Tuesday, October 6, 2009

ज्योतिष : अद्वैत का विज्ञान_5

पिछली पोस्ट से जारी...

अब इसे थोड़ा समझें। अब्राहम लिंकन ने मरने के तीन दिन पहले एक सपना देखा, जिसमें उसने देखा कि उसकी हत्या कर दी गई है और व्हाइट हाउस के एक खास कमरे में उसकी लाश पड़ी हुई है। उसने नंबर भी कमरे का देखा। उसकी नींद खुल गई। वह हंसा, उसने अपनी पत्नी को कहा कि मैंने एक सपना देखा है कि मेरी हत्या कर दी गई है और फलां-फलां नंबर--उसी मकान में तो वह सोया हुआ है व्हाइट हाउस के--इस मकान के फलां नंबर के कमरे में मेरी लाश पड़ी है। मेरे सिरहाने तू खड़ी हुई है और आस-पास फलां-फलां लोग खड़े हुए हैं। हंसी हुई, बात हुई; लिंकन सो गया, पत्नी सो गई। तीन दिन बाद लिंकन की हत्या हुई और उसी नंबर के कमरे में और उसी जगह उसकी लाश तीन दिन बाद पड़ी थी और उसी क्रम में आदमी खड़े थे। अगर तीन दिन बाद जो होने वाला है वह किसी अर्थों में आज ही न हो गया हो तो उसका सपना कैसे निर्मित हो सकता है? उसकी सपने में झलक भी कैसे मिल सकती है? सपने में झलक तो उसी बात की मिल सकती है जो किसी अर्थ में अभी भी कहीं मौजूद हो। तो हम उसकी एक ग्लिम्प्स, खिड़की खोलें और हमें दिखाई पड़ जाए। लेकिन खिड़की के बाहर मौजूद हो! लेकिन कहीं मौजूद हो। ज्योतिष का मानना है कि भविष्य हमारा अज्ञान है इसलिए भविष्य है। अगर हमें ज्ञान हो तो भविष्य जैसी कोई घटना नहीं है। वह अभी भी कहीं मौजूद है। महावीर के जीवन में एक घटना का उल्लेख है, और जिस पर एक बहुत बड़ा विवाद चला। और महावीर के सामने ही महावीर के अनुयायियों का एक वर्ग टूट गया। और पांच सौ महावीर के मुनियों ने अलग पंथ का निर्माण कर लिया उसी बात से। महावीर कहते थे, जो हो रहा है वह एक अर्थ में हो ही गया। जो हो रहा है वह एक अर्थ में हो ही गया। अगर आप चल पड़े तो एक अर्थ में पहुंच ही गए। अगर आप बूढ़े हो रहे हैं तो एक अर्थ में बूढ़े हो ही गए। महावीर कहते थे, जो हो रहा है, जो क्रियमाण है, वह हो ही गया। महावीर का एक शिष्य वर्षाकाल में महावीर से दूर था, बीमार था। उसने अपने एक शिष्य को कहा कि मेरे लिए चटाई बिछा दो। उसने चटाई बिछानी शुरू की। मुड़ी हुई, गोल लिपटी हुई चटाई को उसने थोड़ा सा खोला, तब महावीर के उस शिष्य को खयाल आया कि ठहरो, महावीर कहते हैं--जो हो रहा है वह हो ही गया! तू आधे में रुक जा! चटाई खुल तो रही है, लेकिन खुल नहीं गई--रुक जा! उसे अचानक खयाल हुआ कि यह तो महावीर बड़ी गलत बात कहते हैं। चटाई आधी खुली है, लेकिन खुल कहां गई! उसने चटाई वहीं रोक दी। वह लौट कर वर्षाकाल के बाद महावीर के पास आया और उसने कहा कि आप गलत कहते हैं कि जो हो रहा है वह हो ही गया! क्योंकि चटाई अभी भी आधी खुली रखी है--खुल रही थी, लेकिन खुल नहीं गई! तो मैं आपकी बात गलत सिद्ध करने आया हूं। महावीर ने उससे