तारीख 6 जून, 2011. आज जब ढलती दोपहर को मैं देश के तेजी से बदलते घटनाक्रम पर पल-पल जानकारी लेते हुए न्यूज़ पर पकड़ बनाये हुए था तो उस समय जनमर्दन द्विवेदी की प्रेस कांफ्रेंस का टेलीकास्ट किया जा रहा था | अचानक एक शख्स अपना जूता लेते हुए द्विवेदी पर चढ़ाई करता हुआ दिखाई पड़ा बाद में जो हुआ सब जानते ही हैं कि उसे पार्टी गुर्गों के द्वारा साईड में ले जाकर धुन दिया गया | देखते ही मुझे चेहरा जाना पहचाना लगा मैंने तुरंत अपने तत्कालीन विद्यालय मित्रों से संपर्क साधा और पूछने पर पता चल उन्हें भी ऐसा ही लग रहा है | कुछ ही क्षण में स्क्रीन पर नाम फ्लेश हुआ सुनील कुमार और अब मेरे लिए शक की कोई गुंजाईश नहीं बची थी खासकर उनके व्यक्तित्व को देखते हुए |
इस दो-तीन मिनट के घटनाक्रम ने इस सुनील कुमार नामक व्यक्ति को पल भर में पूरे देश में हाईलाईट कर दिया | बाद में तरह-तरह की सियासी बयानबाजियां जो न्यूज़ पर चली उन्हें देखकर मैं हैरान था की लोग बिना जाने सोचे समझे जल्दबाजी में कैसी-कैसी उलटी सीधी बकवास शुरू कर कर देते हैं |
सुनील कुमार शर्मा काफी समय तक अंग्रेजी के अध्यापक रह चुके हैं | इनका राजस्थान के सीकर और झुंझुनू जिले के विद्यालयों में अच्छा नाम रह चुका है और जो विद्यार्थी इनसे पढ़े हैं वे सब इनके खासे फेन हैं | मैं ऐसे ही एक विद्यालय का विद्यार्थी रह चुका हूँ जिसमें वे पढाया करते थे | हालांकि वे मेरे सेक्शन में नहीं थे पर स्कूल में आने के पहले दिन ही उन्होंने सभी का ध्यान अपनी और आकर्षित कर लिया था | पहले दिन ही प्रेयर असेम्बली में उन्होंने जो फर्राटेदार अंग्रेजी में शानदार जुमलों के साथ अपना परिचय दिया और जो अलंकृत वचन सुनाये तो सभी की उनींदी तन्द्रा टूटी जो अमूमन प्रेयर असेम्बली में प्रार्थना करते-करते सबको पकड़ जाती है | मैं जहाँ पढ़ा था वो विद्यालय था "झुंझुनू अकेडमी" | यहाँ से पहले सुनील शर्मा जी सीकर जिले के नामी विद्यालय "विद्या भारती" में पढ़ाकर आये थे जिसके मालिक श्रीमान बलवंत सिंह चिराना जी हैं | झुंझुनू एकेडमी से जाने के बाद वे झुंझुनू के ही एक दुसरे बड़े विद्यालय "टैगोर पब्लिक स्कूल" में गए जिसकी मालिक और पूर्व में इसकी प्रिंसिपल रह चुकीं श्रीमती संतोष अहलावत हमारे यहाँ से विधायक और सांसद के चुनाव भी लड़ चुकी हैं | इनके अलावा उन्होंने "राजस्थान पब्लिक" स्कूल और शायद एक दो स्कूलों में और पढ़ाया था | ये झुंझुनू के आस-पास कई बड़े स्कूलों में अध्यापन कर चुके हैं क्योंकि इनकी प्रतिभा को लेकर किसी को शक-शुबहा नहीं था | पर ऊपर बताये गए स्कूलों में से एक भी स्कूल का संघ जैसी संस्था से दूर-दूर तक कोई नाता होगा मैं सपने में भी नहीं सोच सकता उलट इसके ये कह सकते हैं ये सब स्कूलें खासे पूंजीपतियों की रही हैं | "झुंझुनू अकेडमी" स्कूल शुरू से लेकर आज तक उन सीढियों पर तेजी से चढ़ता चला गया है जिसे वर्तमान में सफलता के नाम से जाना जाता है | "झुंझुनू एकेडमी" भी उन्हीं दुसरे और आपके शहरों के बड़े नामी विद्यालयों की तरह ही है जो अपने शहर के पांच सितारा सुविधाओं वाले स्कूलों की श्रेणी में आते हैं | इनकी टेग लाईन है "मेरिट वाला विद्यालय" | पचासों मेरिट देने वाला ये स्कूल आपको अपनी इस दक्षता से आश्चर्यचकित कर सकता पर मुझे तो बिलकुल नहीं | क्योंकि इसके पीछे पूंजीवाद नियंत्रित भ्रष्ट तंत्र का बेजोड़ कर्मठ प्रयास है |
