से रजिस्ट्रेशन की सम्भावना को ख़त्म किया जा सके |


- दूसरा फायदा ये हैं की ईमेल पता भी एकदम उसी रूप में लिखा जा सकता है जैसा आपका है, बजाय @ को at लिखने के या अन्य वर्णों को अन्य तरीकों से लिखने के, इससे गलत इन्टरप्रेट किये जाने की सम्भावना भी समाप्त हो जाती है |


- तीसरा आप इमेज में मनचाहे रंग और फॉण्ट का प्रयोग भी कर सकते हैं, मनचाहे साईज में सेट कर सकते हैं   और ख़ास तरीके से कोंट्राष्ट किये जाने योग्य बना सकते हैं |

          तो अपना मेल इमेज बना कर डालें ज्यादा फायदा मिलेगा | मालिकाना वेब पोर्टल पर तो खैर इमेज कहीं भी डाली जा सकती है | ब्लॉगर में इसे डालने के लिए आप Add Gadget में Basic गैजिट श्रृखला के Picture गैजिट का प्रयोग कर सकते हैं | इसके अलवा आप फेसबुक बैज नामक गैजिट का प्रयोग भी कर सकते हैं, जो मेरे ब्लॉग में आप सबसे ऊपर दायें कोने में  देख सकते हैं, फेसबुक बैज भी इमेज रूप में ही प्रदर्शित होता है, कारण इसका ऊपर बता ही चुका हूँ |

          क्रिया की प्रतिक्रिया हुयी तो (मतलब दिमाग की नस ने फिर फाड़फाड़ना शुरू किया तो) कोशिश करूँगा आगे भी तकनीकी समस्याओं से जुड़े पोस्ट डाल सकूँ और मित्रों से कुछ साझा कर सकूँ |