जो कहा, वह नहीं समझ पाया होगा, क्योंकि वह बहुत बाल-बुद्धि का रहा होगा, अन्यथा ऐसी बात लेकर नहीं आता। महावीर ने कहा, तूने रोका, रोक ही रहा था, और रुक ही गया! वह जो चटाई तू रोका, रोक रहा था, रुक गया! तूने सिर्फ चटाई रुकते देखी, एक और क्रिया भी साथ चल रही थी, वह हो गई! और फिर कब तक तेरी चटाई रुकी रहेगी? खुलनी शुरू हो गई है, खुल ही जाएगी। तू लौट कर जा! वह जब लौट कर गया तो देखा, एक आदमी खोल कर उस पर लेटा हुआ है। विश्राम कर रहा था। इस आदमी ने सब गड़बड़ कर दिया। पूरा सिद्धांत ही खराब कर दिया। महावीर जब यह कहते थे कि जो हो रहा है वह हो ही गया, तो वे यह कहते थे, जो हो रहा है वह तो वर्तमान है, जो हो ही गया वह भविष्य है। कली खिल रही है--खिल ही गई--खिल ही जाएगी। वह फूल तो भविष्य में बनेगी, अभी तो खिल ही रही है, अभी तो कली ही है, लेकिन जब खिल ही रही है तो खिल जाएगी। उसका खिल जाना भी कहीं घटित हो गया। अब इसे हम जरा और तरह से देखें, थोड़ा कठिन पड़ेगा। हम सदा अतीत से देखते हैं। कली खिल रही है। हमारा जो चिंतन है, आमतौर से वह पास्ट ओरिएंटेड है, वह अतीत से बंधा है। कहते हैं, कली खिल रही है, फूल की तरफ जा रही है, कली फूल बनेगी। लेकिन इससे उलटा भी हो सकता है! यह ऐसा है जैसे मैं आपको पीछे से धक्का दे रहा हूं, आपको आगे सरका रहा हूं। ऐसा भी हो सकता है, कोई आपको आगे से खींच रहा है। गति दोनों तरह हो सकती है। मैं आपको पीछे से धक्का दे रहा हूं, आप आगे जा रहे हैं। ऐसा भी हो सकता है, कोई आपको आगे से खींच रहा है, पीछे से कोई धक्का नहीं दे रहा है, और आप आगे जा रहे हैं। ज्योतिष का मानना है कि यह अधूरी दृष्टि है कि अतीत धक्का दे रहा है और भविष्य हो रहा है। पूरी दृष्टि यह है कि अतीत धक्का दे रहा है और भविष्य खींच रहा है। कली फूल बन रही है, इतना ही नहीं; फूल कली को फूल बनने के लिए पुकार भी रहा है, खींच भी रहा है! अतीत पीछे है, भविष्य आगे है, अभी वर्तमान के क्षण में एक कली है। पूरा अतीत धक्का दे रहा है, खुल जाओ! पूरा भविष्य आवाहन दे रहा है, खुल जाओ! अतीत और भविष्य दोनों के दबाव में कली फूल बनेगी। अगर कोई भविष्य न हो तो अतीत अकेला फूल न बना पाएगा। क्योंकि भविष्य में अवकाश चाहिए फूल बनने के लिए। भविष्य में जगह चाहिए, स्पेस चाहिए। भविष्य स्थान दे तो ही कली फूल बन पाएगी। अगर कोई भविष्य न हो तो अतीत कितना ही सिर मारे, कितना ही धकाए--मैं आपको पीछे से कितना ही धक्का दूं, लेकिन सामने एक दीवार हो तो मैं आपको आगे न हटा पाऊंगा। आगे जगह चाहिए। मैं धक्का दूं और आगे की जगह आपको स्वीकार कर ले, आमंत्रण दे दे कि आ जाओ, अतिथि बना ले, तो ही मेरा धक्का सार्थक हो पाए। मेरे धक्के के लिए भविष्य में जगह चाहिए। अतीत काम करता है, भविष्य जगह देता है। ज्योतिष की दृष्टि यह है कि अतीत