Tuesday, May 24, 2011

ल्यूना - 9


अरै रूसियों! रै बेटी का बापों के अकरम करर् या हो
सुणी है क थे आज चांद पै जाणैं की त्यारी करली है
बींटै पै पेटी धरली है

ल्यूना ९ पूँचके चाँद पै थानैं कुछ फोटू भेजी है
बाँ तसबीरां सैं बिलकुल बेरो पट्टै है (क)
चाँद देस की बीं धरती पै भौत घणाँ खाडा-खाळिया है
ज्वालामुखी पहाड़ रेत की पड़तां अंदर
बड़ा-बड़ा है कई समंदर
ना कोई माणस, ना कोई बंदर
ना कोई मैजत, ना कोई मंदर
ऐंया की सुनसान जगां में
ल्यूना ९, जाकर ऐयां हीं बोल्यो होसी
गोरख आयो जाग मछंदर!

हाँ और बात तो ठीक हो सकै
पण ल्यूना ९, खाडा-खळिया की फोटू कैंयां क्यूँ भेजी
अरै रूसियों कहद्यो
या खाडा-खळियाँ हाळी फोटू बिलकुल झूठी है
क्यूँक जद सैं ये फोटू अखबाराँ में अखबाराँ हाळा छापी
जद सैं सारा छायावादी कवि मूदै माथै पड़गा है
बांकै सौ-सौ सांप काळजै में लड़गा है!
कई लाज सैं झुक धरती कै मां गडगा है! 
पण चोखोजी, बांको भी गिरगिराट मिटणूँ  चाये थो
बै इबताणी स्हैज घाल रखी थी घाई
घर की हो चाये पर की हो
दीखी चाये कोइ सोवणीं सीक लुगाई
बींकै ही मूँडै को बरणन करी चांद सी सुन्दरताई
इब निरखो बा सुन्दरताई!
इब तो माता सैं ही बीज्योड़े मूँडै का खाडा-खाई
मेरै सा ही काळा-कळजाया’र सूगली सी सूरत का
पावैगा सुंदरता में चांद सैं बड़ाई
इब थोथा ही सुपनां ल्यो सोवणीं लुगाइ

हाँ एक बात म्हें नई सुणी है क
फोटू सैं थानैं बिलकुल बेरो पटगो है, क
आदो चांद उजाळै में है
और दूसरी कानी बिलकुल अँधेरो
वारै मोथों! थानैं इब पट्टयो यो बेरो ? रै ना समजों!
यो अंधेरो और च्यांनणूँ सैंकै ही सागै रै है
कोई कै पीछे कोई कै आगै रै है
पण यो अंधेरो और च्यानणूँ तो सैं कै ही सागै रै है
अरै रूसियों! इब आगै तो ध्यांन राखियो
मावस कानी हाळो हिस्सो छोड़ लैरनैं
इब तो पून्यूं हाळै कानीं सैं हीं चढियो!

एक बात फोटू में इ सैं भी बढकर है
कि चांद, देस की बीं धरती पै हवा-तवा ही कोनी दीखै
इब काळै होगो ना डबको!
म्हें तो जद भी बींपर जाणैं की सोचै था
खाली सुद्व हवा ही खाणैं की सोचै था
और चांद पर कुणसी सजनगोठ होरी है ?
कुणसा धोया धोया थाळ परोस दिया.......... गावै है कोई
कुणसी बठे ल्हकोवैगी जूतियाँ, साळियां
जणां हवा ही कोनीं तो के खावांगा जी
धूळ खांणनैं तो दुनियाँ हीं भौत बडी है!
बीं फोटू सैं एक बात थे नई बताई
क, चांद देस में सोनूं मिलणैं की चानस है
या हथियार उठाकै पैलो
इबकाळै मार्यो है थे अमरीका कै नैलै पै दैलो
आछ्यो नयो बतायो गैलो!
पण जे थे मन्नैं थारै ईं  दूतालय सैं
चुपकै सी कुछ रिपिया दिवाद्यो
तो मैं थानैं मेरे देस को भेद बताद्यूँ
सोनै की खबरां पै प्रतिक्रिया भारत की
मैं थानैं सारी समझाद्यूँ
क्यूँ राजी हो नाँ ? तो इब सुणल्यो
जद सैं बठे चांद कै ऊपर
सोनूं मिलणैं की बातां छापां में आई
बस जदसैं ही भारत का मुरारजी भाई
आंख फाड़कै लगा टकटकी सदा चांद कानीं हीं देखै
खाता पीता सोता उठता, मूँडो सदा बठीनैं राखै
सोचलियो थे, खैर नीं है
थारै पैली ये जे बठे पूँच ज्यावैगा
तो जद थे के भलै भरोगा ?
थे ढूँढोगा जद ताणीं तो चौदा कैरट को पावैगो।

अरै रूसियों ! ये सै बातां तो थारी फोटू हाळी है
इब मैं थानैं मेरै मन की बात बता द् यूँ   
चावो तो थानैं समझावूँ
क, ईं धरती पै सैं सैं ज्यादा थानैं ही दुख होर्यो है के ?
थे निचला बैठ्या रो भाया
बेगा बेगा भाग मनां ऊपर नैं जावो
और चांद पै पूँच मनां चांद नैं लजावो
भारत की भोळी ढाळी कांमणियां का थे-
मनां चौथ का बरत छुटावो!
अरै रूसियों!

'टसकोळी' (राजस्थानी हास्य-व्यंग्य कविताओं अनूठा संग्रह) पुस्तक की पहली कविता,
दिसम्बर १९७९ (1972)
अनुपम प्रिण्टर्स, 
झुंझुणू (राजस्थान)

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विमलेश

रेजगी को कवि-सम्मेलन

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