झुंझुनू अकेडमी के डायरेक्टर श्रीमान दिलीप मोदी आज न्यूज़ चैनल को फ़ोन पर कुछ ये बताते सुने गए कि सुनील शर्मा फर्राटेदार अंग्रेजी से लोगों पर झूठा प्रभाव ज़माने वाले और मानसिक रूप से थोडा डिस्टर्ब इंसान है और इसलिए उन्हें निकाल दिया गया और अन्य जगहों पर भी उनके साथ ऐसा ही हुआ | पर मैं श्रीमान मोदी जी से इतर विचार रखता हूँ | एक शब्द में अगर बयां करना हो तो कह सकते हैं कि ज़माना जिसे ज़मीर वाला इंसान कहता है सुनील कुमार वही शख्सियत है | बेबाक और अपने जज्बातों को पूरी तरह से अभिव्यक्त कर देने वाला आदमी कभी-कभी समाज में बीमार की संज्ञा पाता है और उसका बयां सच लोगों को हज़म नहीं होता इसमें कोई दो राय नहीं |
जिस साल सुनील सर मोदी जी के स्कूल से गए, असलियत में उस समय उन्हें निकाला नहीं गया बल्कि उन्होंने खुद स्कूल छोड़ा था | मैंने उससे एक साल पहले ही अपनी 12 वीं कक्षा उतीर्ण कर ली थी | पर जो सुनने में आया वो ये था कि श्रीमान मोदी जी ने उनकी तनख्वाह रोक कर रखी थी और अन्य अध्यापकों के साथ भी ऐसा ही होता है | ये लोग तनख्वाह को देने की फ्रीक्वेंसी कुछ महीने पीछे करके रखते हैं | घोर पूंजीवादी संस्थानों में किस तरह की गुलामी कर्मियों से करवाई जाती है उसे मित्र अच्छी तरह जानते हैं | पर सुनील कुमार शर्मा के लिए ये बर्दाश्त से बहार था | तनख्वाह की मांग सुनील कुमार कई दिनों से कर रहे थे | मोदी और उनके बीच की अंतरकलह एक दिन पूरे स्टाफ के सामने फूट पड़ी | बाद में जब दबे-छिपे स्वरों में खबर निकल कर आई वो ये थी सुनील कुमार ने हमारे महापूंजीपति मोदी जी का कॉलर पकड़ कर थपड मारते हुए जोरदार जुमलों के साथ जो लानत-मलानत पूरे स्टाफ के सामने की वो देखने लायक थी | मलानत करके उनके महंगे शीशों से सुसज्जित दरवाजे को लात मारते हुए सुनील जी अपना बजाज स्कूटर स्टार्ट कर बिना पैसे लिए अनजाने भविष्य की और निकल गए | उनके जीवन में ऐसे कई वाकये आये हैं जिन सबकी जानकारी तो शायद यहाँ देना संभव नहीं होगा पर जो यहाँ दी गयी है आशा है उससे आप वस्तु स्थिति को समझ जायेंगे |
सुनील शर्मा का व्यक्तित्व
सुनील कुमार एक बहुमुखी प्रतिभा वाला व्यक्ति हैं | अंग्रेजी के अध्यापक होने के नाते अंग्रेजी भाषा पर उनका जबरदस्त अधिकार तो है ही इसके अलावा उनमें अन्य कई गुण भी हैं |
उनके आसपास के सर्कल में किसी कॉलेज या विद्यालय के मेगा इवेंट से लेकर मिनी-इवेंट तक में उनके शानदार सञ्चालन को देखते हुए एक एंकर के रूप में सबकी पहली पसंद वही होते |
