Monday, January 24, 2011

ललना लंगोटी : आजादी पूंजीवादी

        थोंग्स उर्फ ललना-लंगोटी आज अमेरिका में फैशन के भागते भूत की है तो भारत में सर पर सवार होते की | जिन्हें ललना-लंगोटी शब्द अटपटा लगता हो उनसे निवेदन है की जिस वस्त्र-विशेष को करोड़ों अमेरिकी ललनाओं ने बहुत ललक से अपनाया उसके लिए पट्टे, कोड़े, चप्पल और मर्दाना लंगोट के अर्थ में प्रयुक्त हो चुके शब्द 'थोंग्स' का इस्तेमाल करना भाषा का ही नहीं, स्त्रियों का भी अपमान करना होगा | उसे ललना-लंगोटी पुकारने से ही सौंदर्यबोध और यथार्थवाद दोनों की रक्षा हो पायेगी | ललना-लंगोटी प्रसंग इसलिए छेड रहा हूँ कि अपने यहाँ से रद्दी में बिकते पिछले दिसंबर के दो अंग्रेजी दैनिकों में मुझे इस पहनावे को अपनाये जाने कि पैरवी करते दो समाचार मिले | एक दैनिक ने प्रथम पृष्ठ के अधोभाग में 'वियर लेस, पार्टी हार्ड' की सुर्खी तले इस अधोवस्त्र को इनथिंग बताते हुए यह लिखा था कि जो ललनाएं लंगोटी नहीं पहनेंगी वे फैशन के मामले में आउट ऑफ डेट समझी जाएँगी | जो पहनेंगी लेकिन दिखाएंगी नहीं वे, गुनाह-ए-बेलज्जत कर रही होंगी | तो ठण्ड की परवाह न करें, ऊपर चोली नीचे थोंग्स और माईक्रो यानी आधी जांघ तक आने वाली स्कर्ट पहनकर जाएँ और गर्माहट के लिए जमकर ड्रिंक और डांस करें | रद्दी में जाते दूसरे दैनिक में मुझे यह पढ़ने को मिला कि थोंग्स अब साधारण घरों के ललनाएं भी खरीद-पहन सकती हैं क्योंकि देसी थोंग्स तो सौ रुपये तक में मिलने लगी हैं |
        विस्मित हुआ कि अरे कुछ ऐसी ही बातें चार-पांच साल पहले अमेरिकी अख़बारों में पढ़ी थीं | तब कहाँ सोचा था कि मुक्तमंडी हमें ग्लोबल गाँव का हिस्सा बनाकर ललना-लंगोटी भारत में भी चला देगी ! यह तो अब समझ में आया है नया पूंजीवाद उपभोग पर अनाप-शनाप खर्च कराने के लिए वस्तुओं के न केवल नित नए मॉडल निकालता और फैशन चलाता है बल्कि अपने मीडिया से उन्हें विश्वव्यापी स्वीकृति भी दिलवाता है | उपभोक्तावाद को समर्पित मीडिया किस तरह यह काम अंजाम देता है, इसकी एक दिलचस्प बानगी साधु-संतों और पहलवानों के सदियों पुराने और आधुनिक मर्दों तक के लिए सख्त आउट ऑफ डेट हो चले पहनावे लंगोट को ललनाओं के लिए इनथिंग बना दिए जाने के अभियान से मिलती है जो संक्षेप में इस प्रकार है |
        आज से कोई 20 साल पहले चोली-चड्डी उद्योग इस बात से चिंतित था कि ब्रा-पैंटी के क्षेत्र में कोई नयी खोज न होने के कारण हमारा मुनाफा नहीं बढ़ पा रहा है | तभी 'पुशअप' (स्तनों को उठा देने वाली) ब्रा के 'आविष्कार' से मुनाफे का ढलकता ग्राफ खासा पुशअप हुआ | लेकिन किसी नए फैशन के अभाव में चड्डी कि बिक्री में चमत्कारी बढोतरी नहीं हो सकी | तब फैशन गुरुओं से कहा गया कि पैंटी के मामले में भी ऐसा ही कोई नया चमत्कार कराओ | उनका ध्यान गया थोंग्स कि ओर | फैशन के इतिहासकार कहते हैं ललना-लंगोटी का आविष्कार सन् 1939 में न्यूयार्क की नाईट क्लब नर्तकियों ने तब किया जब वहां के मेयर ने नग्न-नृत्य पर प्रतिबन्ध लगा दिया |
