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नहीं, ये एक नेक्सस है, 'भारतीय टाईप' का लोकतंत्र गुण्डागिल्ड है ।
लोकतंत्र के सभी प्रकारों से अलग यह एक 'भारतीय लोलतंत्र' है । वक्त आ गया
है जिसे अब राजनीति के किताबों (NCERT सहित) में जोड़े जाने और पढ़ने की
जरुरत है ।
जब पहले दिन कुछ सूअर इस तंत्र की उस संसद में पहुंचे
तो मल-मूत्र और कादे-कीचड़ रहित उस माहौल की सफाई देखकर उनके कुछ सूअर
सांसदों को हृदयाघात हुआ और वे परलोक को प्राप्त हुए । उनके शेष बांधवों ने
एक सुनसान जगह के दलदल में जाकर शवों का फ्युनेरल किया, दो दिन तक
रुदालियाँ गायी गईं । तीसरे दिन, तीये की बैठक में, उस वीराने में उन सब
शेष सूअर बंधुओं ने एक प्रतिज्ञा की - "सौगंध है हमें उन सूअरधाम सिधारे
भाई-बहनों की, जब तक हम इस पूरे तंत्र को, इस पूरे देश को अपने मल-मल-मूत्र
भरे आँगन में (जो उन्हें विरासत में मिला था पर जिसके दुश्मन बनने पर तुले
थे नए तंत्र के कुछ लोग) अपने साथ घसीट कर नहीं ले आते तब तक हम भी इस
टट्टीलोक में नहीं लौटेंगे । इन सूअरों ने उस टट्टीलोक की याद में पल-पल
आँसू बहते हुए पूरी शिद्दत के साथ 3-4 दशक तक काम किया, न चाहते हुए भी साफ़
खाना खाया, अपमान के घूँट पिए, बिना हिर्र-घुर्र किये । ध्यान रहे, इस
लम्बे समय में भी इनका हौसला नहीं टूटा । इनकी कई पीढियां उनके इस पुण्य
प्रोजेक्ट में बिना उफ़ किये और वापस अपने पूरखों के आँगन तक पहुँचने का
स्वप्न लिए ही स्वाहा हो गईं । पर आने वाली पीढ़ियों का भागीरथ प्रयास जारी
रहा । 3-4 दशक बाद इन्हें कुछ परिणाम दिखाई देने लगे और जिससे अब तक अपमान
प्राप्त करता आ रहा सूअर समाज उत्साह का पान भी करने लगा । इतने समय तक जो
बीज सूअर समाज बो रहा था अब उसके अंकुर भी फूटने लगे और अब जाकर उनको कुछ
ताकत भी मिलने लगी और इनका मिशन शक्ति के साथ रफ़्तार पकड़ने लगा ।
अब इस पूरी संसद की इमारत को ढहाना है इसके मलबे को ले जाकर दलदल में बहाना
है, और वहां पहुंचकर हम एक कार्निवाल मनाएंगे अपने पूर्वजों की याद में ।
कि आज हमने उस इमारत को आपकी समाधि पर चढ़ा कर सूअर समाज के गुमनामी में
सिधार गए हमारे पुवाजों के प्रतिज्ञा को पूर्ण किया ।
इन्होंने अब
अपने 'पूर्व-पूर्वजों' के नियमों को और सख्ती से अमल में लाना शुरू किया ।
तो अब कानून बनाओ के मॉडल को तीव्र गति दी गयी । जो भी कार्य सफाई को
प्रेरित करता होगा वह अपराध माना जायेगा, और उसे रोकने के लिए नए कानून
बनाये जाने लगे । जो सूअर किसी अपराध के कारण जेल में डाल दिए गए उन्हें अब
जनता का प्रतिनिधि बनने का मौका दिया जायेगा । इसके लिए कानून बन गया ।