पर खड़ी हुई दृष्टि अधूरी है, आधी वैज्ञानिक है! भविष्य पूरे वक्त पुकार रहा है, पूरे वक्त खींच रहा है। हमें पता नहीं है, हमें दिखाई नहीं पड़ता। यह हमारी आंख की कमजोरी है, यह हमारी दृष्टि की कमजोरी है। हम दूर नहीं देख पाते। हमें कल कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता। कृष्णमूर्ति की जन्मकुंडली देखें कभी तो हैरान होंगे। अगर एनी बीसेंट ने और लीड बीटर ने फिक्र की होती और कृष्णमूर्ति की जन्मकुंडली देख ली होती तो भूल कर भी कृष्णमूर्ति के साथ मेहनत नहीं करनी चाहिए थी। क्योंकि जन्मकुंडली में साफ है बात कि कृष्णमूर्ति जिस संगठन से संबंधित होंगे, उस संगठन को नष्ट करने वाले होंगे; जिस संस्था से संबंधित होंगे, उस संस्था को विसर्जित करवा देंगे; जिस संगठन के सदस्य बनेंगे, वह संगठन मर जाएगा। लेकिन एनी बीसेंट भी मानने को तैयार नहीं होती। कोई सोच भी नहीं सकता था। लेकिन हुआ यही। थियोसाफी ने उन्हें खड़ा करने की कोशिश की। थियोसाफी को उनकी वजह से इतना धक्का लगा कि वह सदा के लिए मर गया आंदोलन। फिर एनी बीसेंट ने "स्टार ऑफ दि ईस्ट' नाम की बड़ी संस्था खड़ी की। फिर एक दिन कृष्णमूर्ति उस संस्था को विसर्जित करके अलग हो गए। एनी बीसेंट ने पूरा जीवन उस संस्था को खड़ा करने में समर्पित किया और नष्ट किया अपने को। लेकिन उसमें कृष्णमूर्ति का भी कुछ बहुत हाथ नहीं है। वे जिन नक्षत्रों की छाया में पैदा हुए हैं उन नक्षत्रों की सीधी सूचना है कि वे किसी संस्था में भी डिस्ट्रक्टिव सिद्ध होंगे। किसी भी संस्था के भीतर वे विघटनकारी सिद्ध होंगे। भविष्य एकदम अनिश्चित नहीं है। हमारा ज्ञान अनिश्चित है। हमारा अज्ञान भारी है। भविष्य में हमें कुछ दिखाई नहीं पड़ता। हम अंधे हैं। भविष्य का हमें कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता। नहीं दिखाई पड़ता है इसलिए हम कहते हैं कि निश्चित नहीं है। लेकिन भविष्य में दिखाई पड़ने लगे...और ज्योतिष भविष्य में देखने की प्रक्रिया है! तो ज्योतिष सिर्फ इतनी ही बात नहीं है कि ग्रह-नक्षत्र क्या कहते हैं? उनकी गणना क्या कहती है? यह तो सिर्फ ज्योतिष का एक डायमेंशन, एक आयाम है। फिर भविष्य को जानने के और आयाम भी हैं। मनुष्य के हाथ पर खिंची हुई रेखाएं हैं, मनुष्य के माथे पर खिंची हुई रेखाएं हैं, मनुष्य के पैर पर खिंची हुई रेखाएं हैं। पर ये भी बहुत ऊपरी हैं। मनुष्य के शरीर में छिपे हुए चक्र हैं। उन सब चक्रों का अलग-अलग संवेदन है। उन सब चक्रों की प्रतिपल अलग-अलग गति है, फ्रीक्वेंसी है। उनकी जांच है। मनुष्य के पास छिपा हुआ अतीत का पूरा संस्कार-बीज है। रान हुब्बार्ड ने एक नया शब्द और एक नयी खोज पश्चिम में शुरू की है। पूरब के लिए तो बहुत पुरानी है! वह खोज है--टाइम ट्रेक। हुब्बार्ड का खयाल है कि प्रत्येक व्यक्ति जहां