Tuesday, October 6, 2009

ज्योतिष अर्थात अध्यात्म_4

पिछली पोस्ट से जारी...

महावीर एक गांव के पास से गुजर रहे हैं। और महावीर का एक शिष्य गोशालक उनके साथ है, जो बाद में उनका विरोधी हो गया। एक पौधे के पास से दोनों गुजरते हैं। गोशालक महावीर से कहता है कि सुनिए, यह पौधा लगा हुआ है। क्या सोचते हैं आप, यह फूल तक पहुंचेगा या नहीं पहुंचेगा? इसमें फूल लगेंगे या नहीं लगेंगे? यह पौधा बचेगा या नहीं बचेगा? इसका भविष्य है या नहीं? महावीर आंख बंद करके उसी पौधे के पास खड़े हो जाते हैं। गोशालक पूछता है कि कहिए! आंख बंद करने से क्या होगा? टालिए मत। उसे पता भी नहीं कि महावीर आंख बंद करके क्यों खड़े हो गए हैं। वे एसेंशियल की खोज कर रहे हैं। इस पौधे के बीइंग में उतरना जरूरी है, इस पौधे की आत्मा में उतरना जरूरी है। बिना इसके नहीं कहा जा सकता कि क्या होगा। आंख खोल कर महावीर कहते हैं कि यह पौधा फूल तक पहुंचेगा। गोशालक उनके सामने ही पौधे को उखाड़ कर फेंक देता है, और खिलखिला कर हंसता है, क्योंकि इससे ज्यादा और अतक्र्य प्रमाण क्या होगा? महावीर के लिए कुछ कहने की अब और जरूरत क्या है? उसने पौधे को उखाड़ कर फेंक दिया, और उसने कहा कि देख लें। वह हंसता है, महावीर मुस्कुराते हैं। और दोनों अपने रास्ते चले आते हैं। सात दिन बाद वे वापस उसी रास्ते पर लौट रहे हैं। जैसे ही महावीर और वे दोनों अपने आश्रम में पहुंचे जहां उन्हें ठहर जाना है, बड़ी भयंकर वर्षा हुई। सात दिन तक मूसलाधार पानी पड़ता रहा। सात दिन तक निकल नहीं सके। फिर लौट रहे हैं। जब लौटते हैं तो ठीक उस जगह आकर महावीर खड़े हो गए हैं जहां वे सात दिन पहले आंख बंद करके खड़े थे। देखा कि वह पौधा खड़ा है। जोर से वर्षा हुई, उसकी जड़ें वापस गीली जमीन को पकड़ गईं, वह पौधा खड़ा हो गया। महावीर फिर आंख बंद करके उसके पास खड़े हो गए, गोशालक बहुत परेशान हुआ। उस पौधे को फेंक गए थे। महावीर ने आंख खोली। गोशालक ने पूछा कि हैरान हूं! आश्चर्य! इस पौधे को हम उखाड़ कर फेंक गए थे, यह तो फिर खड़ा हो गया है! महावीर ने कहा, यह फूल तक पहुंचेगा। और इसीलिए मैं आंख बंद करके खड़े होकर इसे देखा! इसकी आंतरिक पोटेंशिएलिटी, इसकी आंतरिक संभावना क्या है? इसकी भीतर की स्थिति क्या है? तुम इसे बाहर से फेंक दोगे उठा कर तो भी यह अपने पैर जमा कर खड़ा हो सकेगा? यह कहीं आत्मघाती तो नहीं है, सुसाइडल इंस्टिंक्ट तो नहीं है इस पौधे में, कहीं यह मरने को उत्सुक तो नहीं है! अन्यथा तुम्हारा सहारा लेकर मर जाएगा। यह जीने को तत्पर है? अगर यह जीने को तत्पर है तो...