धीरे-धीरे संसद में सूअर समाज की संख्या में प्राप्त सुधार आने लगा ।
इन्होंने अपने लोकतंत्र में नित-नए आदेश जारी किये । पर प्रशासन में बैठे
कुछ लोग इनके आदेश को सफाई वाले तंत्र के अनुकूल कर देने लगे । सूअर सामाज
के वार्षिक मीटिंग में मुद्दा उठा कि प्रशासन में जब तक सूअरों की उचित
संख्या नहीं होती तब तक ये लोग हमारे गंदगी वाले प्रोजेक्ट को सही राह पर
ले जाने में बाधा हैं । कुछ युवा सूअरों ने हिन्-हिन् करते हुए, योजना
बनाने का दिमाग न होने की असमर्थता भी वरिष्ठ सूअरों के आगे जाहिर कर दी ।
वरिष्ठ सूअरों ने मंथन किया । सप्ताहांत, रविवार को कीचड़ जैसी विस्कस (घी
जितनी ही गाढ़ी-लसलसी) योजना निकला के सामने आई । अज्ञानता के कारण से
प्रशासन में न आ पाने वाले सूअरों को जब तक स्थान नहीं मिलता जब तक ये
कार्य असंभव है, सफाई वाले लोग हमारे आदेशों की अवहेलना किये जा रहे हैं ।
इसके लिए कानून बनना चाहिए । कानून बना, ये न्यायालय जो हम पर सर्वोपरि
होकर हमारी आँख की किरकिरी बन रहा है, वहां हमारा सूअर होना जरुरी है ।
चाहे जितना आरक्षण देना पड़े, दिया जायेगा, अगर पचास प्रतिशत से ज्यादा देने
में संविधान आड़े आता है तो संविधान का भी संशोधन कर दिया जायेगा, और हम
इसके लिए नयायालयों के पुर्णतः सुअरिकरण होने का इंतज़ार नहीं कर सकते । जब
तक सभी न्यायालयों में सूअर नहीं आ जाते तब तक, हम संसद में आ चुकी हमारी
जमात के समर्थन का प्रयोग करेंगे और संविधान और पूराने कानून बदलेंगे ।
योजनानुरूप, अपने दलदलों के उचित रूप से रख-रखाव के लिए और स्वादिष्ट
टट्टी-भोज के उत्पादन के लिए इनको सफाई तंत्र के योग्य-पेशेवर लोगों की
जरुरत भी थी तो उन्हें पूरी तरह से नहीं निकाला गया । मॉडल-मेप बनाये गए हर
राज्य में प्रेसिडेंसी बनायीं गयी, नयी दिल्ली, भोपाल, चेन्नई मुम्बई
वहैरह वगैरह । प्रेसिडेंसी के मुख्यालयों पर, योजनाओं के क्रियान्वन करने
वाले विभागों और पदों पर तो आरक्षित सूअरों को स्थायी पोस्टिंग दी गयी और
योजना बनाने वाले पेशेवरों को सिर्फ सुझाव देने वाले आयोगों, विभागों और
पदों तक सीमित किया गया । सुझाव देने में कुछ ज्यादा श्याणपट्टी करने वाले
अफसरों को स्थानांतरित किया गया सुदूर एकांत में, मसलन बाड़मेर,
काला-हाण्डी, दक्षिणी-अण्डमान, कोहिमा । जहाँ वे अब रेत की टीलों, तालाबों,
घास-फूस और लुप्त प्राय: सरीसृपों को अपनी कहानियां सुनाते हैं कि वहां
कैसे स्लम वाले सूअर मिलियनर बन गए हैं, वे नकली कार्यक्रमों को भी रियलिटी
का ही नाम देते हैं । मूक सरीसृपों के पास पूरे दिन ज्यादातर समय खाली ही
रहता सो वे चुप-चाप पड़े पड़े रस लेकर सुनते और उनकी इस ग्राह्यता पर वे अफसर