भी जीया है--इस पृथ्वी पर या कहीं और किसी ग्रह पर, आदमी की तरह या जानवर की तरह या पौधे की तरह या पत्थर की तरह--आदमी जहां भी जीया है अनंत यात्रा में, वह पूरा का पूरा टाइम ट्रेक, समय की पूरी की पूरी धारा उसके भीतर अभी भी संरक्षित है। और वह धारा खोली जा सकती है। और उस धारा में आदमी को पुनः प्रवाहित किया जा सकता है। हुब्बार्ड की खोजों में यह खोज बड़ी कीमत की है। इस टाइम ट्रेक पर हुब्बार्ड ने कहा है कि आदमी के भीतर इनग्रेंस है। एक तो हमारे पास स्मृति है जिसमें हम याद रखते हैं कि कल क्या हुआ, परसों क्या हुआ। यह स्मृति कामचलाऊ है, यह रोजमर्रा की है। जैसे हर आदमी दुकान पर या आफिस में रोजमर्रा की बही रखता है। वह कामचलाऊ होती है। वह रोज बेकार हो जाती है। वह असली नहीं है। वह स्थायी भी नहीं है। यह हमारी कामचलाऊ की स्मृति है जिसमें हम रोज काम करते हैं, फिर रोज फेंक देते हैं। पर इससे गहरी एक स्मृति है जो कामचलाऊ नहीं है, जिसमें हमारे जीवन के समस्त अनुभवों का सार, अनंत-अनंत जीवन-पथों पर लिए गए अनुभवों का सार इकट्ठा है। उसे हुब्बार्ड ने इनग्रेन कहा है। वह हमारे भीतर इनग्रेंड हो गई है। वह भीतर गहरे में दबी हुई पड़ी है पूरी की पूरी। जैसे कि एक टेप बंद आपके खीसे में पड़ा हो। उसे खोला जा सकता है। और जब उसे खोला जाता है तो महावीर उसको कहते थे जाति-स्मरण, हुब्बार्ड कहता है टाइम ट्रेक--पीछे लौटना समय में। जब उसे खोला जाता है तो ऐसा नहीं होता कि आपको अनुभव हो कि आप रिमेंबर कर रहे हैं। ऐसा नहीं होता है कि आप याद कर रहे हैं। यू री-लिव! जब वह खुलती है, जब टाइम ट्रेक खुलता है, तो आपको ऐसा अनुभव नहीं होता कि मुझे याद आ रहा है! न, आप पुनः जीते हैं। समझ लें, अगर टाइम ट्रेक आपका खोला जाए, जो कि खोलना बहुत कठिन नहीं है, और ज्योतिष उसके बिना अधूरा है। तो ज्योतिष की बहुत गहनतम जो पकड़ है वह तो आपके अतीत को खोलने की है, क्योंकि आपका अतीत अगर पूरा पता चल जाए तो आपका पूरा भविष्य पता चलता है। क्योंकि आपका भविष्य आपके अतीत से जन्मेगा। आपके भविष्य को आपके अतीत को जाने बिना नहीं जाना जा सकता। क्योंकि आपका भविष्य आपके अतीत का बेटा होने वाला है, उसी से पैदा होगा। तो पहले तो आपके अतीत की पूरी स्मृति-रेखा को खोलना पड़े। अगर आपकी स्मृति-रेखा को खोल दिया जाए--जिसकी प्रक्रियाएं हैं और विधियां हैं--तो आप अगर समझ लें कि आपको याद आ रहा है कि आप छह वर्ष के बच्चे हैं और आपके पिता ने चांटा मारा है। तो आपको ऐसा याद नहीं आएगा कि आपको याद आ रहा है कि आप छह वर्ष के बच्चे हैं और पिता चांटा मार रहे हैं; यू विल री-लिव इट। आप इसको पुनः जीएंगे। और जब आप इसको जी रहे होंगे, अगर उस वक्त मैं आपको पूछूं कि तुम्हारा नाम? तो आप कहेंगे, बबलू। आप नहीं कहेंगे, पुरुषोत्तमदास। छह वर्ष का बच्चा