मैं जानता था कि तुम इसे उखाड़ कर फेंक दोगे। गोशालक ने कहा, आप क्या कहते हैं? महावीर ने कहा कि जब मैं इस पौधे को देख रहा था तब तुम भी पास खड़े थे और तुम भी दिखाई पड़ रहे थे। और मैं जानता था कि तुम इसे उखाड़ कर फेंकोगे। इसलिए ठीक से जान लेना जरूरी है कि पौधे की खड़े रहने की आंतरिक क्षमता कितनी है? इसके पास आत्म-बल कितना है? यह कहीं मरने को तो उत्सुक नहीं है कि कोई भी बहाना लेकर मर जाए! तो तुम्हारा बहाना लेकर भी मर सकता है। और अन्यथा तुम्हारा उखाड़ कर फेंका गया पौधा पुनः जड़ें पकड़ सकता है। गोशालक की दुबारा उस पौधे को उखाड़ कर फेंकने की हिम्मत न पड़ी; डरा। पिछली बार गोशालक हंसता हुआ गया था, इस बार महावीर हंसते हुए आगे बढ़े। गोशालक रास्ते में पूछने लगा, आप हंसते क्यों हैं? महावीर ने कहा कि मैं सोचता था कि देखें, तुम्हारी सामर्थ्य कितनी है! अब तुम दुबारा इसे उखाड़ कर फेंकते हो या नहीं? गोशालक ने पूछा कि आपको तो पता चल जाना चाहिए कि मैं उखाड़ कर फेंकूंगा या नहीं! तो महावीर ने कहा, वह गैर अनिवार्य है। तुम उखाड़ कर फेंक भी सकते हो, नहीं भी फेंक सकते हो। अनिवार्य यह था कि पौधा अभी जीना चाहता था, उसके पूरे प्राण जीना चाहते थे। वह अनिवार्य था; वह एसेंशियल था। यह तो गैर अनिवार्य है, तुम फेंक भी सकते हो, नहीं भी फेंक सकते हो--तुम पर निर्भर है। लेकिन तुम पौधे से कमजोर सिद्ध हुए हो, हार गए हो। महावीर से गोशालक के नाराज हो जाने के कुछ कारणों में एक कारण यह पौधा भी था--महावीर को छोड़ कर चले जाने में। ज्योतिष का--जिस ज्योतिष की मैं बात कर रहा हूं--उसका संबंध अनिवार्य से, एसेंशियल से, फाउंडेशनल से है। आपकी उत्सुकता ज्यादा से ज्यादा सेमी एसेंशियल तक जाती है। पता लगाना चाहते हैं कि कितने दिन जीऊंगा? मर तो नहीं जाऊंगा? जीकर क्या करूंगा, जी ही लूंगा तो क्या करूंगा, इस तक आपकी उत्सुकता ही नहीं पहुंचती। मरूंगा तो मरते में क्या करूंगा, इस तक आपकी उत्सुकता नहीं पहुंचती। घटनाओं तक पहुंचती है, आत्माओं तक नहीं पहुंचती। जब मैं जी रहा हूं, तो यह तो घटना है सिर्फ। जीकर मैं क्या कर रहा हूं, जीकर मैं क्या हूं, वह मेरी आत्मा है! जब मैं मरूंगा, वह तो घटना होगी। लेकिन मरते क्षण में मैं क्या होऊंगा, क्या करूंगा, वह मेरी आत्मा होगी। हम सब मरेंगे। मरने के मामले में सब की घटना एक सी घटेगी। लेकिन मरने के संबंध में, मरने के क्षण में हमारी स्थिति सब की भिन्न होगी। कोई मुस्कुराते हुए मर सकता है! मुल्ला नसरुद्दीन से कोई पूछ रहा है जब वह मरने के करीब है। उससे कोई पूछ रहा है कि आपका क्या खयाल है मुल्ला, लोग जब पैदा होते हैं तो कहां से आते हैं? जब मरते हैं तो कहां जाते हैं? मुल्ला ने कहा, जहां तक अनुभव की बात है, मैंने लोगों को पैदा होते वक्त भी रोते ही पैदा होते देखा और मरते वक्त भी रोते ही जाते देखा है। अच्छी जगह से न आते हैं, न अच्छी जगह जाते हैं। इनको देख कर