संतुष्ट हो जाते कि चलो कीचड़ वाले सूअरों के देश से ये देश ही अच्छे । सो
वापस तबादले की अर्जियां भी कम होने लगीं । सूअर समाज को इन नीतियों के बड़े
सुखद परिणाम दिखाई देने लगे । अब प्रोजेक्ट कम्पलीशन के आगे दिल्ली भी दूर
लगने लगी थी ।
नए सूअरों ने अपने वरिष्ठ सूअरों की इन नीतियों को
भली-भांति और मेहनत पूर्वक सीखा और अब सुअरिकरण की रफ़्तार एक्सपोनेंशियल
हो चली थी । इन नए सूअर प्रशासकों ने कानूनों का सुचारू ढंग से उपयोग करते
हुए अपने पीए से लेकर एल-डी-सी और चपरासी तक, कमिश्नर-एसपी से लेकर
ठुल्लों, मनरेगा के मस्टर रोल कर्मचारियों तक सूअर बंधुओं को नौकरी देने के
अवसर पैदा किये । कुछ विरोध जैसे रोड़े आने पर सुअरों सांसदों ने इनकी
सहायता की क्योंकि अब वे लोगों के लोकतान्त्रिक जन प्रतिनिधि थे, भले ही
सूअर की खाल में थे पर कानूनन थे । और जो कानून नहीं मानेगा उसे सजा मिलेगी
और प्रोजेक्ट पूरा होने से पहले ही एक अलग से बने दलदल में डाल दिया जएगा,
जिसके लिए पूर्वज आत्माओं से माफ़ी मांग ली जाएगी (वह दलदल जो प्रतिज्ञा
पूर्ति और कार्निवाल के लिए आरक्षित जो था । अतः उसे अपवित्र नहीं किया जा
सकता था ।)
कानून बने, सूअरों को सक्षम करने के आर्थिक, राजनैतिक,
सामाजिक, शारीरिक और अन्य सभी क्षेत्रों में । हर निर्माण के ठेके सूअरों
को मिले, जमीन जायदाद कानूनन छिनी जाने लगीं । कब्जाई जमीने सूअरों को,
सूअर पुत्रियों के मलंजीव-दामादों को लोकतान्त्रिक तरीके से बाँटी गयी ।
अलायन्स पर अलायन्स बनते गए, पिग्गी बैंक फूलते गए । और दो दशक पहले संसद
की नीव खोदने का ठेका दिन दहाड़े बिना संविदाओं के आमंत्रित किये सूअरों को
कानून के तहत दे दिया गया । खम्भे, ईंट, रेत-मलबा गाड़ियों में भर भर कर
जंगल के उस दल-दल में ले जाये जाने लगे । इस बीच सफाई तंत्र के लोग
दिन-ब-दिन बेहाल परेशान हो रहे थे, वे कमजोर होते चले गए, ठीक से खाना भी
नसीब नहीं हो रहा था । पर कीचड़ और सूअरों से दूर रहने के लिए मूक सरीसृपों
के साथ संतुष्ट रहो ये अपनी नयी नस्लों को सीखाये जा रहे थे । पर उन्होंने
ये कभी नहीं सोचा की सूअरों की प्रेसिडेंसी का दायरा फेलता जा रहा है जो
कुछ ही वर्षों में लाहौल-स्पीती से इन्दिरा प्वाईंट तक हर कोने में फैल
जायेगा । कमजोरी से मायोपिया जो होने लगा था और अब उनके समाज की ताकत और
संख्या सब कम हो जा रहा था उधर सूअरों में ये सब बढ़ता जा रहा था ।
अब सूअर इतने मुखर हो चुके थे कि दिन-दहाड़े आम आदमी के टैक्स का पैसा,
बैंकों में जमा पैसा, घर में पड़ा पैसा लूटने लगे । सूअरों ने
प्रेसीडेंशियों-जंगलों के बीच हाईवे बना लिए जिससे संसद का मलबा ले जाने
