Thursday, May 12, 2011

कहावत किताब

          पिछले दिनों हमारे शहर के राजकीय पुस्तकालय में नेशनल बुक ट्रस्ट की प्रदर्शनी लगी | बहुत ज्यादा बड़े स्तर की तो नहीं थी पर किताब प्रेमी को तो इतनी सुगंध भी ख़ुशी देती है, कागजों में आने वाली इस सुगंध को वे सब लोग अच्छी तरह पहचानते हैं जो पुस्तकालय, किताबों की रैक या पुराने कार्यालयों में पड़ी गठरियों के आस-पास टहलने का अनुभव ले चुके हैं | खैर, मैंने भी अपनी रूचि के हिसाब से कुछ किताबें लीं | दूसरी ख़ुशी ये देखकर हुई कि एनबीटी की सभी किताबें काफी सस्ती दरों पर उपलब्ध हैं | चेक आउट डेस्क पर पहुँचने पर 50/- में सदस्यों को मिलने वाली छूट का पता लगा तो लगे हाथ हम एन.बी.टी. क्लब के सदस्य भी बन लिए, बिल थोडा और हल्का हो गया |

          खरीदी गयी सभी किताबों में जो थोडा हटके लगी वो थी एस. डब्ल्यू. फैलन की हिन्दुस्तानी कहावत-कोश, अनुवादक और संशोधक कृष्णानंद गुप्त | मूलत: यह स्व. एस. डब्ल्यू. फैलन का प्रसिद्ध ग्रन्थ ए डिक्शनरी ऑफ़ हिन्दुस्तानी प्रोवर्ब्स, सेईंग्स, एम्ब्लेप्स, एफेरिज्म्स है | अनुवाद में कहीं कोई कमी नहीं लगती बल्कि पढ़कर बहुत मज़ा आ गया सो मित्रों से शेयर करने को जी किया | इस पुस्तक में बहुत सी देशी कहावतों का मजेदार संग्रह है और हमारा तो कहावतों के सम्बन्ध में भी काफी ज्ञान बढ़ गया इसे पढ़कर | जहाँ एक और हर कहावत का अर्थ तो समझाया ही गया है वहीँ जरुरत पड़ने पर लोकोक्तियों के साथ जुडी घटनाओं का उल्लेख भी किया गया है |





पुस्तक से निकाली कुछ देशी और ग्रामीण चुहलबाजी की लाईनें,

शिकार के वक्त कुतिया हगासी
काम के वक्त बहाना बनाकर ग़ायब हो जाना

शुगल बेहतर है इश्कबाज़ी का, क्या हकीकी और क्या मजाज़ी का
इश्कबाज़ी का धंधा ही अच्छी चीज़ है फिर चाहे वह अध्यात्मिक हो या लौकिक

१. सारी रात मिमियानी और एक ही बच्चा ब्यानी, (स्त्री.)
२. छ: महीने मिमियानी, तो एक बच्चा बियानी, (ग्रा.)
चिल्ल-पों बहुत पर काम कुछ नहीं

चौबे मरें तो बन्दर हों, बन्दर मरें तो चौबे हों
मथुरा के चौबों पर व्यंग्य में क. | वहां चौबे और बन्दर दोनों ही बहुत हैं

चुचियों में हाड़ टटोलना
जो वस्तु जहाँ है ही नहीं, वहां उसे तलाश करना

गधा गिरे पहाड़ से, मुर्गी के टूटे कान
एक असंबद्ध बात

रांड के चरखे की तरह चला ही जाता है
जो काम कभी रुके ही नहीं, अथवा जो आदमी हमेशा चलता-फिरता ही रहे उसे

कुत्ता पाले वह कुत्ता, सास घर जंवाई कुत्ता,
बहन घर भाई कुत्ता, सब कुत्तों का वह सरदार, जो रहवे बेटी के द्वार
स्पष्ट | जंवाई = दामाद |

पहले चुम्मे गाल काटा
किसी आदमी को पहले-पहल कोई काम सौंपा जाये, और वह उसे चौपट कर दे

पहले पीवे जोगी, बीच में पीवे भोगी, पीछे पीवे रोगी
(१) तमाखू पीने के लिए
(२) भोजन के समय पानी पीने के लिए भी कुछ लोग कहते हैं, पर इस सम्बन्ध में यह कहावत का कोई अंतिम वाक्य नहीं है |

राजा का दूजा, बकरी का तीजा दोनों खराब
राजा के दो लड़के हों तो वे राज्य के लिए आपस में लड़ते हैं,
बकरी के तीन बच्चे हों तो वे भरपेट दूध नहीं पी सकते, क्योंकि उसके दो ही थन होते हैं

रानी गईं हाट, लाईं रीझ कर चक्की के पाट
क्योंकि उन्होंने चक्की का पाट कभी नहीं देखा था | बड़े आदमियों की सनक |

रात पड़ी बूँद, नाम रखा महमूद
रात में ही गर्भ रहा, लड़के के होने में नौ महीने की देर, पर उसका नामकरण कर दिया |
काम के होने के पहले ही अपनी इच्छानुसार उसके नतीजे भी निकाल लेना |

राम के भक्त काठ के गुड़िया, दिन भर ठक-ठक, रात के घुसकुरिया, (भोजपुरी)
उन वैष्णव पुजारियों पर व्यंग्य जो दिन में भगवान् के नाम की माला जपते हैं और रात में दुष्कर्म करते हैं

दीवाली के दिए चाटकर जायेंगे
मुफ्तखोरों के लिए क. |

मुसलमानी में आना कानी क्या ?
जो काम करना ही है उनमें हीले-हवाले की जरूरत क्या ?
मुसलमानी = मुसलमानों की वह रस्म जिसमें छोटे बालक की इन्द्रिय पर का कुछ चमड़ा काट डाला जाता है | सुन्नत |

मुल्ला की दाढ़ी तबर्रुक में गई (मु.)
वाहवाही में सब धन लुट गया|
(कथा है कि कोई मुल्ला यादगार के तौर पर चेलों को चीज़ें बाँट रहे थे | यह देखकर एक मसखरे ने कहा कि मुल्ला जी आपकी दाढ़ी हमेशा मुझे आपकी याद दिलाती रहेगी | यह कहकर उनकी दाढ़ी में से उसने एक बाल उखाड़ लिया | यह देखकर सभी चेले आगे बढे और मुल्ला के बहुत मना करने पर भी उन्होंने एक-एक बाल करके उनकी सारी दाढ़ी नोंच डाली |)

मुल्के खुदा तंग नेस्त, पाये मरा लंग नेस्त, (फा.)
इश्वर का मुल्क थोडा नहीं है और मैं भी पैरों से लंगड़ा नहीं हूँ | किसी उद्योगी पुरुष का कहना, जिसे काम से जवाब दे दिया गया है |

गर्मी की दोपहरी में आराम करते हुए इस पुस्तक को पढना मुझे बड़ा आनंद देता है |

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