इसके अलावा जिन लोगों ने उनको गाते हुए सुना है वो अच्छी तरह जानते हैं कि उनका गायकी में भी खासा दखल था, खासकर रफ़ी उनकी पहली पसंद थे | जब हमारे बैच के विदाई समारोह पर उन्होंने मोहम्मद रफ़ी का "ओ दुनिया के रखवारे सुन दर्द भरे मेरे नाले...." खत्म किया तो पूरा हॉल तालियों के गडगडाहट से काफी देर तक गूंजता रहा जिसमें ताली बजाने वाले श्रीमान मोदी जी भी थे जो आज इनकी भर्त्सना कर रहे हैं |
इस बात को मैं जरूर स्वीकार करूँगा की वे एक हद तक एन्ग्जाईटी मानसिक रोग से ग्रस्त थे | पर उन्होंने कभी गलत व्यवहार प्रदर्शित नहीं किया | उन्हें देखकर मुझे ये एहसास जरूर था कि वे कहीं न कही समाज के दिखावटीपन से दिली तौर पर आहत हैं | पर उन्होंने हमेशा बहार से ऐसा प्रफुल्लित और जिन्दादिली वाला व्यवहार प्रदर्शित किया जैसा "अनुरानन" फिल्म में राहुल बोस ने किया | वे अपनी बातों को बहुत ही ज्यादा सीधे अंदाज़ में लोगों के सामने अभिव्यक्त कर देते थे जो लोगों के लिए कई बार परेशानी का सबब बन जाता था, उन्हें अगर किसी की बुराई करनी होती तो उस शख्स की उसके सामने ही सच्चाई व्यक्त कर देते थे, पोल खोल देते थे | उनके दोस्ताना और खुले व्यवहार के कारण छात्रों को तो वे अत्यधिक प्रिय थे |
उनके बेबाक व्यवहार के कारण वे साल भर से ज्यादा कहीं टिकते नहीं थे | उनको किसी की गुलामी पसंद नहीं थी, काम के प्रति पूरे तरह समर्पित, एक सच्चे और स्वाभिमानी आदमी हैं वो | क्योंकि हम भी बड़े शरारती थे तो एक बार हमारी इनसे डायरेक्ट भिडंत भी हुयी पर इनके मजाकिया स्वभाव से घटना में कोई गंभीर मोड़ नहीं आया और पूरी कक्षा को बड़ा आनंद आया पर मैं वो घटना यहाँ नहीं बताऊंगा क्योंकि इन सर ने मेरी ओवर स्मार्टनेस की धज्जियाँ उड़ा कर रख दी थीं |
आज जो कुछ हुआ उसे लेकर मेरे पास कुछ पत्रकार मित्रों से खबरें आई की वर्तमान समय में वे "दैनिक नवजागरण" जैसे नाम की किसी पत्रिका के लिए पत्रकार बने हैं | जिसका अभी पहला प्रकाशन भी शुरू नहीं हुआ है ये पत्रिका "मुकेश मूंड" नामक एक व्यक्ति शुरू करने जा रहा है जो झुंझुनू में पहले से ही अच्छा-खासा कोचिंग सेंटर चला रहा है | आज का घटनाक्रम सामने आने पर जब बड़े न्यूज़ चैनल वालों ने मूंड जी से संपर्क साधा तो उन्होंने पूरी तरह से खुद को मामले से अलग करते हुए फिरकापरस्ती दिखाते हुए साफ़ इनकार किया की उनकी पत्रिका से सुनील कुमार का कोई सम्बन्ध है | और इस तरह हर तरफ न्यूज़ चैनल वालों ने यही दिखाया-कहा की वो कोई पत्रकार नहीं हैं | बेशक वो एक अध्यापक रहे हैं पर जहाँ तक मुझे जानकारी मिली है वो "मुकेश मूंड" की पत्रिका के पत्रकार की हैसियत से दिल्ली पहुंचे थे | पर शायद अपने गुस्से पर काबू न पा सके और गद्दारों के ऊपर जूता उठा लिया |
शाम को मेरे शहर की पत्रकार जमात में जो बीमारी फैली वो ये है कि ख़ास पूंजीवादियों के दबाव के चलते उनके कई जानकारों और पत्रकारों ने मोबाईल स्विच ऑफ कर लिए हैं और अगर कोई कुछ बोल रहा है तो उनके खिलाफ की बयानबाजी करता ही नज़र आ रहा है | पाठक समझ सकते हैं कि ये बदले की आग में भड़कता हुआ पूंजीवादी कौन है |