        लंगोटीनुमा इस पैंटी को तैराकी पोशाक का हिस्सा बनाने कि कोशिश अमेरिका में 1974 में की गयी | लेकिन वह विफल रही क्योंकि तब स्त्रीवाद से प्रभावित आधुनिकाएँ भी नारी को केवल भोग्या बनाने की फैशन जगत की कोशिशों का जमकर विरोध कर रही थीं | यही नहीं, वे इस स्थापना को भी ठुकरा चुकी थीं कि मर्दाना कपड़े पहन लेने मात्र से स्त्री मर्दों की बराबरी का दर्जा पा जाती है | बहरहाल, बीसवीं सदी के फैशन गुरुओं को लगा कि ललना-लंगोटी चला देने का उपयुक्त समय आ गया है | इस बीच मुक्तमंडी का मीडिया दो बातें पूरी तरह स्त्रियों के मन में बैठा चुका था | पहली यह कि सेक्सी होना और दिखाना औरतों कि आजादी का सबसे बड़ा सबूत है और दूसरी यह कि मर्दों के कपड़े पहनने से औरत को उनकी बराबरी का दर्जा मिलता है | अब जरुरत थी थोंग्स को सेक्सी करने की | तो मीडिया ने बताया कि ब्राजील में कार्निवाल में नाचने वाली औरतें और सागर तट स्नान करती दबंग आधुनिकाएँ थोंग्स पहनने लगीं हैं | मर्द थोंग्स पहनी महिलाओं को देखने जा रहे हैं तो औरतें वहां सागर तट पर थोंग्स धारण करने का अवसर पाने के लिए | कार्निवाल के लाइव टेलीकास्ट किये जाने लगे और ब्राजील के सागर तटों पर सचित्र लेख छपने लगे | स्त्रियों के बयान प्रकाशित और प्रसारित किये गए कि ब्राजील में थोंग्स पहनी तो पति अथवा प्रेमी को बेहद सेक्सी लगी मैं |
        दूसरे मोर्चे पर मीडिया ने यह बताने की मुहीम छेड़ी कि लंगोट से अधिक कोई मर्दाना पोशाक हो ही नहीं सकती | और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही आधुनिक मर्द 'जॉक स्ट्रैप' के नाम से थोंग्स अपना चुके हैं | यही नहीं, वे जींस इतनी नीचे बंधते हैं कि लंगोट दिखाई दे | तो मर्दों से बराबरी करने के लिए आप या तो जींस नीची बांधें या फिर माईक्रो स्कर्ट पहनें | थोंग्स के पट्टे को जेवर वगैरह से सजाकर अपने सेक्सी होने के साईनबोर्ड को अधिक आकर्षक बनायें | अब शुरू हुयी 'सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट' यानि जानी-मानी हस्तियों द्वारा मुहर लगवाने की मुहिम | वाहियात चीज़ों को विख्यात व्यक्तियों की वाहवाही दिलाने के इस हथकंडे में मुक्तमंडी उन्हें विज्ञापन में उतारती है | लेकिन विज्ञापन तो विज्ञापन ही होता है लिहाजा थोंग्स के मामले में भी तगड़ा पैसा देकर सेलिब्रिटी को सार्वजनिक अवसरों पर उन्हें पहन कर आते रहने के लिए मंडी राजी करती है | तो पटाखा गायिका ब्रिटनी स्पीयर्स नीचे बंधी जींस में से थोंग्स दिखाती नज़र आने लगी | और सेक्सी टेनिस खिलाडी अन्ना कोरिन्कोवा सभी प्रतियोगिताओं में माईक्रो स्कर्ट की मेहरबानी से थोंग्स का एक अदद विज्ञापन बनने लगीं |
        यही नहीं, गायक सिस्को उसी ज़माने में अपने एक गीत में प्रेमिका से बार-बार यह तकाजा करते सुना गया कि 'लेट में सी देट थोंग' (जाने जां लंगोट दिखा) | तो अमेरिका में सर्वत्र थोंग्स जींस में से झांकते नज़र आने लगे | लेकिन साथ ही, ललनाओं की यह शिकायत जोर पकड़ने लगी के ये तो चुभते हैं | फैशन उद्योग ने भी महसूस किया कि अब नया मॉडल लाना चाहिए | तो अब अमेरिका में मुक्तमंडी का मीडिया औरतों को यह नेक सलाह दे रहा है कि या तो मर्दाना जांघिया धारण कर लें या ऐसी पैंटी जिसकी रूप-रेखा कपड़ों के नीचे से दिखती हो | इधर भारतीय मीडिया ललना-लंगोटी का गुणगान कर रहा है और बता रहा है कि किस फिल्म में किस अभिनेत्री ने थोंग्स पहनकर नाच किया है | विकसित देशों में ढलान पर आ चुके फैशन विकासशील देशों में चलाकर उनसे कुछ और पैसे कमाए जा सकें | मुक्तमंडी सारे संसार को जो आजादी देनी चाहती है वह बस उपभोग कि आजादी है |
(1 मार्च, 2004)


- प्रस्तुत लेख 'मनोहर श्याम जोशी' (या यह देखें ) की पुस्तक 'आज का समाज' से उद्धृत है |
- आगामी कुछ कड़ियों में इसी पुस्तक के कुछ और दिलचस्प लेख प्रस्तुत करूँगा | (मुक्तमंडी सनसनी, तो पाठकों जायिएगा नहीं!!)

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