जो अंदाज लगता है, न अच्छी जगह से आते हैं, न अच्छी जगह जाते हैं। आते हैं तब भी रोते हुए मालूम पड़ते हैं, जाते हैं तब भी रोते हुए मालूम पड़ते हैं। लेकिन नसरुद्दीन जैसा आदमी हंसता हुआ मर सकता है। मौत तो घटना है, लेकिन हंसते हुए मरना आत्मा है। तो आप कभी ज्योतिषी से पूछे कि मैं हंसते हुए मरूंगा कि रोते हुए? नहीं पूछा होगा। पूरी पृथ्वी पर एक आदमी ने नहीं पूछा ज्योतिषी से जाकर कि मैं मरते वक्त हंसते हुए मरूंगा कि रोते हुए मरूंगा? यह पूछने जैसी बात है, लेकिन यह एसेंशियल एस्ट्रोलाजी से जुड़ी हुई बात है। आप पूछते हैं, कब मरूंगा? जैसे मरना अपने आप में मूल्यवान है बहुत! कब तक जीऊंगा? जैसे बस जी लेना काफी है! किसलिए जीऊंगा, क्यों जीऊंगा, जीकर क्या करूंगा, जीकर क्या हो जाऊंगा, कोई पूछने नहीं जाता! इसलिए महल गिर गया। क्योंकि वह महल गिर जाएगा जिसके आधार नॉन एसेंशियल पर रखे हों। गैर-जरूरी चीजों पर जिसकी हमने दीवारें खड़ी कर दी हों वह कैसे टिकेगा! आधारशिलाएं चाहिए। मैं जिस ज्योतिष की बात कर रहा हूं, और आप जिसे ज्योतिष समझते रहे हैं, उससे गहरी है, उससे भिन्न है, उससे आयाम और है। मैं इस बात की चर्चा कर रहा हूं कि कुछ आपके जीवन में अनिवार्य है। और वह अनिवार्य आपके जीवन में और जगत के जीवन में संयुक्त और लयबद्ध है, अलग-अलग नहीं है। उसमें पूरा जगत भागीदार है। उसमें आप अकेले नहीं हैं। जब बुद्ध को ज्ञान हुआ तो बुद्ध ने दोनों हाथ जोड़ कर पृथ्वी पर सिर टेक दिया। कथा है कि आकाश से देवता बुद्ध को नमस्कार करने आए थे कि वह परम ज्ञान को उपलब्ध हुए हैं। बुद्ध को पृथ्वी पर हाथ टेके सिर रखे देख कर वे चकित हुए। उन्होंने पूछा कि तुम और किसको नमस्कार कर रहे हो? क्योंकि हम तो तुम्हें नमस्कार करने स्वर्ग से आते हैं। और हम तो नहीं जानते कि बुद्ध भी किसी को नमस्कार करे ऐसा कोई है। बुद्धत्व तो आखिरी बात है। तो बुद्ध ने आंखें खोलीं और बुद्ध ने कहा, जो भी घटित हुआ है उसमें मैं अकेला नहीं हूं, सारा विश्व है। तो इस सबको धन्यवाद देने के लिए सिर टेक दिया है। यह एसेंशियल एस्ट्रोलाजी से बंधी हुई बात है। सारा जगत...। इसलिए बुद्ध अपने भिक्षुओं से कहते थे कि जब भी तुम्हें कुछ भी भीतरी आनंद मिले, तत्क्षण अनुगृहीत हो जाना समस्त जगत के। क्योंकि तुम अकेले नहीं हो। अगर सूरज न निकलता, अगर चांद न निकलता, अगर एक रत्ती भर भी घटना और घटी होती तो तुम्हें यह नहीं होने वाला था जो हुआ है। माना कि तुम्हें हुआ है, लेकिन सबका हाथ है। सारा जगत उसमें इकट्ठा है। एक कास्मिक, जागतिक अंतर-संबंध का नाम ज्योतिष है। तो बुद्ध ऐसा नहीं कहेंगे कि मुझे हुआ है। बुद्ध इतना ही कहते हैं कि जगत को मेरे मध्य हुआ है। यह जो घटना घटी है एनलाइटेनमेंट की, यह जो