अगर सामाजिक ठेकेदारों के अलावा उन विद्यार्थियों से पूछा जाये जो उनसे पढ़ चुके हैं तो असलियत पता चलते देर न लगेगी | अब तो मेरे दिल मैं उनके प्रति सम्मान कई गुना बढ़ चुका है | ये आदमी ज़मीर से सच्चाई का पक्षधर है और मुखोटे में जीने वाले लोगों की आँख का किरकिरा | बिना किसी तथ्य के जाने आज जो पक्ष और प्रतिपक्ष पार्टियों ने आरोप लगाये उन्हें सुनकर हतप्रभ ही नहीं लोटपोट भी हुआ और आहत भी | पहली बार गहरे तक महसूस भी किया कि सामान्य से मुद्दों को भी राजनेता किस हद तक गिरते हुए क्या का क्या बनाकर रख देते हैं |
पुनश्च :
देखें नीचे इस विडियो को भी जिसमें अपने आप को देश का अनुभवी बुजुर्ग नेता मानने वाला दिग्विजय कैसे कुत्तों की तरह भीड़ में अकेले पड़ गए सुनील कुमार पर पीछे से लातें चला रहा है | ये आदमी दूसरों पर एक भी घटिया आरोप लगाने से बाज़ नहीं आता और खुद ऐसे गिरे हुए काम करता है |
बहुत आभार इस तथ्य के लिए !
ReplyDeleteसुनील कुमार को अगर कोई पार्टी विशेष से जोड़ कर देखता है तो वो स्वयं मानसिक दिवालिएपन का शिकार है |
ReplyDeleteसुना है मैंने उच्च श्रेष्ट और घोर पापियों को मरने के बाद नया गर्भ मिलने में एक दिन से ज्यादा समय लग जाता है | पर आज के नेता ऐसे हैं जो घोरतम पापियों के श्रेणी में हैं, शायद उनको गर्भ कई साल तक नहीं मिलेगा तब तक वो घोर नारकीय यातनाये भोगते रहेंगे | क्योंकि उन्होंने 'स्व' को ताले में बंद कर अचेतन के ऐसे अंतहीन गहरे कुएँ में डाल दिया है कि वापस लाने में बहुत वक्त लग जायेगा |
..यह तथ्य बताने का बहुत शुक्रिया ..लोगों तक सच पहुंचना ही चाहिए ..वैसे कांग्रेस का फिलहाल का जो आचरण है उसमे सुनील कुमार को संघ या बी जे पी से जोड़ देना नीचता ही हद है ..आपको बता दूँ भाई लोग बहुत कुछ समझते हैं.. मुझे तो पूरा विश्वास था कि ये झूठ का ठीकरा बी जे पी या संघ के सर ही फूटना है ...कुछ देर बाद पुनह .टी वी खोलते ही अंदेशा सच हो गया ..सत्ता का दंभ किसी भी प्रकार की भी गैर जिम्मेदारी करा सकता है ....
ReplyDeleteसच से रूबरू कराने का बहुत बहुत आभार.........सच लोगो के सामने आना ही चाहिए
ReplyDeleteजानकारी हेतु आभार
ReplyDeleteतथ्य सामने होने ही चाहिए
जानकारी के लिए धन्यवाद!!!
ReplyDeleteभला हो ब्लॉगरों के नेटवर्क का, अब मामलों की असलियत जानने के लिए हम सिर्फ मीडिया के गरजमंद नहीं है.
ReplyDeleteजानकारी के लिए धन्यवाद!!
ReplyDeleteसुनील कुमार जैसे सच्चे,अच्छे,योग्य,इमानदार,देशभक्त व न्याय प्रिय व्यक्ति से इस देश के सभी मंत्री,प्रधान मंत्री व राष्ट्रपति को शिक्षा लेनी चाहिए....क्योकि इस देश के प्रधान मंत्री व राष्ट्रपति अगर भ्रष्ट मंत्रियों को इसी तरह जूता दिखा सकने योग्य होते तो आज इस देश के सभी मंत्री महाभ्रष्ट व उनके चमचे सारे लूटेरे व इस देश के नागरिकों का खून चूसने वाले लोग उद्योगपति ना होते...?