में आराम रहे और प्रोजेक्ट जल्दी पूरा हो सके । इसके लिए रोड़ निर्माण में
FDI की मदद ली गयी । उनकी गाड़ियों के नीचे हर रोज कोई न कोई आम-आदमी
छिल-छाल जाता, काल के गाल में जाता, पर । पर अब कहीं कोई आवाज़ नहीं सुनी
जाती थी, पुलिस, दफ्तर, न्यायलयों तक सब और सूअर ही सूअर बैठ चुके थे ।
ये दिन रात आम आदमी की बहन-बेटियों को सेंट्रल पार्कों और चौराहों पर नंगी
करके उनके साथ जबरन यौन क्रीडाओं में लिप्त होने लगे । ऐसे ही एक आम दिन
(जो असल में सूअरों के लिए ही आम दिन कहे जा सकते थे), 2012, 16 दिसंबर को
रात में कुछ सूअर संसद का मलबा फेंक कर दिल्ली प्रेसिडेंसी लौट रहे थे,
रात्रि का समय होने कर कारण गधे का मूत उनके टेम्पोरल कार्टेक्स न्यूरोन सब
जगह अपने सुरूर पर था । इन्होंने एक आम युवती को पकड़ लिया, उसके साथ
अत्यंत क्रूरता के साथ सूअरकर्म किया । जाते-जाते उसके गर्भाशय को अपने
केनाईन दांतों से फाड़ा, उसका खून पिया और लोथड़े को झाड़ियों के कचरे में
फेंक कर आगे बढ़ चले ।
युवती जवान थी तो आम आदमी की जवाँ नस्ल के
बर्दाश्त से बहार हो गया ये हिर्र्-घुर्र कृत्य । इस दुषण वाले माहौल को वे
काफी समय से अपने बड़ों की सीख को मन में लिए सहते जा रहे थे, सहते ही जा
रहे थे । पर इस घटना से उनका खौल कर बहार आ गया । उन्होंने खंडहर बनी संसद
के आगे शोर मचा दिया । पर वहां सब सूअर ही थे । मोटे-मोटे सूअरों ने
लाठियों से पीटा, इनका खौलता खून नाक-कान से निकल कर बहार आ गया । लड़की मर
चुकी थी । संसद वाले सूअर आराम से कीचड़-पान में लगे थे उनको इन लोगो से कोई
मतलब भी नहीं था, इनकी हार में तो उनकी जीत ही थी ।
घर लौटकर, अब
ये आम-जवाँ सब जगह फेसबुक-ट्विटर पर चर्चा में जुटा हुआ है । अब क्या किया
जाये ? कितनी सम्भावना है सुधार की ? अब इस सूअर तंत्र से कैसे छुटकारा
पायें ? पूछने लगे खोजने लगे पर जिन खोजा, तिन पाईयाँ । अब इनको पता लगने
लगा सूअरों ने अपनी ताकत का फैलाव बहुत दूर तक कर लिया है ? हर दिन सूअर
क्षेत्र की ताकत की सीमा का ये पता लगाते हैं, उतना ही क्षितिज और दूर
दिखाई पड़ता है ? युवाओं के दिमाग ये दूरियां देखकर पैरालायिज हो जा रहे हैं
।
उधर परसों जब युवती की आत्मा, आत्मलोक में पहुंची तो उसे जॉर्ज
मिले । उसने पुछा आदरणीय जॉर्ज ये सब क्या था ? जॉर्ज ने बताया, प्यारी
बेटी ये वही सूअर बाड़ा था जिसको मैंने कई वर्ष पहले भी बताया था पर
तुम्हारे पूर्वजों ने कभी इतिहास कुछ सीखा नहीं, अडजस्ट करने की इतनी
काबिलियत थी उनमें कि वे कभी प्रतिकार पर उतरे ही नहीं वरना सूअर इतने
काबिल ही कब थे जो एक देश पर कब्ज़ा कर लेते । अब उस युवती की आत्मा युवाओं