प्रकाश का आविर्भाव हुआ है, यह जगत ने मेरे बहाने जाना है। मैं सिर्फ एक बहाना हूं, एक क्रास रोड, जहां सारे जगत के रास्ते आकर मिल गए हैं। कभी आपने खयाल किया है कि चौराहा बड़ा भारी होता है। लेकिन चौराहा अपने में कुछ नहीं होता, वे जो चार रास्ते आकर मिले होते हैं उन चारों को हटा लें तो चौराहा विदा हो जाता है। हम सब क्रिसक्रास प्वाइंट्स हैं, जहां जगत की अनंत शक्तियां आकर एक बिंदु को काटती हैं; वहां व्यक्ति निर्मित हो जाता है, इंडिविजुअल बन जाता है। तो वह जो सारभूत ज्योतिष है उसका अर्थ केवल इतना ही है कि हम अलग नहीं हैं। एक, उस एक ब्रह्म के साथ हैं, उस एक ब्रह्मांड के साथ हैं। और प्रत्येक घटना भागीदार है। तो बुद्ध ने कहा है कि मुझसे पहले जो बुद्ध हुए उनको नमस्कार करता हूं, और मेरे बाद जो बुद्ध होंगे उनको नमस्कार करता हूं। किसी ने पूछा कि आप उनको नमस्कार करें जो आपके पहले हुए, समझ में आता है। क्योंकि हो सकता है, उनसे कोई जाना-अनजाना ऋण हो। क्योंकि जो आपके पहले जान चुके हैं उनके ज्ञान ने आपको साथ दिया हो। लेकिन जो अभी हुए ही नहीं, उनसे आपको क्या लेना-देना है? उनसे आपको कौन सी सहायता मिली है? तो बुद्ध ने कहा, जो हुए हैं उनसे भी मुझे सहायता मिली है, जो अभी नहीं हुए हैं उनसे भी मुझे सहायता मिली है। क्योंकि जहां मैं खड़ा हूं वहां अतीत और भविष्य एक हो गए हैं। वहां जो जा चुका है वह उससे मिल रहा है जो अभी आने को है। वहां जो जा चुका उससे मिलन हो रहा है उसका जो अभी आने को है। वहां सूर्योदय और सूर्यास्त एक ही बिंदु पर खड़े हैं। तो मैं उन्हें भी नमस्कार करता हूं जो होंगे; उनका भी मुझ पर ऋण है। क्योंकि अगर वे भविष्य में न हों तो मैं आज न हो सकूंगा। इसको समझना थोड़ा कठिन पड़ेगा। यह एसेंशियल एस्ट्रोलाजी की बात है। कल जो हुआ है अगर उसमें से कुछ भी खिसक जाए तो मैं न हो सकूंगा, क्योंकि मैं एक शृंखला में बंधा हूं। यह समझ में आता है। अगर मेरे पिता न हों जगत में तो मैं न हो सकूंगा। यह समझ में आता है। क्योंकि एक कड़ी अगर विदा हो जाएगी तो मैं नहीं हो सकूंगा। अगर मेरे पिता के पिता न हों तो मैं न हो सकूंगा, क्योंकि कड़ी विसर्जित हो जाएगी। लेकिन मेरा भविष्य अगर उसमें कोई कड़ी न हो तो मैं न हो सकूंगा, समझना बहुत मुश्किल पड़ेगा। क्योंकि उससे क्या लेना-देना, मैं तो हो ही गया हूं! लेकिन बुद्ध कहते हैं कि अगर भविष्य में भी जो होने वाला है, वह न हो, तो मैं न हो सकूंगा। क्योंकि भविष्य और अतीत दोनों के बीच की मैं कड़ी हूं। कहीं भी कोई बदलाहट होगी तो मैं वैसा ही नहीं हो सकूंगा जैसा हूं। कल ने भी मुझे बनाया, आने वाला कल भी मुझे बनाता है।
क्रमशः अगली पोस्ट पर...

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