ReplyDeleteअंग्रेजी में जिसे कहते है कि पूरी तरह से एक spontaneous reaction था इस आदमी का | पर इस घटना में सभी ओर के नेताओं ने अपनी गन्दी औकात पर आते हुए एक आम आदमी को चारों और से नोंच-नोंच कर अपने गंदे बयानों के लिए ओछी सामग्री तैयार की |
ReplyDeleteकांग्रेस को तो बस बहाना चाहिए ... शुक्रिया असल तथ्यों को उजागर करने के लिए
ReplyDeleteA lot of Thanks for bringing out the facts to the country.
ReplyDeleteMadan Mohan Tiwari
Thanks for sharing the information. Dijvijay ko Kutta kah kar kutto ka apmaan mat kijiye.
ReplyDeletethank u so much
ReplyDeleteबहुत सही समय पर आपने एक बहुत जरूरी बात का अनावरण किया. धन्यवाद !
ReplyDeleteसुनील कुमार जी का बेहतरीन व्यक्तित्व आपने सामने रखा, धन्यवाद। सुनील जी का कार्य जनता के गुस्से की अभिव्यक्ति थी। भ्रष्टाचारियों को जूता दिखाना पिटायी योग्य कार्य न होकर एक पुनीत कार्य है।
ReplyDeleteसुनील जी को शत-शत नमन।
बहुत--बहुत आभार शेखावत भाई। लोकतंत्र के गिरते चौथे स्तम्भ को मीडिया के लोग तो रोक नही सकते , किन्तु आप जैसे व्यक्ति ही ब्लॉग, ट्विट व फेसबुक के माध्यम से सही जानकारी देकर इस धर्म को बखूबी दिखा सकते है। बस एक प्रश्न मन में कौंध रहा है कि जब सुनील जी पुनीक कार्य के लिए बढ़ ही गए थे तो उस हरामजादे गद्दार के मुंह पर दो-चार जूते जड़ ही देते।
ReplyDeleteजूता दिखाना अपराध हो गया और सोते लोगो को पिटवाना एक अनिवार्य कार्य. धन्य है सरकार
ReplyDeleteसुनील कुमार भारत रत्न के पात्र हैं
ReplyDeleteबदलाव की बयार से खुश हुआ जा सकता है पर भारतियों में अभी भी उतनी आक्रामकता और रिस्क लेने के प्रति उतनी हिम्मत नहीं आई है जितनी पश्चिम के कुछ समाजों में है |
ReplyDeleteयदि आप बुश पर फेंके जाने वाले जूते के फुटेज़ को देखें तो साफ़ जान जायेंगे कि काफी दूर भीड़ में होने के बावजूद जिस आक्रामकता, तेज़ी और नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से बुश पर जूता फेंका गया उतनी आक्रामकता और सफल होने की कामना से भारत में नहीं फेंका या मारा गया | चाहे जरनैल सिंह का पी. चित्त विभ्रम पर जूता फेंकना हो, चाहे कलमाडी पर चप्पल फेंकना हो या सुनील का जन मर्दन को जूता दिखाना | भारत वाले तीनों ही केसेज़ में विडियो देखने पर साफ़ होता है कि पूरा-पूरा मौका होता हुए भी किसी ने किसी नेता के थोबड़े पर घुमा के नहीं मारा | सुनील शर्मा जिसे लोग सनकी या दिमागी रूप से कमजोर बता रहे हैं वो भी अगर मारने से पहले सोचने लगे तो फिर बात सोचनीय हो जाती है | हम अभी-भी दया या अनजाने डर से ग्रसित हैं | अभी-भी पूरी हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं | भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरी ताकत नहीं लगा रहे हैं | सार्वजनिक हित हमारे लिए अभी-भी निजी हित की तुलना में ज्यादा महत्व नहीं रखते हैं | हमें याद रखना चाहिए सार्वजिनक नुकसान घूम-फिर कर हमारे ऊपर ही आता है |
पर धीरे-धीरे ही सही हम लोगों में अनजानी रिस्क से खेलने की आदत तो आ रही है, मुझे ये पसंद है | नवीन विकास और आगे बढ़ने के लिए, चाहे कोई भी क्षेत्र हो, स्टेक लेना बहुत जरूरी है |
सुनील कुमार के खिलाफ सरकारी दुष्प्रचार में शामिल मिडिया की अभी अच्छी धज्जियां उड़ाती है आपकी रिपोर्ट |
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