को 'चुप न रहने', 'न सहने', 'अडजस्ट न करने' की कीमिया बताना चाहती है । पर
सूअरों ने पेशेवरो विज्ञानियों के पिछवाड़े पर लात मार कर एक एंटी-संपर्क
आयरन डॉम पर रिसर्च करवाया और बनवाया । जिसे वातावरण के ऊपर लगाया गया जो
सफाई का ज्ञान अन्दर नहीं आने देता । वह लड़की अब आ नहीं सकती, उपाय बता
नहीं सकती । क्योंकि मरे हुए लोगों से सम्बन्ध बैठने की कीमिया, इतिहास के
ज्ञान को सीखने की कीमिया, इस डॉम को तोड़ने की कीमिया सूअरों ने रोक दी, जो
जानते थे उनको दकियानुस करार दिया गया । बुद्धिजीवी की उपाधि, डिग्रियां,
पढने का मौका, प्रोफ़ेसर बनने का मौका सिर्फ उन लोगों ही दिया गया जो ऐसे
ज्ञान का विरोध करते थे जो सुअरों के लिए घातक बन सकता हो । अब अगर ये आम
युवा विरोध भी करते हैं और लड़ते हैं तो इनको भी दो-तीन पीढियां बलिदान करनी
ही होंगी एक दिन में तो सूअरों का भी कब्ज़ा नहीं हुआ था । पर ये युवा कहते
हैं हमें न मिले जो संसार उसके लिए बलिदान थोडा कठिन है । कठिन है तो छोड़ो
बकवास, करवाते रहो चुप-चाप अब बलात्कार । क्योंकि असल में सूअरों का
प्रोजेक्ट सफल हुआ और तुम्हारी बुद्धि हो गयी सूअरों से भी बददतर । तुम भी
अब बन गए हो उनके जैसे सूअर और कीचड़ से सनी घास में दलदल के बहार बैठे
गुलामों की तरह, सूअरों के छोड़े गए गू को खाते हो ।
सम्प्रति :
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सूअरों ने अंतरजाल पर आम आदमी के जैसे-तैसे बनते जा रहे नए वर्ग को तोड़ने
के लिए भी सेंसर के कानूनों पर चर्चा शुरू कर दी है जो जल्दी ही अमल में
लाए जायेंगे, वे इतने दशकों की मेहनत से प्राप्त इस सूअर तंत्र को तकनीक के
बल पर किसी भी हालत में सफाई तंत्र में तब्दील नहीं होने दे सकते । आम
युवाओं के हौसले पस्त हो जा रहे हैं, वे जन्मजात ही मायोपिया ग्रसित पैदा
हो रहे हैं सूअर नगरों की गंदगी को वे अब देख भी नहीं पाते, जो देख पाते है
वो साफ़ नहीं कर पाते, कुपोषण के शिकार जो होते जा रहे हैं । क्योंकि गाँव
के फार्म हाउस भी अब सूअरों के कब्जे में हैं उनके सूअर बच्चे और किशोर दिन
में दूध रात में दारू पीते हैं । फार्महाउस में जाकर चिकन पकाते हैं, वापस
नगर में आकर नसों के सलवट और गर्मी निकालते हैं और हर दिन अपने ओछेपन का
मुखरता से इज़हार करते हैं । मुझे खबर मिली कि अगले कुछ दिनों में सूअर अपने
वर्षों से घोषित कार्निवाल की तारिख घोषित करने जा रहे हैं क्योंकि संसद
तोड़ दिया गया है, लोकतन्त्र को दलदल में डाल दिया गया है, उनकी प्रतिज्ञा
पूर्ण हो चुकी है ।
-- योगेन्द्र (फेसबुक पर एक आम युवा)
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