उत्तर देगा। आप री-लिव कर रहे हैं उस वक्त, आप स्मरण नहीं कर रहे हैं, पुरुषोत्तमदास स्मरण नहीं कर रहे हैं कि जब मैं छह वर्ष का था। न, पुरुषोत्तमदास छह वर्ष के हो गए हैं! वे कहेंगे, बबलू! उस वक्त वे जो जवाब देंगे वह छह वर्ष का बच्चा बोलेगा। अगर आपको पिछले जन्म में ले जाया गया है और आप याद कर रहे हैं कि आप एक सिंह हैं, तो अगर उस वक्त आपको छेड़ दिया जाए तो आप बिलकुल सिंह की तरह गर्जना कर पड़ेंगे। आप आदमी की तरह नहीं बोलेंगे। हो सकता है आप नाखून-पंजों से हमला बोल दें। अगर आप याद कर रहे हैं कि आप एक पत्थर हैं और आपसे कुछ पूछा जाए, तो आप बिलकुल मौन रह जाएंगे, आप बोल नहीं सकेंगे। आप पत्थर की तरह ही रह जाएंगे। हुब्बार्ड ने हजारों लोगों की सहायता की है। जैसे एक आदमी है जो ठीक से नहीं बोल पाता, हुब्बार्ड का कहना है कि वह बचपन की किसी स्मृति पर स्टक हो गया, उसके आगे नहीं बढ़ पाया। तो वह उसके टाइम ट्रेक पर उसको वापस ले जाएगा। उसके इनग्रेन को तोड़ेगा और जब वह छह वर्ष का हो जाएगा, जहां रुक गई थी, जहां से वह आगे नहीं बढ़ा, फिर वह वहां वापस पहुंच जाएगा, टूट जाएगी धारा, वह आदमी वापस लौट आएगा। तब वह तीस साल का हो जाएगा। वह जो बीच में फासला था चौबीस साल का, वह उसको पार कर लेगा। और हैरानी की बात है कि हजारों दवाइयां उस आदमी को बोलने में समर्थ नहीं बना पाई थीं, लेकिन यह टाइम ट्रेक पर लौट कर जाना और पुनः वापस लौट आना, वह आदमी बोलने में समर्थ हो जाएगा! आपको बहुत दफे जो बीमारियां आती हैं, वे केवल टाइम ट्रेक की वजह से आती हैं। बहुत सी बीमारियां हैं, जैसे दमा। दमा के मरीज की तारीख भी तय रहती है। हर साल ठीक वक्त पर ठीक तारीख पर उसका दमा लौट आता है। और इसलिए दमा के लिए कोई चिकित्सा नहीं हो पाती। क्योंकि दमा असल में शरीर की बीमारी नहीं है, टाइम ट्रेक की बीमारी है, कहीं स्टक हो गई, कहीं मेमोरी अटक गई है। और जब फिर वही आदमी उस समय को स्मरण कर लेता है--बारह तारीख, बरसा का दिन--उसको बारह तारीख आई, बरसा का दिन आया, अब वह तैयारी कर रहा है, अब वह घबरा रहा है कि अब होने वाला है। आप हैरान होंगे कि इस बार उसको जो दमा होगा, ही इज़ री-लिविंग। वह दमा नहीं है; वह सिर्फ पिछले साल की बारह तारीख को री-लिव कर रहा है। मगर अब उसका आप इलाज करेंगे, आप उसको झंझट में डाल रहे हैं। उसका इलाज करने से कोई मतलब नहीं है। क्योंकि वह एक साल पहले वाला आदमी अब है ही नहीं जिसका इलाज किया जा सके। आप दवाएं बेकार खो रहे हैं, क्योंकि दवाएं उस आदमी में जा रही हैं जो अभी है और बीमार वह आदमी है जो एक साल पहले था। इन दोनों के बीच कोई तारतम्य नहीं है, कोई संबंध नहीं है। आपकी हर दवा की असफलता उसके दमा को मजबूत कर जाएगी और कह जाएगी कि कुछ नहीं होने वाला है। वह अगले साल की तैयारी फिर कर रहा है। सौ में से सत्तर बीमारियां टाइम ट्रेक पर घटित हो गई, पकड़ गई, जकड़ गई बातें हैं, जो हम लौट-लौट कर जी लेते हैं। ज्योतिष सिर्फ नक्षत्रों का अध्ययन नहीं है। वह तो है ही! तो वह तो हम बात करेंगे। साथ ही ज्योतिष और अलग-अलग आयामों से मनुष्य के भविष्य को टटोलने की चेष्टा है कि वह भविष्य कैसे पकड़ा जा सके। उसे पकड़ने के लिए अतीत को पकड़ना जरूरी है। उसे पकड़ने के लिए अतीत के जो चिह्न आपके शरीर पर और आप के मन पर छूट गए हैं, उन्हें पहचानना जरूरी है। आपके शरीर पर भी चिह्न हैं, आपके मन पर भी चिह्न हैं। और जब से ज्योतिषी शरीर के चिह्नों पर बहुत अटक गए हैं तब से ज्योतिष की गहराई खो गई। क्योंकि शरीर के चिह्न बहुत ऊपरी हैं। आपके हाथ की रेखा तो आपके मन के बदलने से इसी वक्त भी बदल सकती है। आपकी जो आयु की रेखा है, अगर आपको भरोसा दिलवा दिया जाए हिप्नोटाइज करके कि आप पंद्रह दिन बाद मर जाओगे, और आपको पंद्रह दिन तक रोज बेहोश करके यह भरोसा पक्का बिठा दिया जाए कि आप पंद्रह दिन बाद मर जाओगे, आप चाहे मरो या न मरो, आपकी उम्र की रेखा पंद्रह दिन के समय पर पहुंच कर टूट जाएगी। आपकी उम्र की रेखा में गैप आ जाएगा। शरीर स्वीकार कर लेगा कि ठीक है, मौत आती है। शरीर पर जो रेखाएं हैं वे तो बहुत ऊपरी घटनाएं हैं; भीतर गहरे में मन है। और जिस मन को आप जानते हैं वही गहरे में नहीं है, वह तो बहुत ऊपर है; बहुत गहरे में तो वह मन है जिसका आपको पता नहीं है। इस शरीर में भी गहरे में जो चक्र हैं, जिनको योग चक्र कहता है, वे चक्र आपकी जन्मों-जन्मों की संपदा का संगृहीत रूप है। आपके चक्र पर हाथ रख कर जो जानता है वह जान सकता है कि कितनी गति है उस चक्र की। आपके सातों चक्रों को छूकर जाना जा सकता है कि आपने कुछ अनुभव किए हैं कभी या नहीं। अब मैं सैकड़ों लोगों के चक्रों पर प्रयोग किया हूं। तो मैं हैरान हुआ कि एकाध या ज्यादा से ज्यादा दो चक्रों के सिवाय आमतौर से तीसरा चक्र शुरू ही नहीं होता, वह गति ही नहीं की है उसने कभी, वह बंद ही पड़ा है। उसका कभी आपने उपयोग ही नहीं किया। तो वह आपका अतीत है। उसे जान कर अगर एक आदमी मेरे पास आए और मैं देखूं कि उसके सातों चक्र चल रहे हैं, तो उससे कहा जा सकता है कि यह तुम्हारा अंतिम जीवन है, अगला जीवन नहीं होगा। क्योंकि सात चक्र चल गए हों तो अगले जीवन का अब कोई उपाय नहीं है। इस जीवन में निर्वाण हो जाएगा, मुक्ति हो जाएगी। महावीर के पास कोई आता तो वे फिक्र करते इस बात की कि उस आदमी के कितने चक्र चल रहे हैं? उसके साथ कितनी मेहनत करनी उचित है, क्या हो सकेगा उसके साथ? मेहनत करने का कोई परिणाम होगा या नहीं होगा? या कब हो पाएगा? या कितने जन्म लगेंगे? भविष्य को टटोलने की चेष्टा है ज्योतिष--अनेक-अनेक मार्गों से। उनमें एक मार्ग, जो सर्वाधिक प्रचलित हुआ, वह ग्रह-नक्षत्रों का प्रभाव मनुष्य के ऊपर। उसके लिए वैज्ञानिक आधार रोज-रोज मिलते चले जाते हैं। इतना तय हो गया है कि जीवन प्रभावित है। और जीवन अप्रभावित नहीं हो सकता है। दूसरी बात ही कठिनाई की रह गई है: क्या व्यक्तिगत रूप से? एक-एक इंडिविजुअल प्रभावित है? यह जरा चिंता वैज्ञानिकों को लगती है कि एक-एक व्यक्ति? तीन अरब, साढ़े तीन अरब, चार अरब आदमी हैं जमीन पर, क्या एक-एक आदमी अलग-अलग ढंग से? लेकिन उनको कहना चाहिए, यह इतनी परेशानी की बात क्या है! अगर प्रकृति एक-एक आदमी को अलग-अलग ढंग का अंगूठा दे सकती है इंडिविजुअल, और रिपीट नहीं करती। इतनी बारीकी से हिसाब रख सकती है प्रकृति कि एक-एक आदमी को जो अंगूठा देती है, वह इंडिविजुअल, कि उसकी छाप किसी दूसरे आदमी की छाप फिर कभी नहीं होती। अभी ही नहीं, कभी नहीं होती! जमीन पर अरबों आदमी रहे हैं और अरबों आदमी रहेंगे, लेकिन मेरे अंगूठे की जो छाप है वह दोबारा फिर नहीं होगी। आप हैरान होंगे कि मैंने एक अंडे के दो जुड़वां बच्चों की बात कही। उनके भी दोनों अंगूठे एक नहीं होते। उनके भी दोनों अंगूठों की छाप अलग होती है। अगर प्रकृति एक-एक आदमी को इतना व्यक्तित्व दे पाती है कि अंगूठे जैसी बेकार चीज को, हम सबको जो बेकार ही है, कुछ खास प्रयोजन का नहीं मालूम पड़ता, उसको इतनी विशिष्टता दे पाती है, तो एक-एक व्यक्ति को आत्मा और जीवन विशिष्ट न दे पाए, कोई कारण नहीं मालूम होता। पर विज्ञान बहुत धीमी गति से चलता है। और ठीक है, वैज्ञानिक होने के लिए उतनी धीमी गति ठीक है। जब तक तथ्य पूरी तरह सिद्ध न हो जाएं तब तक इंच भी आगे सरकना उचित नहीं है। प्रोफेट्स, पैगंबर तो छलांगें भर लेते हैं। वे हजारों-लाखों साल बाद जो तय होगी, उसको कह देते हैं। विज्ञान तो एक-एक इंच सरकता है। और प्राइमरी स्कूल के बच्चे के दिमाग में जो बात आ सके, वही बात! वह बात नहीं जो कि प्रोफेट्स और विज़नरीज़, सपने देखने वाले लोग जो दूर-दूर की चीजें देख लेते हैं उनकी समझ में आ सके, उतनी बात। नहीं, उससे विज्ञान का उतना प्रयोजन नहीं है। ज्योतिष मूलतः चूंकि भविष्य की तलाश है, और विज्ञान चूंकि मूलतः अतीत की तलाश है। विज्ञान इसी बात की खोज है कि कॉज क्या है, कारण क्या है? और ज्योतिष इसी बात की खोज है कि इफेक्ट क्या होगा, परिणाम क्या होगा? इन दोनों के बीच बड़ा भेद है। लेकिन फिर भी विज्ञान को रोज-रोज अनुभव होता है, और कुछ बातें जो अनहोनी लगती थीं, लगती थीं कभी सही नहीं हो सकतीं, वे सही होती हुई मालूम पड़ती हैं। जैसा मैंने पीछे आपको कहा, अब वैज्ञानिक इसको स्वीकार कर लिए हैं कि प्रत्येक व्यक्ति अपने जन्म के साथ बिल्ट-इन अपना व्यक्तित्व लेकर पैदा होता है। इसको पहले वे नहीं मानने को राजी थे। ज्योतिष इसे सदा से कहता रहा है।
क्रमशः अगली पोस्ट पर...

No comments:

Post a Comment